
दुनिया जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की मार झेलने को मजबूर है, जिसमें अफ्रीका सबसे आगे है। जिसका असर जीवन और आजीविका पर पड़ रहा है। हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जो तेज रफ्तार से गर्म हो रही है।
जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करने वाले पक्षों का वार्षिक वैश्विक सम्मेलन (कॉप30) बस कुछ ही महीने दूर है। संयुक्त राष्ट्र के सभी 197 देशों को इस साल फरवरी तक संयुक्त राष्ट्र को अपनी नई राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं प्रस्तुत करनी हैं।
इन योजनाओं में बताया गया है कि प्रत्येक देश कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय पेरिस समझौते के अनुरूप अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कैसे कटौती करेगा। यह समझौता सभी हस्ताक्षरकर्ताओं को मानवजनित वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने के लिए प्रतिबद्ध करता है।
सरकारों को अपनी नई राष्ट्रीय जलवायु कार्ययोजनाएं भी कॉप30 में प्रस्तुत करनी होंगी और यह बताना होगा कि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल ढलने की कैसे योजना बना रही हैं।
लेकिन अब तक, केवल 25 देशों ने जो दुनिया भर में उत्सर्जन के लगभग 20 फीसदी को कवर करते हैं, अपनी योजनाएं प्रस्तुत की हैं, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) कहा जाता है। अफ्रीका में ये देश सोमालिया, जाम्बिया और जिम्बाब्वे हैं। इस तरह 172 देशों को अभी भी अपनी योजनाएं प्रस्तुत करनी हैं।
जलवायु परिवर्तन पर देशों की छोटी अवधि से मध्यम अवधि की प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करने में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये एक ऐसी दिशा भी प्रदान करते हैं जो व्यापक नीतिगत निर्णयों और निवेशों को प्रभावित कर सकती है। जलवायु योजनाओं को विकास लक्ष्यों के साथ जोड़कर 17.5 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि अत्यधिक तापमान और बारिश में कितनी वृद्धि हो रही है, समुद्र का स्तर कितना बढ़ रहा है और ग्रह का तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने से पहले कितनी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो सकती है।
अर्थ सिस्टम साइंस डेटा नामक पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, मानवजनित वैश्विक तापमान वृद्धि 2024 में 1.36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इससे औसत वैश्विक तापमान (मानवजनित तापमान वृद्धि और जलवायु प्रणाली में प्राकृतिक बदलाव का मिला-जुला स्वरूप) बढ़कर 1.52 डिग्री सेल्सियस हो गया है।
दुनिया पहले ही उस स्तर पर पहुंच चुकी है जहां यह इतनी गर्म हो गई है कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से बचना असंभव है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुनिया खतरनाक स्थिति में है।
ग्रह का तापमान खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है
हालांकि पिछले साल वैश्विक तापमान बहुत ज्यादा था, लेकिन यह चिंताजनक रूप से असाधारण भी था। आंकड़े खुद ही सब कुछ बयां करते हैं। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगातार रिकॉर्ड उच्च स्तर के कारण कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की वायुमंडलीय मात्रा में वृद्धि हुई है।
इसका परिणाम यह है कि बढ़ता तापमान तेजी से शेष कार्बन बजट (एक निश्चित समय सीमा के भीतर उत्सर्जित की जा सकने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा) को खा रहा है। उत्सर्जन के मौजूदा स्तर पर यह तीन साल से भी कम समय में खत्म हो जाएगा।
साथ ही जलवायु परिवर्तन की चरम सीमाएं और भी तेज हो रही हैं, जिससे दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ, लोगों पर भी लंबे समय तक जोखिम और खर्चे बढ़ रहे हैं। अफ्रीकी महाद्वीप इस समय एक दशक से भी अधिक समय में अपने सबसे घातक जलवायु संकट का सामना कर रहा है।
विश्वसनीय आंकड़ों तक तेज पहुंच के बिना अर्थव्यवस्थाओं के संचालन की कल्पना करना असंभव है।
जलवायु परिवर्तन की रफ्तार अक्सर उपलब्ध आंकड़ों से कहीं ज्यादा होती है। इसका मतलब है कि तेजी से फैसले नहीं लिए जा सकते हैं। अगर हम जलवायु आंकड़ों को वित्तीय रिपोर्टों की तरह ही लेते, तो हर गंभीर अपडेट के बाद घबराहट फैल जाती।
लेकिन जहां सरकारें आर्थिक मंदी का सामना करते समय अक्सर बदलाव करती हैं, वहीं वे प्रमुख जलवायु संकेतकों या पृथ्वी के महत्वपूर्ण संकेतों की ओर इशारा करने में काफी धीमी रही हैं।
आगे क्या होना चाहिए?
जैसे-जैसे ज्यादा से ज्यादा देश अपनी जलवायु योजनाएं विकसित कर रहे हैं, दुनिया भर के नेताओं के लिए जलवायु विज्ञान की कठोर सच्चाइयों का सामना करने का समय आ गया है।
सरकारों को विश्वसनीय जलवायु आंकड़ों तक तेजी से पहुंचने की जरूरत है ताकि वे अपडेटेड राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं बना सकें। राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी देखना होगा। यह निष्पक्षता और समानता के लिए बेहद जरूरी है।
विकसित देशों को यह स्वीकार करना होगा कि उन्होंने ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित की हैं और महत्वाकांक्षी शमन प्रयासों को आगे बढ़ाने और अन्य देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने और अनुकूलन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभानी होगी।
जी20 के केवल पांच देशों ने अपनी 2035 की योजनाएं प्रस्तुत की हैं जिनमें कनाडा, ब्राजील, जापान, अमेरिका और यूके शामिल है। लेकिन जी20 वैश्विक उत्सर्जन के लगभग 80 फीसदी के लिए जिम्मेवार है।
इसका मतलब है कि दक्षिण अफ्रीका की वर्तमान जी20 अध्यक्षता यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है कि दुनिया विकासशील देशों को कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था में उनके बदलाव के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के प्रयासों को प्राथमिकता दे।
एक और चिंताजनक बात यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित नए योगदानों में से केवल 10 ने जीवाश्म ईंधन से दूर जाने की प्रतिबद्धताओं की पुष्टि या उन्हें मजबूत किया है। इसका मतलब है कि यूरोपीय संघ, चीन और भारत की राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं उनके जलवायु नेतृत्व का परीक्षण करने और पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान लक्ष्यों को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
कई अन्य देश अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं प्रस्तुत करने से पहले इन देशों की प्रतिबद्धताओं की गहन जांच-पड़ताल करेंगे।
रिपोर्ट के आंकड़े दुनिया को न केवल यह समझने में मदद करते हैं कि हाल के सालों में क्या हुआ है, बल्कि यह भी कि आगे क्या होने वाला है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य देश कॉप30 से पहले महत्वाकांक्षी और विश्वसनीय योजनाएं प्रस्तुत करेंगे। यदि वे ऐसा करते हैं, तो इससे जलवायु संकट को स्वीकार करने और उससे निपटने के लिए निर्णायक प्रयास करने के बीच का अंतर कम हो जाएगा।