हानिकारक रसायनों से हो सकते हैं जेनेटिक बदलाव, बढ़ सकता है कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा

रिसर्च से पता चला है कि कैसे फॉरएवर केमिकल्स जैसे हानिकारक रसायन हमारी जीन के काम करने के तौर-तरीकों को प्रभावित कर, गंभीर बीमारियों की वजह बन सकते हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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वैज्ञानिकों ने अपनी एक नई रिसर्च में खुलासा किया है कि पीएफएएस, जिन्हें "फॉरएवर केमिकल्स" भी कहा जाता है, शरीर में ऐसे जेनेटिक बदलाव (एपिजेनेटिक बदलाव) करते हैं जो कैंसर, न्यूरोलॉजिकल विकार और ऑटोइम्यून बीमारियों जैसी कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।

यह अध्ययन अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना से जुड़ी शोधकर्ता मेलिसा फर्लॉंग के नेतृत्व में किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल एनवायरनमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्ययन उन शुरूआती प्रयासों में से एक है, जिसमें पीएफएएस को शरीर में माइक्रो आरएनए में होने वाले बदलाव से जोड़ा गया है। ये माइक्रो आरएनए ऐसे सूक्ष्म अणु होते हैं जो जीन की गतिविधि को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि कैसे यह हानिकारक रसायन हमारी जीन के काम करने के तौर-तरीकों को प्रभावित करते हैं, जो शरीर में गंभीर बीमारियों की वजह बन सकते हैं।

गौरतलब है कि पर-एंड पॉली-फ्लोरो अल्काइल सब्स्टेंसेस (पीएफएएस) मानव निर्मित, रासायनिक यौगिकों का एक समूह है, जिसमें करीब 12,000 तरह के यौगिक शामिल हैं। इन रसायनों को आमतौर पर पानी, तेल और दाग-धब्बों से बचाने के लिए उत्पादों में इस्तेमाल किया जाता है।

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चूंकि यह हानिकारक केमिकल्स बेहद धीमी गति से पर्यावरण में विघटित होते हैं और लम्बे समय तक वातावरण में बने रह सकते हैं, इसलिए इन्हें 'फॉरएवर केमिकल्स' के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर इन केमिकल्स का उपयोग वॉटरप्रूफ कपड़ों, इलेक्ट्रॉनिक्स, नॉन-स्टिक कुकवेयर, क्लीनिंग प्रोडक्ट्स, इंसुलेशन और दमकलकर्मियों द्वारा इस्तेमाल होने वाले फोम और सुरक्षा गियर में किया जाता है।

किन बीमारियों से जुड़ा है यह बदलाव?

अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने अमेरिका के 303 दमकलकर्मियों के खून के नमूनों की जांच की है। साथ ही उन्होंने नौ तरह के फॉरएवर केमिकल्स, उनके स्तर और इनसे संबंधित माइक्रो आरएनए से जुड़ी गतिविधियों की भी जांच की है। रिसर्च से पता चला है कि इन माइक्रो आरएनए में होने वाले बदलाव कई बीमारियों जैसे कैंसर और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं में भूमिका निभा सकते हैं।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर मेलिसा फर्लॉंग ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकरी दी है कि पीएफएएस के संपर्क में आने से माइक्रो आरएनए नामक सूक्ष्म अणुओं में बदलाव देखा गया, जो जीन की गतिविधि को नियंत्रित करने का काम करते हैं। उनका कहना है कि यह रसायन जितने व्यापक स्तर पर जीन और जैविक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं, वो चौंकाने वाला है। इससे संकेत मिलता है कि ये हानिकारक रसायन कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं या उनके जोखिम को बढ़ा सकते हैं।

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उदाहरण के लिए, पीएफओएस (परफ्लूरोऑक्टेन सल्फॉनिक एसिड) नामक एक आम फॉरएवर केमिकल और माइक्रो आरएनए ‘miR-128-1-5p’ के कम स्तर के बीच संबंध देखा गया, जो कैंसर से जुड़ा है। इसके साथ ही पीएफओएस के अन्य रूपों से पांच और माइक्रो आरएनए में बदलाव देखा गया, जिनमें से कुछ कैंसर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पीएफएएस से प्रभावित जीन और जैविक प्रक्रियाओं का संबंध ब्लड कैंसर (ल्यूकीमिया), ब्लैडर, लिवर, थायरॉयड और ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारियों से है। साथ ही यह भी पाया कि ये बदलाव अल्जाइमर जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों और ल्यूपस, अस्थमा व टीबी जैसी ऑटोइम्यून व संक्रमण संबंधी बीमारियों से भी जुड़े हैं।

हालांकि अध्ययन में यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि यह हानिकारक रसायन सीधे तौर पर बीमारियों का कारण बनते हैं, लेकिन यह जरूर देखा गया है कि यह रसायन ऐसे एपिजेनेटिक बदलाव ला सकते हैं, जो बीमारियों के शुरुआती संकेत हो सकते हैं।

ऐसे में इन बदलावों की बेहतर समझ से भविष्य में बीमारियों की रोकथाम और जोखिम को कम करने के नए रास्ते मिल सकते हैं। दवा कंपनियां भी ऐसे इलाज विकसित करने का प्रयास कर रही हैं जो जीन की क्रियाशीलता को बदलकर इन फॉरएवर केमिकल्स से जुड़ी बीमारियों को रोक सकें।

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