वैज्ञानिकों ने केंद्रीय म्यांमार के जंगलों में रहने वाली एक नई प्रजाति के लंगूर की पहचान की है। भूरे बाल, मास्क लगे जैसा चेहरे वाला यह जानवर पेड़ों पर रहता है।
अध्ययन के अनुसार लाखों साल पहले पाए जाने वाले इस लंगूर का नाम विलुप्त हो चुके ज्वालामुखी के घर के नाम पर रखा गया था, जिन्हें पोपा लंगूर के नाम से जाना जाता है, तब जिनकी सबसे बड़ी आबादी लगभग 100 की थी।
आज ये जंगलों में केवल 200 से 250 बचे हैं, विशेषज्ञों का सुझाव है कि पत्ती खाने वाली इस प्रजाति को गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया जाए। यांगून में फॉना एंड फ्लोरा इंटरनेशनल (एफएफआई) के शोधकर्ता फ्रैंक मोम्बर्ग ने कहा पोपा लंगूर पहले से ही विलुप्त होने का सामना कर रहा है।
अध्ययन में पाया गया कि आंखों के चारों ओर छल्ले वाले इस लंगूर को शिकार, इसके निवास स्थान को होने वाले नुकसान, लगातार कम होता निवास, कृषि के चलते जंगलों पर अतिक्रमण, अवैध या निरंतर लकड़ी की कटाई से खतरा है।
नई प्रजाति का पहला सबूत जंगली नहीं बल्कि लंदन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय से आया है, जहां आनुवांशिक विश्लेषण से पता चला है कि नमूने एक सदी से भी पहले इकट्ठा किए गए थे जब बर्मा एक ब्रिटिश उपनिवेश था।
मोम्बर्ग और उनके साथियों द्वारा जंगल में एकत्र किए गए पोपा पोप के नमूनों को संग्रहालय के उन नमूनों से मिलान किया और देखा कि पहले के अज्ञात लंगूर अभी भी जंगलों में घूम रहे थे। 2018 में इन बंदरों को फिल्म में कैद किया गया था, जिससे उनके विशिष्ट फर रंग और निशान का पता चलता है। यह अध्ययन जूलॉजिकल रिसर्च नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
ट्रचीपिथेकस पोपा, या टी. पोपा में भूरे और सफेद रंग का पेट होता है, जिसकी हाथ और कलाई काली होती हैं जो दस्ताने की तरह दिखाई देते हैं। इसकी पूंछ लगभग एक मीटर की होती है, जो इसके शरीर की तुलना में लंबी है, इसका वजन लगभग आठ किलोग्राम है।
खतरे में हैं लंगूर की अधिकतम प्रजातियां
दुनिया में लंगूर की 20 से अधिक प्रजातियां हैं, उनमें से कई गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं। सबसे प्रसिद्ध ग्रे या हनुमान लंगूर है, जिसका नाम हिंदू महाकाव्य रामायण में दूर-दूर की यात्रा करने वाले बंदर जिनका नाम भगवान के नाम पर रखा गया है।
इस नए अध्ययन में 30 से अधिक शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने व्यापक समूह, या जीनस के विकास के इतिहास को डिकोड किया, जिसमें लंगूरों के 41 नमूनों के माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम के अनुक्रमण शामिल थे।
उन्होंने पाया कि चार अलग-अलग समूह-पूर्व एशिया में बांग्लादेश और भूटान से पश्चिम में वियतनाम और दक्षिणी चीन से पूर्व में 40 लाख साला पहले बिखरे हुए थे। सदी की शुरुआत से कम से कम दो दर्जन लंगूर (प्राइमेट्स) की खोज की गई है, कई के आनुवंशिक विश्लेषण के माध्यम से पता चलता है कि दिखने में समान ये प्रजातियां वास्तव में अलग थीं। आज दुनिया भर में इनकी 20 से अधिक प्रजातियां गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं।