कॉप-30: वेबसाइटों का बढ़ रहा है डिजिटल कार्बन फुटप्रिंट, चौंकाने वाला खुलासा

जलवायु सम्मेलनों की वेबसाइटें पर्यावरण पर बढ़ा रही हैं डिजिटल बोझ, अध्ययन में 13,000 फीसदी अधिक कार्बन उत्सर्जन का खुलासा हुआ।
शोध के मुताबिक, औसतन सात गुना अधिक उत्सर्जन, एक सामान्य वेबसाइट की तुलना में कॉप साइटें प्रति पेज अधिक ऊर्जा खर्च करती हैं।
शोध के मुताबिक, औसतन सात गुना अधिक उत्सर्जन, एक सामान्य वेबसाइट की तुलना में कॉप साइटें प्रति पेज अधिक ऊर्जा खर्च करती हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • कॉप वेबसाइटों से कार्बन उत्सर्जन में 13,000 फीसदी से अधिक वृद्धि, 1995 से 2024 के बीच डिजिटल प्रभाव कई गुना बढ़ा।

  • औसतन सात गुना अधिक उत्सर्जन, एक सामान्य वेबसाइट की तुलना में कॉप साइटें प्रति पेज अधिक ऊर्जा खर्च करती हैं।

  • कॉप-29 वेबसाइट से 116.85 किलोग्राम सीओ2 उत्सर्जन, जिसे अवशोषित करने में 10 पेड़ों को एक साल लगेगा।

  • मुख्य कारण: भारी मल्टीमीडिया सामग्री, जटिल डिजाइन और गैर-नवीकरणीय सर्वर उपयोग।

  • शोधकर्ताओं की सिफारिश: पेज आकार सीमित करें, ग्रीन होस्टिंग अपनाएँ और डिजिटल कार्बन फुटप्रिंट की निगरानी करें।

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हर साल आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र के कॉनफ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप) सम्मेलनों का उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा करना है। लेकिन एक नई शोध रिपोर्ट ने एक चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया है, जिन सम्मेलनों में पर्यावरण की सुरक्षा पर चर्चा होती है, उनकी वेबसाइटें स्वयं कार्बन उत्सर्जन कर रही हैं।

ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबरा के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन को प्लोस क्लाइमेट नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। शोध के अनुसार, 1995 से लेकर 2024 तक कॉप सम्मेलनों की वेबसाइटों के कार्बन उत्सर्जन में 13,000 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है।

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अध्ययन कैसे किया गया

शोधकर्ताओं ने इंटरनेट के पुराने अभिलेखों (वेब आर्काइव) का उपयोग किया, जिनमें वेबसाइटों के पुराने संस्करण संरक्षित रहते हैं। इन अभिलेखों का विश्लेषण करके टीम ने पिछले 30 सालों में कॉप वेबसाइटों के आकार, संरचना और कार्बन उत्सर्जन में हुए बदलावों को मापा।

इस अध्ययन में पाया गया कि 1995 से लेकर 2008 (कॉप-14) तक वेबसाइटें अपेक्षाकृत हल्की थीं। उस समय एक पृष्ठ को देखने पर औसतन 0.02 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित होता था। लेकिन 2009 के बाद से, यानी कॉप-15 से वेबसाइटों का डिजिटल भार और उनका कार्बन प्रभाव दोनों तेजी से बढ़ने लगे।

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शोध के मुताबिक, औसतन सात गुना अधिक उत्सर्जन, एक सामान्य वेबसाइट की तुलना में कॉप साइटें प्रति पेज अधिक ऊर्जा खर्च करती हैं।

2024 में आयोजित कॉप-29 की वेबसाइट के प्रत्येक पृष्ठ से औसतन 2.4 ग्राम सीओ2 उत्सर्जित होने का अनुमान लगाया गया, जो कि एक सामान्य इंटरनेट पृष्ठ (0.36 ग्राम) की तुलना में लगभग सात गुना अधिक है।

कार्बन उत्सर्जन में विस्फोटक वृद्धि

1997 में आयोजित कॉप-3 सम्मेलन (पहला वर्ष जिसके लिए इंटरनेट डेटा उपलब्ध है) के दौरान वेबसाइट पर हुई कुल विजिट से लगभग 0.14 किलोग्राम सीओ2 उत्सर्जन हुआ था, यह मात्रा एक परिपक्व पेड़ द्वारा दो दिनों में अवशोषित किए गए कार्बन के बराबर है।

इसके विपरीत, 2024 के कॉप-29 सम्मेलन की वेबसाइट से कुल उत्सर्जन लगभग 116.85 किलोग्राम सीओ2 तक पहुंच गया। इस मात्रा को अवशोषित करने में 10 परिपक्व पेड़ों को पूरे एक वर्ष का समय लगेगा। यानी पिछले लगभग 27 वर्षों में डिजिटल कार्बन उत्सर्जन में 83,000 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।

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क्यों बढ़ा वेबसाइटों का कार्बन उत्सर्जन?

इस तेज वृद्धि के कई कारण बताए गए हैं :

  • मल्टीमीडिया कंटेंट का बढ़ना: अब वेबसाइटों पर वीडियो, एनिमेशन, इंफोग्राफिक और हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेज का प्रयोग बहुत बढ़ गया है।

  • वेबसाइट का जटिल ढांचा: नई तकनीकों और डिजाइन फ्रेमवर्क्स से वेबसाइटें आकर्षक तो बनती हैं, पर साथ ही डेटा लोड बढ़ जाता है।

  • सर्वर की ऊर्जा खपत: कई वेबसाइटें अभी भी नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित सर्वरों पर नहीं चल रही हैं, जिससे बिजली की खपत और कार्बन उत्सर्जन दोनों बढ़ जाते हैं।

  • ऑनलाइन ट्रैफ़िक में वृद्धि: कॉप सम्मेलनों की लोकप्रियता के कारण वेबसाइट पर लाखों लोग एक साथ पहुंचते हैं, जिससे इंटरनेट डेटा ट्रांसफर और ऊर्जा की मांग बढ़ जाती है।

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समाधान और सुझाव

  • शोधकर्ताओं ने इस समस्या के समाधान के लिए कुछ व्यावहारिक सुझाव भी दिए हैं :

  • वेबसाइट का आकार सीमित करें: अनावश्यक चित्र, वीडियो या जटिल एनीमेशन से बचें।

  • कोड और डिजाइन को अनुकूल बनाएं: साइट को हल्का और तेज लोड होने वाला बनाया जाए।

  • नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करें: वेबसाइटों को ऐसे सर्वरों पर होस्ट करें जो सौर या पवन ऊर्जा से संचालित हों।

  • डिजिटल उत्सर्जन की निगरानी करें: वेबसाइट प्रबंधकों को नियमित रूप से अपने डिजिटल कार्बन फुटप्रिंट की रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।

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शोधकर्ताओं ने अपनी विश्लेषणात्मक कंप्यूटर कोड को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया है ताकि अन्य संस्थान भी अपनी वेबसाइटों के ऐतिहासिक और वर्तमान पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन कर सकें।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि वेबसाइटों का डिजिटल पदचिह्न अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, यहां तक कि वे संगठन भी इसे नजरअंदाज करते हैं जो पर्यावरण की रक्षा की बात करते हैं। हमारा शोध दिखाता है कि डिजिटल उपस्थिति की एक लागत होती है, जिसे समझना और घटाना जरूरी है।

शोध में कहा गया है कि आजकल कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) पर बहुत चर्चा होती है, लेकिन वेबसाइटें अब भी इंटरनेट के सबसे बड़े और स्थायी डिजिटल माध्यमों में से एक हैं। इनका पर्यावरणीय प्रभाव बहुत व्यापक है।

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यह अध्ययन एक गहरी विडंबना को उजागर करता है : जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करने वाले सम्मेलन स्वयं डिजिटल प्रदूषण का स्रोत बन गए हैं।

आज इंटरनेट वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का लगभग तीन फीसदी हिस्सा है। इस संदर्भ में, डिजिटल स्थिरता अब उतनी ही जरूरी हो गई है जितनी ऊर्जा, परिवहन या उद्योग क्षेत्र में है।

यदि संस्थान और सरकारें अपनी डिजिटल नीतियों में पर्यावरणीय दृष्टिकोण को शामिल करें, तो इंटरनेट को भी “हरित” (ग्रीन) बनाया जा सकता है। कॉप वेबसाइटों का यह अध्ययन हमें यही याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ाई केवल भौतिक दुनिया में नहीं, बल्कि डिजिटल दुनिया में भी लड़ी जानी चाहिए।

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