
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) को निर्देश दिया है कि वह गुरुग्राम के सेक्टर-54 में डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड द्वारा किए जा रहे निर्माण की जांच करे। यह निर्माण वजीराबाद के पहाड़ी क्षेत्र के पास हो रहा है, जो अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है और वन क्षेत्र के रूप में घोषित है।
एनजीटी ने मंत्रालय को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 10 नवंबर 2025 को होगी।
इस मामले में अदालत ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण, राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति, हरियाणा सरकार और डीएलएफ यूनिवर्सल को भी जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
आवेदक ने गुरुग्राम के सेक्टर-54 में डीएलएफ यूनिवर्सल द्वारा किए जा रहे निर्माण पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह निर्माण वजीराबाद पहाड़ी क्षेत्र के पास हो रहा है, जो एक वन क्षेत्र है और अरावली पर्वतमाला का हिस्सा है।
आवेदक का आरोप है कि प्रस्तावित निर्माण का कुल निर्मित क्षेत्र 4.01 लाख वर्ग मीटर है, और यह निर्माण 2006 की ईआईए अधिसूचना के तहत आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी लिए बिना किया जा रहा है। इसके अलावा, निर्माण कार्य के लिए "कंसेंट टू इस्टैब्लिश" और अन्य जरूरी अनुमतियां भी नहीं ली गई है। इस दावे के समर्थन में, आवेदनकर्ता के वकील ने फोटो और गूगल इमेज भी प्रस्तुत की हैं।
कसौली: झरने के पानी के व्यावसायिक इस्तेमाल पर एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय से तलब किया जवाब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 12 अगस्त, 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह बताए कि क्या झरने के पानी के व्यावसायिक इस्तेमाल को नियंत्रित करने के लिए कोई नियम या अधिसूचना मौजूद है।
यह मामला कसौली कुंड में मोहान मीकिन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा गंदा पानी छोड़े जाने और पर्यावरणीय मानकों के उल्लंघन से जुड़ा है। ट्रिब्यूनल द्वारा बनाई संयुक्त समिति ने 20 अगस्त, 2024 को अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें बताया गया है कि कंपनी अपने परिसर से निकल रहे झरने के पानी का इस्तेमाल बिना किसी अनुमति के कर रही है।
कंपनी की ओर से पेश वकील ने दलील दी है कि झरने का पानी इस्तेमाल करने के लिए भूजल प्राधिकरण से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है और इस पर कोई नियम भी मौजूद नहीं है।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट न होने से मन्नार की खाड़ी में जा रहा सीवेज, ट्रीटमेंट के लिए की गई है अस्थाई व्यवस्था: रिपोर्ट
रामनाथपुरम जिले के कीलाकराई नगर पालिका आयुक्त ने रिपोर्ट में जानकारी दी है कि नगर में फिलहाल कोई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) नहीं है। इसके कारण पूरा सीवेज सीधे मन्नार की खाड़ी में छोड़ा जा रहा है।
हालांकि स्थिति से निपटने के लिए कीलाकराई की सीमा से करीब 7 किलोमीटर दूर पल्लामोरकुलम गांव में नगर पालिका की जमीन पर 20 केएलडी क्षमता का फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट (एफएसटीपी) बनाया गया है, जहां रोजाना निकलने वाले गंदे पानी और कीचड़ का उपचार किया जा रहा है।
फिलहाल नगर से निकलने वाले फीकल स्लज को 6,000 लीटर क्षमता वाली निजी और नगर पालिका की गाड़ियों से उठाकर नए बने ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाया जा रहा है। साथ ही, समुद्र में सीवेज जाने से रोकने के लिए सड़कों के चैंबरों से जमा गंदा पानी भी इन्हीं गाड़ियों से निकालकर एफएसटीपी में ट्रीट किया जा रहा है।
नगर पालिका आयुक्त ने 9 अगस्त, 2025 के पत्र में बताया कि जब तक नया सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की जगह नहीं मिलती, तब तक अस्थाई व्यवस्था से सीवेज को समुद्र में जाने से रोका जा रहा है। यह जानकारी 12 अगस्त, 2025 को रामनाथपुरम के जिला कलेक्टर द्वारा दाखिल स्थिति रिपोर्ट में दी गई है।