
हीटवेव (लू), सूखा और जंगलों में आग जैसी जलवायु से जुड़ी चरम घटनाएं भविष्य में न सिर्फ ज्यादा बार होंगी, बल्कि ये एक साथ या एक के बाद एक तेजी से होने लगेंगी। यह जानकारी एक नई रिसर्च से सामने आई है, जिसे उप्साला यूनिवर्सिटी ने किया है।
यह अध्ययन अर्थ्स फ्यूचर नाम की एक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें उप्साला यूनिवर्सिटी और बेल्जियम, फ्रांस और जर्मनी की यूनिवर्सिटियों के वैज्ञानिकों ने मिलकर काम किया है।
रिसर्च में यह बताया गया है कि आने वाले समय में दुनिया के कई हिस्सों में अब केवल एक-एक करके आपदाएं नहीं आएंगी, बल्कि कई तरह की आपदाएं एक साथ या बहुत कम समय के अंतराल में घटित होंगी। इससे उनके प्रभाव और भी गंभीर हो सकते हैं।
शोध पत्र में कहा गया है कि कई क्षेत्रों में अधिक हीटवेव, जंगल की आग और भीषण सूखा पड़ने की घटनाएं होना अपने आप में कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आश्चर्य इस बात का है कि यह वृद्धि इतनी बड़ी है कि हम एक स्पष्ट बदलाव देखते हैं जिसमें कई संयोगवश चरम घटनाएं नई सामान्य बन जाती हैं।
भविष्य की जलवायु - तापमान, बारिश, हवा आदि का पूर्वानुमान लगाने के लिए मॉडल का उपयोग करना जलवायु अनुसंधान में एक सामान्य तरीका है। इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने उस आंकड़े को अतिरिक्त मॉडलों में डालकर एक कदम आगे बढ़ाया है जो समाज पर ठोस प्रभाव के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की गणना करके, जैसे कि जंगल की आग या बाढ़ के खतरे पर, एक स्पष्ट तस्वीर उभरती है कि दुनिया के विभिन्न क्षेत्र वास्तव में कैसे प्रभावित हो सकते हैं। विश्लेषण में इस बात की भी जांच-पड़ताल की गई है कि 2050 से 2099 के बीच क्या होगा। शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से छह प्रकार की घटनाओं पर गौर किया है - बाढ़, सूखा, हीटवेव या लू, जंगल की आग, उष्णकटिबंधीय चक्रवाती हवाएं और फसल उपज की विफलता।
हीटवेव और जंगल की आग
अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया के लगभग सभी क्षेत्रों में हीटवेव और जंगल की आग में तेजी से वृद्धि होगी, सिवाय उन क्षेत्रों के जहां कोई वनस्पति नहीं है, जैसे कि सहारा। भूमध्य सागर क्षेत्र और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में हीटवेव और सूखा एक बार-बार होने वाली घटना बन जाएगी। वे क्षेत्र जो अब आम तौर पर अलग-अलग घटनाओं का अनुभव करते हैं, जैसे कि नॉर्डिक देश, भी हीटवेव और जंगल की आग के मिश्रण से अधिक बार प्रभावित होंगे।
तैयारियों के लिए नई चुनौतियां
शोधकर्ताओं के विश्लेषण में कई संभावित उत्सर्जन परिदृश्य शामिल हैं। हालांकि मुख्य ध्यान एक मध्यम परिदृश्य पर है, जिसे वर्तमान उत्सर्जन प्रवृत्तियों को देखते हुए वास्तविक माना जाता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इस बात पर जोर देना जरूरी है कि यह बदलाव जो देख रहे हैं, वह सिर्फ तब नहीं होता जब हम सबसे चरम मामले को देखते हैं, जहां हम अपने उत्सर्जन को कम करने के लिए कुछ नहीं करते, बल्कि तब भी होता है जब हम कम निराशावादी परिदृश्य पर विचार करते हैं।
सामाजिक नजरिए से, हमें इन एक साथ घटने वाली चरम घटनाओं से निपटने के लिए अपनी तैयारियों को सशक्त और प्रभावी बनाने की जरूरत है। हम एक नई जलवायु वास्तविकता का सामना करने जा रहे हैं जिसका आज हमारे पास सीमित अनुभव है।