

नीदरलैंड की लीडन यूनिवर्सिटी के अध्ययन में पाया गया है कि वातावरण में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड फसलों के पोषण को घटा रहा है।
इससे गेहूं, धान, चना जैसी फसलों में प्रोटीन, जिंक और आयरन की कमी हो सकती है। यह स्थिति बच्चों की बढ़त और महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
वैज्ञानिकों ने भविष्य को लेकर भी आगाह किया है कि यदि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो आने वाले वर्षों में “स्वस्थ भोजन” भी शरीर को जरूरी पोषक तत्व नहीं दे पाएगा।
आशंका है कि सीओ2 के बढ़ते स्तर से फसलों में मौजूद ज्यादातर पोषक तत्वों पर नकारात्मक असर पड़ेगा और इनमें औसतन 3.2 फीसदी की कमी आ सकती है। खास तौर पर चने में जिंक की मात्रा 37.5 फीसदी तक गिर सकती है।
शोध में इस बात के भी संकेत मिले हैं कि इसके चलते फसलों में सीसा (लेड) जैसे जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ सकती है, जो लंबे समय में स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती है।
यह जानकारी नीदरलैंड की लीडन यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने भविष्य को लेकर भी आगाह किया है कि यदि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो आने वाले वर्षों में “स्वस्थ भोजन” भी शरीर को जरूरी पोषक तत्व नहीं दे पाएगा।
यह अध्ययन भारत सहित 15 देशों में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर और पौधों पर उसके असर से जुड़े शोधों के विश्लेषण पर आधारित है। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अलग-अलग प्रयोगों से जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर गेहूं, धान, चना, आलू, टमाटर जैसी 43 फसलों का विश्लेषण किया है। इनमें 32 पोषक तत्वों पर प्रभावों को मापा गया है।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि सीओ2 का असर सीधा है, वातावरण में जितना कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ेगा, उतना ही फसलों में पोषण घटेगा।
घटेगा पोषण, बढ़ेगा खतरा
वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि सीओ2 के बढ़ते स्तर से फसलों में मौजूद ज्यादातर पोषक तत्वों पर नकारात्मक असर पड़ेगा और इनमें औसतन 3.2 फीसदी की कमी आ सकती है। खास तौर पर चने में जिंक की मात्रा 37.5 फीसदी तक गिर सकती है।
इसी तरह धान और गेहूं जैसी जरूरी फसलों में प्रोटीन, जिंक और आयरन में भी “काफी” कमी देखी जा सकती है। गौरतलब है कि ये वही पोषण तत्व हैं जो बच्चों में बढ़त, महिलाओं के स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए बेहद अहम हैं।
मतलब कि आज जो चावल, टमाटर से भरपूर थाली हमें सेहतमंद लगती है, वही भविष्य में जरूरी पोषण देने में नाकाम हो सकती है। वहीं दूसरी ओर, इसकी वजह से फसलों में कैलोरी बढ़ रही है, जिससे मोटापे और कुपोषण का खतरा बढ़ सकता है।
शोध में इस बात के भी संकेत मिले हैं कि इसके चलते फसलों में सीसा (लेड) जैसे जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ सकती है, जो लंबे समय में स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती है।
धान-गेहूं पर सीधा वार
दुनिया की बड़ी आबादी अपनी रोजमर्रा की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए गेहूं-धान पर निर्भर है। अध्ययन बताता है कि सीओ₂ बढ़ने पर इन दोनों फसलों में पोषण सबसे तेजी से गिर सकता है। यानी सबसे ज्यादा असर उन्हीं पर पड़ेगा, जिनकी थाली पहले से सीमित है।
देखा जाए तो अक्सर खाद्य सुरक्षा को पेट भरने से जोड़ा जाता है। लेकिन असली संकट तब है, जब लोगों को पेट भरने के लिए पर्याप्त खाना तो मिले, लेकिन वो शरीर को पर्याप्त पोषण न दे। ऐसे में यह पोषण सुरक्षा से जुड़ा सवाल भी है।
इस बारे में वैज्ञानिक स्टेरे टेर हार का कहना है, “हम अक्सर सोचते हैं कि सबका पेट भर जाए, यही काफी है। लेकिन जरूरी यह भी है कि खाने में सेहत देने वाले पोषक तत्व हों। हमें इस पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।“
425 पीपीएम तक पहुंचा वातावरण में सीओ2 का स्तर
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कार्बन डाइऑक्साइड के 350 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) के स्तर को आधार मानकर यह समझने का प्रयास किया है कि जब यह स्तर 550 पीपीएम पर पहुंचेगा तो क्या होगा।
गौरतलब है कि यह वह स्तर है जिस तक हम इस सदी के अंत तक पहुंच सकते हैं। बता दें कि वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पहले ही 425 पीपीएम तक पहुंच चुका है। मतलब कि हम इस राह पर आधा सफर पहले ही तय कर चुके हैं।
डब्ल्यूएमओ ने अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी है कि 1960 के दशक से सीओ2 में हो रही वृद्धि की दर तीन गुणा बढ़ गई है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक शोध के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि आज हमारी थाली कुछ दशक पहले की तुलना में कम पौष्टिक हो चुकी है। ऐसे में आने वाले समय में हमें अपनी डाइट में बदलाव करने पड़ सकते हैं।
देखा जाए तो यह संकट भूख का नहीं, बल्कि “छुपे कुपोषण” का है, जहां खाना मौजूद है, लेकिन पोषण गायब। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो यह कुपोषण उन लोगों को भी अपनी गिरफ्त में ले सकता है, जो आज खुद को सुरक्षित मानते हैं। शोधकर्ता जोर दे रहे हैं कि फसलों को बदलते मौसम के हिसाब से ढालने पर तुरंत काम शुरू होना चाहिए, चाहे वह खेती के नए तौर-तरीके हों, या ग्रीनहाउस तकनीक या फसलों की बेहतर किस्में, इन सभी पर ध्यान देना जरूरी है।
इसके साथ ही बढ़ते सीओ2 पर भी लगाम बेहद जरुरी है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया तो जलवायु का यह संकट थाली के रास्ते सीधे हमारे शरीर पर हमला करेगा।