
दुनिया भर में हर साल 14 जुलाई को विश्व चिम्पांजी दिवस मनाया जाता है ताकि जानवरों के साम्राज्य के सबसे करीबी रिश्तेदारों में से एक, चिम्पांजी के बारे में जागरुकता बढ़ाई जा सके।
यह दिन 1960 के उस दिन की याद में मनाया जाता है जब डॉ. जेन गुडॉल ने पहली बार तंजानिया के अब गोम्बे स्ट्रीम राष्ट्रीय उद्यान में कदम रखा था और जंगली चिम्पांजी पर अपना अनोखा अध्ययन शुरू किया था। उनके काम ने इन बुद्धिमान प्राइमेट्स की समझ में क्रांति ला दी और उनके संरक्षण के लिए एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दिया।
विश्व चिम्पांजी दिवस न केवल एक उत्सव है, बल्कि कार्रवाई का आह्वान भी है। यह इन असाधारण प्राणियों और उन पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करने की जिम्मेवारी की याद दिलाता है जिन पर वे निर्भर हैं। संरक्षण प्रयास, नैतिक अनुसंधान, आवास संरक्षण और शिक्षा ये सभी उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
विश्व चिम्पांजी दिवस सहानुभूति, विज्ञान और स्थिरता की वकालत करने का एक अवसर प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि आने वाली पीढ़ियों को एक ऐसी दुनिया विरासत में मिले जहां चिम्पांजी केवल जीवित ही नहीं, बल्कि फल-फूल सकें।
चिम्पांजी हमारे सबसे करीबी रिश्तेदार हैं, फिर भी जंगलों के काटे जाने और जलवायु परिवर्तन व आवास के नुकसान के कारण उनकी संख्या हर दिन कम होती जा रही है।
चिम्पांजी पशु जगत में हमारे सबसे करीबी आनुवंशिक रिश्तेदार हैं। इनके और मनुष्य के 98 फीसदी से अधिक डीएनए एक जैसे हैं। हालांकि चिम्पांजी और बंदर दोनों ही प्राइमेट हैं, लेकिन चिम्पांजी बंदर नहीं हैं, चिम्पांजी महाकपि (ग्रेट एप) हैं और बंदरों के विपरीत, इनकी पूंछ नहीं होती।
डॉ. गुडॉल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह देखा और व्यापक रूप से प्रचारित किया कि चिम्पांजी औजार बनाते और इस्तेमाल करते हैं, उनकी संचार प्रणाली और सामाजिक संरचना जटिल होती है और वे परोपकारी भी हो सकते हैं।
जेजीआई के गोम्बे स्ट्रीम रिसर्च सेंटर में, जहां सबसे लंबे समय से चल रहा जंगली चिम्पांजी अध्ययन और चिम्पाउंगा चिम्पांजी पुनर्वास केंद्र है, हम इन अद्भुत, अनोखे और बुद्धिमान जीवों से सीखते रहते हैं। इनका जीवन पूर्ण है और इनका सामाजिक ढांचा जटिल है, जिसमें घनिष्ठ मित्रता भी शामिल है।
चिम्पांजी लगभग 21 अफ्रीकी देशों में पाए जाते हैं, जिनमें से अधिकांश मध्य अफ्रीका में पाए जाते हैं। चिम्पांजी की सबसे बड़ी संख्या मुख्यतः वर्षावन के इलाकों में पाई जाती है क्योंकि उन्हें पानी की आपूर्ति और फलों तक पहुंच की जरूरत पड़ती है।
इंसानों की तरह, चिम्पांजी भी अपने भोजन और सुरक्षा के लिए स्वनिर्मित औजारों का इस्तेमाल करते हैं और उन्होंने ऐसा करने के अनोखे तरीके खोज निकाले हैं। अपने टीलों से दीमक निकालने के लिए छोटी शाखाओं का इस्तेमाल करने से लेकर, अखरोट तोड़ने के लिए पत्थर तोड़ने और खुद को खुजलाने के लिए टहनी की सही लंबाई ढूंढने तक, चिम्पांजी औजारों को अपने फायदे में इस्तेमाल करने में असली काबिलियत रखते हैं।
चिम्पांजी ज्यादातर खाद्य पदार्थ खाने में खुश रहते हैं, लेकिन वे किसी भी अन्य खाद्य समूह की तुलना में ज्यादा फल खाते हैं। चिम्पांजी के आहार में बीज, पत्ते, कीड़े, शहद और यहां तक कि जड़ें भी शामिल होती हैं। हालांकि यह भी देखा गया है कि वे मांस के लिए बंदरों या छोटे मृगों जैसे अन्य वन्यजीवों का शिकार करते हैं। चिम्पांजी के लिए, भोजन करना अधिकतर एक व्यक्तिगत गतिविधि है, लेकिन कभी-कभी वे एक समूह में भी काम करते देखे जाते हैं।
सबसे उम्रदराज चिम्पांजी लिटिल मम्मा थी, जो एक बंदी मादा थी और 2017 में उसकी मृत्यु के समय उसकी उम्र 76 से 82 वर्ष के बीच थी। हालांकि बंदी चिम्पांजी की औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 38 वर्ष होती है।
जंगल में चिम्पांजी के जीवनकाल को दर्ज करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन एक शोध में पाया गया है कि युगांडा के किबाले राष्ट्रीय उद्यान के न्गोगो में रहने वाले चिम्पांजी की औसत जीवन प्रत्याशा 33 वर्ष है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने चिम्पांजी को एक लुप्तप्राय प्रजाति घोषित किया है। बढ़ती मानवजनित गतिविधियों जैसे लकड़ी काटने, खनन, तेल निकालने और राजमार्ग परियोजनाओं के कारण चिम्पांजी के प्राकृतिक आवासों का काफी नुकसान हुआ है और उन पर काफी प्रभाव पड़ा है।