अरावली में अवैध निर्माण पर बढ़ी कानूनी सख्ती, एनजीटी ने सरकार से मांगा जवाब

यह मामला गुड़गांव के रायसीना स्थित 'अंसल्स अरावली रिट्रीट' में अवैध निर्माण संबंधी गतिविधियों से जुड़ा है
अरावली पहाड़ियां, प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
अरावली पहाड़ियां, प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सोहना नगर निगम को नोटिस जारी कर अरावली क्षेत्र में अवैध फार्महाउस के निर्माण के मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह जमीन पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट, 1900 और अरावली अधिसूचना, 1992 के तहत संरक्षित है।

यह मामला गुड़गांव के रायसीना स्थित 'अंसल्स अरावली रिट्रीट' में अवैध निर्माण संबंधी गतिविधियों से जुड़ा है। गौरतलब है कि 28 जुलाई 2024 को द टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के आधार पर अदालत ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है।

खबर के मुताबिक शुरूआती तोड़फोड़ अभियान के बाद भी इस संरक्षित क्षेत्र में अवैध फार्महाउस का निर्माण जारी है, जिसे 'गैर-मुमकिन पहाड़' के रूप में चिन्हित किया गया है और संरक्षित क्षेत्र माना जाता है।

वहीं 'अंसल्स अरावली रिट्रीट रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन' की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि एसोसिएशन द्वारा किए गए निर्माण 1992 की अधिसूचना के दायरे में नहीं आते। इस पर एनजीटी ने कहा कि एसोसिएशन को भी सुनवाई का पूरा अधिकार है।

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अरावली पहाड़ियां, प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

हरियाणा सरकार की ओर से पेश वकील ने अदालत को भरोसा दिलाया है कि सम्बंधित अधिकारी कोर्ट के आदेशों और कानून के अनुसार कार्रवाई कर रहे हैं। इस पर ट्रिब्यूनल ने सभी पक्षों को मामले में अपना लिखित जवाब दाखिल करने को कहा है।

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ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर पॉलीस्टायरीन की अवैध बिक्री, एनजीटी ने सीपीसीबी-पर्यावरण मंत्रालय से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पॉलीस्टायरीन और एक्सपैंडेड पॉलीस्टायरीन की ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के जरिए अवैध बिक्री और वितरण के मामले को गंभीरता से लेते हुए अधिकारियों से जवाब मांगा है।

अदालत ने इस बाबत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर 2025 को होगी।

इस मामले में फ्लिपकार्ट लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड, अमेजन सेलर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, इंडियामार्ट इंटरमेश लिमिटेड और स्नैपडील प्राइवेट लिमिटेड को भी पक्षकार बनाया गया है।

सोनभद्र में अवैध खनन के मामले में लापरवाही! एनजीटी ने डीएम से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सोनभद्र के जिलाधिकारी से पूछा है कि भगवा में अवैध खनन की जांच के लिए संयुक्त समिति गठित होने के बावजूद, साइट के निरीक्षण में दो महीने से ज्यादा समय क्यों लग गया?

अदालत ने जिलाधिकारी को आदेश दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर हलफनामे के रूप में अपना स्पष्टीकरण दाखिल करें। साथ ही, संयुक्त समिति को रिपोर्ट दाखिल करने की समयसीमा भी चार हफ्ते बढ़ा दी गई है।

याचिकाकर्ता का कहना है, 1 दिसंबर 2021 को जारी पर्यावरण स्वीकृति की वैधता एक साल की थी, जिसकी मियाद अब खत्म हो चुकी है। इसके बावजूद खननकर्ता पट्टे की निर्धारित सीमा के भीतर ही नहीं, बल्कि उसके बाहर भी अवैध खनन कर रहा है। याचिकाकर्ता ने अदालत में तस्वीरें पेश की हैं, जिनमें जेसीबी मशीनों से नदी के बीचोंबीच बालू खनन होते हुए देखा गया है।

निरीक्षण में देरी पर सवाल

गौरतलब है कि एनजीटी ने 23 अप्रैल 2025 को एक संयुक्त समिति के गठन का आदेश दिया था, जिसमें सोनभद्र के जिलाधिकारी को नोडल एजेंसी बनाया गया था। हालांकि, अब तक समिति की की और से कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई है। सोनभद्र के जिलाधिकारी ने 14 अगस्त 2025 को हलफनामा दाखिल कर बताया कि समिति ने 30 जून 2025 को साइट का निरीक्षण किया था और फिलहाल रिपोर्ट तैयार की जा रही है।

इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने आपत्ति जताते हुए कहा कि अदालत द्वारा 23 अप्रैल 2025 को संयुक्त समिति का गठन किया था, लेकिन समिति ने साइट निरीक्षण करने में दो महीने से ज्यादा का समय लगा दिया और यह निरीक्षण 30 जून 2025 को किया गया।

उनका आरोप है कि इस देरी के कारण, अवैध खनन के सबूतों को मिटाने या गायब करने में मदद मिली।

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