
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है
कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 423.9 पीपीएम तक बढ़ गया, जो 1957 के बाद से सबसे बड़ा वार्षिक उछाल है
मीथेन में 166 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जो जलवायु परिवर्तन के लिए गंभीर खतरा है
डब्ल्यूएमओ ने रिपोर्ट में जानकारी दी है कि 1960 के दशक से सीओ2 में हो रही वृद्धि की दर तीन गुणा बढ़ गई है
2011 से 2020 के बीच में यह दर सालाना 0.8 पीपीएम से बढ़कर 2.4 पीपीएम हो गई
वहीं 2023 से 2024 के बीच कार्बन डाइऑक्साइड के वैश्विक औसत स्तर में 3.5 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) की दर से वृद्धि हुई है
इंसानी गतिविधियों के साथ-साथ धधकते जंगलों की वजह से हो रहा उत्सर्जन वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के तेजी से बढ़ते स्तर के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेवार है
साथ ही, भूमि और महासागर जैसे कार्बन “सिंक्स” की सीओ2 को अवशोषण करने की क्षमता में आती गिरावट भी स्थिति को और गंभीर बना रही है
वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। ऐसा ही कुछ 2024 में भी दर्ज किया गया, जब कार्बन डाइऑक्साइड का वार्षिक औसत स्तर बढ़कर 423.9 भाग प्रति मिलियन तक पहुंच गया।
इस बारे में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में पुष्टि की है कि 2024 में वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का स्तर रिकॉर्ड उछाल के साथ नए शिखर पर पहुंच गया, जिससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि का होना करीब-करीब तय हो गया है।
डब्ल्यूएमओ ने रिपोर्ट में जानकारी दी है कि 1960 के दशक से सीओ2 में हो रही वृद्धि की दर तीन गुणा बढ़ गई है। 2011 से 2020 के बीच में यह दर सालाना 0.8 पीपीएम से बढ़कर 2.4 पीपीएम हो गई। वहीं 2023 से 2024 के बीच कार्बन डाइऑक्साइड के वैश्विक औसत स्तर में 3.5 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) की दर से वृद्धि हुई है, जो 1957 में आधुनिक माप शुरू होने के बाद से इसमें दर्ज सबसे बड़ा वार्षिक उछाल है।
सीओ2 के स्तर में आया 12.4 फीसदी का उछाल
गौरतलब है कि जब 2004 में यह बुलेटिन पहली बार प्रकाशित हुआ था, तब डब्ल्यूएमओ के ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच नेटवर्क की माप के अनुसार सीओ2 का वार्षिक औसत स्तर 377.1 पीपीएम था। 2024 में बढ़कर 423.9 पीपीएम पर पहुंच गया है।
मतलब की इसमें पिछले दो दशकों में 12.4 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। बता दें कि 2023 में यह स्तर 420 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) रिकॉर्ड किया गया था।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा जारी ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के नवीनतम अंक के मुताबिक इसके लिए हम इंसान जिम्मेवार हैं। इंसानी गतिविधियों के साथ-साथ धधकते जंगलों की वजह से हो रहा उत्सर्जन वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के तेजी से बढ़ते स्तर के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेवार है। साथ ही, भूमि और महासागर जैसे कार्बन “सिंक्स” की सीओ2 को अवशोषण करने की क्षमता में आती गिरावट भी स्थिति को और गंभीर बना रही है।
वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इससे एक खतरनाक जलवायु चक्र बन सकता है, जिससे जलवायु संकट और गंभीर रूप ले सकता है।
डब्ल्यूएमओ की उप महासचिव को बैरेट ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “सीओ2 और अन्य ग्रीनहाउस गैसें हमारी जलवायु को तेजी से बदल रही हैं और चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ा रही हैं। ऐसे में बढ़ते उत्सर्जन को कम करना सिर्फ जलवायु के लिए ही नहीं, बल्कि हमारी आर्थिक सुरक्षा और समाज की भलाई के लिए भी बेहद जरूरी है।“
चिंता की बात यह है कि हर साल उत्सर्जित होने वाले कुल सीओ2 का करीब आधा वातावरण में ही बना रहता है, जबकि बाकी भूमि और महासागरों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। हालांकि इनका संग्रह स्थाई नहीं है। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, महासागरों की कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की क्षमता घट रही है, क्योंकि बढ़ते तापमान में सीओ2 का पानी में घुलना कम हो जाता है।
कमजोर पड़ रहे कार्बन सिंक्स
इसी तरह पेड़-पौधे और भूमि पर मौजूद अन्य कार्बन सिंक्स भी कई तरह से प्रभावित हो रहे हैं, जिनमें लंबे समय तक पड़ने वाला सूखा जैसी घटनाएं शामिल हैं।
रिपोर्ट में 2023 से 2024 के बीच सीओ2 में हुई रिकॉर्ड वृद्धि के लिए जंगलो में धधकती आग की वजह से बढ़ते उत्सर्जन और भूमि व महासागरों द्वारा सीओ2 के कम अवशोषण को माना गया है। गौरतलब है कि 2024 जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म वर्ष था और इसमें मजबूत अल नीनो की घटना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अल नीनो वर्षों में सीओ2 का स्तर बढ़ने का कारण यह है कि सूखी वनस्पति और जंगल की आग के कारण भूमि के कार्बन सिंक्स कम प्रभावी हो जाते हैं। 2024 में अमेजन और दक्षिण अफ्रीका में असाधारण सूखा और जंगल की आग भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा थे।
डब्ल्यूएमओ की वरिष्ठ वैज्ञानिक ऑक्साना तारासोवा का कहना है, “भूमि और महासागर के सीओ2 सिंक्स कम प्रभावी होते जा रहे हैं, जिससे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ेगी और वैश्विक स्तर पर तापमान और बढ़ जाएगा। इस चक्र को समझने के लिए ग्रीनहाउस गैस की लगातार और मजबूत निगरानी जरूरी है।"
रिपोर्ट में इस बात को लेकर भी चेताया है कि आज वातावरण में उत्सर्जित सीओ2 न केवल मौजूदा जलवायु को प्रभावित कर रहा है, बल्कि इसके लम्बे समय तक वातावरण में बने रहने के कारण यह सैकड़ों सालों तक पृथ्वी की जलवायु पर असर डालता रहेगा।
मीथेन में 166 फीसदी की वृद्धि दर्ज
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड, जो मानव गतिविधियों से जुड़े दूसरी और तीसरी महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस हैं, वे भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी हैं।
2024 में वैश्विक स्तर पर मीथेन का औसत स्तर 1942 भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) रिकॉर्ड किया गया, जो औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में 166 फीसदी अधिक है। इसी तरह नाइट्रस ऑक्साइड भी 25 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 338 पीपीबी तक पहुंच गया है।
मीथेन वातावरण में करीब नौ वर्षों तक बनी रहती है। यह पृथ्वी की बढ़ती गर्मी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और लंबी आयु वाली ग्रीनहाउस गैसों में करीब 16 फीसदी गर्मी पैदा करने वाले प्रभाव के लिए जिम्मेदार है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि करीब 40 फीसदी मीथेन प्राकृतिक स्रोतों, जैसे दलदली क्षेत्र, से वातावरण में उत्सर्जित हो रही है, जो खुद भी जलवायु के प्रति संवेदनशील हैं। बाकी करीब 60 फीसदी मीथेन इंसानी स्रोतों से आ रही है, जिनमें पशुपालन, धान की खेती, जीवाश्म ईंधन का उपयोग, कचरा और बायोमास जलाना जैसे कारण जिम्मेवार हैं।