जंगलों के काटे जाने से बढ़ रहा तापमान: कॉप-30 में पेश किया जाएगा ऑनलाइन मानचित्र

नए ऑनलाइन मानचित्र के जरिए दिखाया गया कैसे उष्णकटिबंधीय जंगलों की कटाई स्थानीय तापमान और मानव स्वास्थ्य प्रभावित करती है।
मानव स्वास्थ्य पर असर: 30 करोड़ से अधिक लोग भयंकर तापमान के संपर्क में और हर साल 28,000 मौतें गर्मी से जुड़ी हैं।
मानव स्वास्थ्य पर असर: 30 करोड़ से अधिक लोग भयंकर तापमान के संपर्क में और हर साल 28,000 मौतें गर्मी से जुड़ी हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • वनों की कटाई से तापमान वृद्धि: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थानीय तापमान पांच डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

  • मानव स्वास्थ्य पर असर: 30 करोड़ से अधिक लोग भयंकर तापमान के संपर्क में और हर साल 28,000 मौतें गर्मी से जुड़ी हैं।

  • इंटरैक्टिव ऑनलाइन मानचित्र: क्षेत्र, जिला या प्रांत स्तर पर तापमान वृद्धि को दिखाने वाला टूल, उपलब्ध अंग्रेजी और पुर्तगाली में।

  • वनों की जलवायु भूमिका: पेड़ छाया, वाष्पोत्सर्जन और सीओ2 अवशोषण के जरिए स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करते हैं।

  • नीतिगत और सामाजिक उपयोग: सरकारें, एनजीओ और शोधकर्ता मानचित्र का उपयोग वन संरक्षण, कृषि और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के लिए कर सकते हैं।

कॉप-30, कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज की बैठक आज, 10 नवंबर से ब्राजील के बेलेम शहर में शुरू हो गई है। यह 21 नवंबर 2025 तक चलेगी। इसमें बदलती जलवायु पर जद्दोजहद होगी। जिनमें से एक दुनिया भर में हर तरफ बढ़ता तापमान भी शामिल है, इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें से एक जगलों का सफाया करना भी है।

दुनिया भर में जंगलों का काटा जाना एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बन चुकी है। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के शोधकर्ताओं ने एक इंटरैक्टिव ऑनलाइन मानचित्र विकसित किया है, जो यह दिखाता है कि जंगलों का काटा जाना उष्णकटिबंधीय इलाकों में तापमान को कितनी तेजी से बढ़ा सकता है। उनके निष्कर्षों के अनुसार, कुछ क्षेत्रों में जंगलों के काटे जाने के कारण तापमान पांच डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

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यह नई तकनीक सरकारों, संरक्षण संगठनों और कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी साबित हो सकती है। इससे वे यह जान सकेंगे कि जंगलों के काटे जाने से उनके स्थानीय क्षेत्र के स्वास्थ्य, खाद्य उत्पादन और कृषि उत्पादकता पर किस प्रकार प्रभाव डाल सकती है।

क्या कहता है शोध?

लीड्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक अध्ययन प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने केंद्रीय और दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में जंगलों के काटे जाने से स्थानीय तापमान में वृद्धि के संबंध का विश्लेषण किया।

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नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि उष्णकटिबंधीय जंगलों के कटने के कारण 30 करोड़ से अधिक लोग भयंकर तापमान की जद में आ सकते हैं। इसके साथ ही, हर साल 28,000 लोगों की गर्मी से संबंधित मृत्यु जंगलों के काटे जाने से जुड़ी हुई है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि स्थानीय तापमान में वृद्धि न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि यह जल सुरक्षा, कृषि और जलवायु अनुकूलन क्षमता के लिए भी गंभीर परिणाम ला सकती है, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय इलाकों में रहने वाले कमजोर समुदायों के लिए।

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तापमान बढ़ने का कारण

जंगल प्राकृतिक रूप से स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। जंगलों के काटे जाने के बाद ये निम्नलिखित कारणों से तापमान बढ़ता है:

  • छाया का नुकसान: पेड़ धूप को रोकते हैं। पेड़ कटने के बाद अधिक सूर्य की गर्मी सतह पर पहुंचती है।

  • वाष्पोत्सर्जन में कमी: पेड़ हवा में नमी छोड़ते हैं, जो प्राकृतिक शीतलन प्रदान करती है। पेड़ कटने से यह प्रक्रिया रुक जाती है।

  • कार्बन डाइऑक्साइड का संचय: पेड़ सीओ2 अवशोषित करते हैं। उनकी कमी से ग्रीनहाउस गैसें बढ़ती हैं

  • वायुमंडलीय नमी में कमी: यह बारिश को कम करती है और वातावरण को सूखा और गर्म बनाती है।

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इंटरैक्टिव मानचित्र

शोध में कहा गया है कि इस मानचित्र की खासियत यह है कि यह उपयोगकर्ताओं को क्षेत्र, जिला या प्रांत स्तर पर तापमान वृद्धि दिखाता है। उदाहरण के लिए:

  • ब्राजील के अमेजन के रोंडोनिया राज्य में जंगलों के काटे जाने से 2.1 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ा सकती है।

  • दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में यह वृद्धि तीन डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकती है।

  • तंजानिया के कटावी क्षेत्र में यह वृद्धि पांच डिग्री सेल्सियस से भी अधिक हो सकती है।

  • यह उपकरण अंग्रेजी और पुर्तगाली भाषा में उपलब्ध है, ताकि वर्तमान में चल रहे कॉप 30 सम्मेलन में इसका अधिकतम उपयोग किया जा सके।

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सरकारी और सामाजिक उपयोग

यह मानचित्र सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और शोधकर्ताओं को यह समझने में मदद करता है कि जंगलों के काटे जाने वाले इलाकों के जलवायु पर कैसे प्रभाव डालती है। इसके माध्यम से वे वन संरक्षण रणनीति बना सकते हैं। स्थानीय स्वास्थ्य और कृषि पर वनों के प्रभाव का आकलन कर सकते हैं। जलवायु अनुकूलन और प्राकृतिक आपदा तैयारी के लिए योजनाएं बना सकते हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह पहला ऐसा उपकरण है जो उष्णकटिबंधीय देशों के हितधारकों को स्थानीय जलवायु पर जंगलों के काटे जाने के प्रभाव को समझने में मदद करता है। उम्मीद है कि इससे नीति निर्माताओं को वन संरक्षण को प्राथमिकता देने में मदद मिलेगी।

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अंतरराष्ट्रीय पहल

यह उपकरण ट्रॉपिकल फारेस्ट फॉरएवर फैसिलिटी नामक ब्राजील के नेतृत्व वाली पहल से जुड़ा है। इसे यूके सरकार का समर्थन हासिल है और कॉप-30 सम्मेलन में इसका परिचय दिया गया।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि वन समाज के लिए मूल्यवान पारिस्थितिकी सेवाएं प्रदान करते हैं। इस शोध और मानचित्र से यह स्पष्ट होता है कि वन संरक्षण और वृक्षारोपण स्थानीय जलवायु अनुकूलन में कितने प्रभावी हो सकते हैं।

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जंगल न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जंगलों के काटे जाने के कारण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तापमान में वृद्धि हो रही है, जो मानव स्वास्थ्य, कृषि और जलवायु अनुकूलन क्षमता पर गंभीर प्रभाव डालती है।

इस नई इंटरैक्टिव मानचित्र और वैज्ञानिक शोध की मदद से नीति निर्माता, शोधकर्ता और स्थानीय समुदाय बेहतर निर्णय ले सकते हैं और वनों के संरक्षण को प्राथमिकता दे सकते हैं। जंगलों को बचाना अब केवल पर्यावरण की बात नहीं, बल्कि मानव जीवन और सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता बन गया है।

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