अरावली जू सफारी परियोजना: विरोध में उतरे पूर्व वन अधिकारी, पारिस्थितिकी के लिए बड़ा खतरा बताया

सेवानिवृत वन अधिकारियों ने आशंका जताई है कि इस परियोजना से क्षेत्र का भूजल स्तर भी प्रभावित हो सकता है
अरावली के जंगलों में जंगल सफारी का प्रस्ताव है। फाइल फोटो़: सीएसई
अरावली के जंगलों में जंगल सफारी का प्रस्ताव है। फाइल फोटो़: सीएसई
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अरावली में प्रस्तावित जू (चिड़ियाघर) सफारी परियोजना का विरोध बढ़ता जा रहा है। अब वन विभाग के सेवानिवृत अधिकारियों ने भी इस परियोजना का विरोध किया है।

गुरुग्राम और नूंह जिलों में अरावली के 10,000 एकड़ क्षेत्र में नियोजित इस परियोजना की घोषणा अप्रैल 2022 में की गई थी।

सेवानिवृत अधिकारियों ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र लिखकर इस निर्णय को चुनौती दी है।

पत्र में खनन, रियल एस्टेट विकास और जंगलों की कटाई के कारण अरावली पर्वतमाला के खतरनाक विनाश पर चिंता जताई गई। अधिकारियों ने कहा है कि भारत की इस सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला को संरक्षित करने की तत्काल आवश्यकता है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक उमा शंकर सिंह ने एक प्रेस बयान में कहा कि अरावली पर्वतमाला में पक्षियों की 180 प्रजातियां, स्तनधारियों की 15 प्रजातियां और जलीय जीवों की 29 प्रजातियां पाई जाती हैं। हरियाणा वन विभाग के अनुसार, यहां 57 प्रजाति की तितलियां भी पाई जाती हैं।

उन्होंने कहा, "अक्सर माना जाता है कि वन्यजीव संरक्षण के लिए चिड़ियाघर या सफारी आवश्यक नहीं है, क्योंकि वे लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रजनन में भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन सीमित जगहों में जानवरों को कैद में रखने का अभ्यास उनके प्राकृतिक व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।"

उनके मुताबिक चिड़ियाघरों में बंदी प्रजनन कार्यक्रमों पर निर्भर रहने की बजाय उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा करना चाहिए और जंगल पर मंडरा रहे खतरे दूर करने चाहिए।

संयुक्त पत्र में पूर्व वन अधिकारियों ने बताया कि जू सफारी स्थल 'वन' की श्रेणी में आता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देशों में कहा गया है कि ये कदम वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत निषेधात्मक प्रकृति के हैं।

बयान में कहा गया है कि इस 'निषिद्ध क्षेत्र' में पेड़ों की कटाई, भूमि की सफाई, निर्माण और रियल एस्टेट विकास प्रतिबंधित है। इसलिए इस जू सफारी पार्क के लिए प्रस्तावित व्यापक निर्माण अवैध होगा और पहले से क्षतिग्रस्त अरावली पारिस्थितिकी तंत्र को और नुकसान पहुंचाएगा।

महाराष्ट्र के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) अरविंद झा ने कहा, "हरियाणा राज्य में सबसे कम वन क्षेत्र है, जो लगभग 3.6 प्रतिशत है। यहां अरावली पर्वतमाला ही एकमात्र सहारा है, जो इसके वन क्षेत्र का बड़ा हिस्सा प्रदान करती है। अगर इसे अछूता छोड़ दिया जाए तो अरावली पर्वतमाला इस शुष्क क्षेत्र में नमी और अच्छी बारिश लाने के लिए पर्याप्त होगी।"

बयान में कहा गया है कि राज्य सरकार अरावली जू सफारी परियोजना के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा देने और अधिक निवेश आकर्षित करने का इरादा रखती है। हालांकि, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में पैदल यातायात और निर्माण में वृद्धि से गुरुग्राम और नूह के सूखाग्रस्त जिलों में जलभृतों पर दबाव पड़ेगा।

झा ने कहा, "जलभृत आपस में जुड़े हुए हैं और इनके पैटर्न में कोई भी गड़बड़ी या बदलाव भूजल को काफी हद तक बदल सकता है। जू सफारी परियोजना में पार्क में 'अंडरवाटर जोन' की परिकल्पना की गई है, जो जल स्तर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि यह क्षेत्र 'जल-दुर्लभ क्षेत्र' है।"

गुरुग्राम और नूंह क्षेत्र में भूजल स्तर को केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा “अतिदोहित” के रूप में वर्गीकृत किया गया है। कुछ क्षेत्रों में, भूजल स्तर पहले से ही 1,000 फीट से नीचे है।

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