उष्णकटिबंधीय इलाकों में जंगलों के काटे जाने से बारिश में कमी और फसल उपज घटी

शोध टीम का कहना है कि एक फीसदी बारिश कम होने के कारण फसल की पैदावार में औसतन 0.5 फीसदी की गिरावट आई
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, अमेजन रियल
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उष्णकटिबंधीय जंगलों में रहने वाले लोगों ने अक्सर इस बात की शिकायत की है कि पेड़ों को काटे जाने के बाद जलवायु गर्म और शुष्क हो जाती है। लेकिन अब तक, वैज्ञानिक पेड़ों के आवरण के नुकसान और वर्षा में गिरावट के बीच एक स्पष्ट संबंध की पहचान नहीं कर पाए हैं।

लीड्स विश्वविद्यालय के एक शोध टीम ने जंगलों के काटे जाने और वर्षा के उपग्रह संबंधी आंकड़ों को यह दिखाने के लिए जोड़ा कि पिछले 14 वर्षों में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वृक्षों के आवरण का नुकसान वर्षा में कमी से जुड़ा हुआ था।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि सदी के अंत तक, यदि कांगो में जंगलों के काटे जाने की दर जारी रही, तो इस क्षेत्र की बारिश में आठ से 12 फीसदी की कमी  हो सकती है। इससे जैव विविधता और खेती पर बड़े प्रभाव पड़ सकते हैं। कांगो के जंगल, जो कार्बन जमा करने के मामले में दुनिया के सबसे बड़े भंडारों में से हैं।

उन्होंने कहा, उष्णकटिबंधीय वन स्थानीय और क्षेत्रीय वर्षा पैटर्न को बनाए रखने में मदद करके हाइड्रोलॉजिकल चक्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उष्णकटिबंधीय जंगलों को काटे जाने के कारण वर्षा में कमी से पानी की कमी और कम फसल की पैदावार होने से आसपास रहने वाले लोगों पर असर पड़ेगा।

उष्णकटिबंधीय वन स्वयं जीवित रहने के लिए नमी पर भरोसा करते हैं और जंगल के शेष क्षेत्र शुष्क जलवायु से प्रभावित होंगे।

शोधकर्ताओं ने उष्णकटिबंधीय के तीन इलाकों अमेजन, कांगो और दक्षिण पूर्व एशिया में जंगलों के नुकसान के प्रभाव को देखा, जहां सभी ने तेजी से भूमि उपयोग में बदलाव का अनुभव किया है। अध्ययन में 2003 से 2017 तक उपग्रह अवलोकनों का विश्लेषण शामिल था, ताकि उन स्थानों की पहचान की जा सके जहां जंगलों को साफ कर दिया गया था। इन क्षेत्रों में वर्षा के आंकड़े, जिन्हें उपग्रहों द्वारा भी मापा जाता है, की तुलना आस-पास के स्थानों से हुई वर्षा से की गई थी जहां जंगल नष्ट नहीं हुए थे।

अध्ययन से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय जंगलों के नुकसान के कारण साल भर वर्षा में कमी आई, जिसमें शुष्क मौसम भी शामिल है जब किसी भी तरह के सूखे से पौधे और पशु पारिस्थितिक तंत्र पर सबसे बड़ा प्रभाव पड़ेगा। वर्षा में सबसे बड़ी गिरावट नमी वाले मौसम में देखी गई, जिसमें वन आवरण के प्रत्येक प्रतिशत बिंदु के नुकसान के लिए वर्षा में 0.6 मिमी प्रति माह की कमी देखी गई।

शोधकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन से सूखे में वृद्धि होगी और निरंतर जंगलों को काटे जाने से यह और बढ़ जाएगा। ऐसा माना जाता है कि पेड़ के आवरण का नुकसान उस प्रक्रिया को बाधित करता है जहां पत्तियों से नमी-वाष्पीकरण नामक एक तंत्र के माध्यम से-वातावरण में वापस आ जाती है जहां यह अंततः बादलों बनते है जिससे बारिश होती है।

प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करने के साथ-साथ वर्षा में कमी कृषि और जल विद्युत संयंत्रों के लिए भी हानिकारक होगी। इसका जंगलों के स्वस्थ कामकाज और स्थानीय समुदायों दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

शोध टीम का कहना है कि बारिश में हर एक फीसदी की कमी से फसल की पैदावार में औसतन 0.5 फीसदी की गिरावट आई है।

लीड्स में स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायरनमेंट के प्रोफेसर डॉमिनिक स्प्रैकलेन, ने कहा, जंगलों की कटाई वाले क्षेत्रों के पास रहने वाले स्थानीय लोग अक्सर जंगलों के साफ होने के बाद एक गर्म और शुष्क जलवायु होने की बात करते हैं। लेकिन अब तक यह प्रभाव वर्षा अवलोकन में नहीं देखा गया था।

अध्ययन वर्षा को बनाए रखने में उष्णकटिबंधीय जंगलों के महत्वपूर्ण महत्व को दर्शाता है। हालांकि जंगलों को काटे जाने से रोकने के प्रयास किए गए हैं, फिर भी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वन आवरण का नुकसान जारी है।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वर्षा में गिरावट का जैव विविधता पर बुरा असर पड़ता है, जंगल की आग का खतरा बढ़ जाता है और कार्बन को अलग करने की प्रक्रिया कम हो जाती है, जहां प्रकृति वातावरण से कार्बन को हटाती है और इसे संग्रहीत करती है। यह शोध नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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