हम इंसानों की बढ़ती महत्वाकांक्षा प्रकृति के लिए कहीं घातक सिद्ध हो रही है, इसका एक जीता जागता उदाहरण वातावरण में बढ़ता ग्रीन हाउस गैसों का स्तर है, जो साल दर साल नए रिकॉर्ड बना रहा है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डबलूएमओ) के मुताबिक वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में दो दशकों के दौरान 11.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। आंकड़े दर्शाते हैं कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पहले से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है।
यदि 2023 की बात करें तो इस दौरान ग्रीन हाउस गैसों का स्तर एक नए रिकॉर्ड तक पहुंच गया। आशंका है कि इसकी वजह से आने वाले कई वर्षों तक पृथ्वी गर्म बनी रहेगी।
विश्व मौसम संगठन ने ग्रीनहाउस गैसों को लेकर जारी अपने बुलेटिन में जानकारी दी है कि 2023 के दौरान जंगलों में बड़े पैमाने पर लगी आग के साथ-साथ कारखानों और इंसानी गतिविधियों के चलते हो रहे उत्सर्जन की वजह से ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में वृद्धि हुई है। पेड़ों द्वारा कार्बन के अवशोषण में आई कमी ने भी इसमें योगदान दिया है।
बुलेटिन में जो आंकड़े साझा किए हैं उनके मुताबिक 2023 में कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक औसत स्तर 420 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) तक पहुंच गया। मतलब की यदि औद्योगिक काल से पहले (1750 से पहले) की तुलना में देखें तो यह 151 फीसदी अधिक है।
इसी तरह मीथेन का औसत स्तर 1,934 भाग प्रति बिलियन और नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर इस दौरान 336.9 भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) तक पहुंच गया था। मतलब की जहां मीथेन का स्तर औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 265 फीसदी बढ़ चुका है। वहीं नाइट्रस ऑक्साइड के स्तर में वृद्धि का यह आंकड़ा 125 फीसदी दर्ज किया गया।
गौरतलब है कि यह गणना ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच नेटवर्क द्वारा किए लम्बी अवधि में किए अवलोकनों पर आधारित है।
इस बारे में डबलूएमओ महासचिव सेलेस्टे साउलो ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा, "एक और साल, एक और रिकॉर्ड। यह नेताओं के लिए कार्रवाई की चेतावनी है। हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने की राह से भटक चुके हैं।"
इस समझौते का मकसद वैश्विक स्तर पर तापमान में हो रही वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा से नीचे रखना है।" उनके मुताबिक यह महज आंकड़े नहीं हैं सीओ2 में मामूली सी वृद्धि बढ़ते तापमान की वजह बन रही है जो हमारे जीवन और ग्रह को प्रभावित कर रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में सीओ2 का स्तर 2022 की तुलना में कहीं अधिक रहा। हालांकि यदि उससे पहले के तीन वर्षों से तुलना करें तो यह उनसे कम रहा। बता दें कि 2023 के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में 2.3 पीपीएम की वृद्धि दर्ज की गई। मतलब की यह लगातार 12वां साल है जब इसमें दो पीपीएम से ज्यादा की वृद्धि रिकॉर्ड की गई है।
बता दें कि डबलूएमओ द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के बारे में जारी किया जाने वाला यह बुलेटिन संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में साझा की जाने वाली एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट है। ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच स्टेशनों ने जो आंकड़े साझा किए हैं उनके मुताबिक 2004 से कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 11.4 फीसदी (42.9 पीपीएम) बढ़ चुका है। 2004 में वातावरण में मौजूद सीओ2 का स्तर 377.1 पीपीएम दर्ज किया गया था।
गौरतलब है कि ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन उत्सर्जन के बजाय वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को ट्रैक करता है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि सीओ2 उत्सर्जन का करीब आधा हिस्सा वातावरण में बना रहता है।
वहीं इसमें से एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा महासागरों द्वारा और 30 फीसदी से कम को जमीनी पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। हालांकि यह समीकरण साल दर साल अल नीनो और ला नीना जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण बदलते रहते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अल नीनो वर्षों के दौरान, ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ जाता है, क्योंकि सूखे पौधे और जंगलों में लगने वाली आग भूमि की कार्बन को सोखने की क्षमता को कम कर देती हैं।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने अपनी नई एमिशन गैप रिपोर्ट में भी बढ़ते उत्सर्जन को लेकर भयावह तस्वीर प्रस्तुत की थी। यह दोनों ही रिपोर्ट अजरबैजान के बाकू में होने वाले कॉप-29 सम्मलेन से ठीक पहले जारी की गई हैं।
डबलूएमओ के उप महासचिव को बैरेट के मुताबिक बुलेटिन चेतावनी देता है कि हम एक खतरनाक चक्र का सामना कर सकते हैं। जलवायु में प्राकृतिक रूप से आने वाला बदलाव कार्बन चक्र पर भी गहरा असर डालता है।
हालांकि निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र को कहीं अधिक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए मजबूर कर सकता है। इसी तरह धधकते जंगल वातावरण में कहीं अधिक कार्बन मुक्त कर सकते हैं। ऐसा ही कुछ महासागरों के मामले में भी देखने को मिलेगा जहां गर्म होते महासागर सीओ2 की उतना मात्रा अवशोषित नहीं करेंगे, जितनी वो करते हैं।
इसकी वजह से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ सकता है। नतीजन वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि में इजाफा होगा। ऐसे में जलवायु में आता बदलाव समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय बन सकता है।