बड़े वानरों के लिए खतरा बना कोरोनावायरस: विशेषज्ञ

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोरोनावायरस से दुनिया भर में लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ बड़े वानरों को भी खतरा है। इनमें चिंपांजी, बोनोबोस, गोरिल्ला और वनमानुष शामिल हैं
Photo: Needpix
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विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोरोनावायरस से दुनिया भर में लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ बड़े वानरों को भी खतरा है। इनमें चिंपांजी, बोनोबोस, गोरिल्ला और वनमानुष शामिल हैं। ये बड़े वानर सांस की बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।

25 अध्ययनकर्ताओं के एक समूह ने कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के खतरों को देखते हुए सुझाव दिया है कि वाइल्ड लाइफ सेंचुरी व चिड़ियाघरों में लोगों के जाने पर पा‍बंदी लगानी चाहिए या लोगों की संख्या सीमित कर देनी चाहिए।

अमेरिका की एमोरी विश्वविद्यालय के रोग पारिस्थितिक विशेषज्ञ और अध्ययनकर्ता थॉमस गिलेस्पी कहते हैं कि कोविड-19 से बड़े वानरों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह अध्ययन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 

कुछ देशों ने पहले ही इन बड़े वानरों के रहने वाली जगहों पर लोगों के जाने तथा पर्यटन पर रोक लगा दी है। 

चिंपांजी, बोनोबोस और गोरिल्ला उप-सहारा अफ्रीका के कुछ हिस्सों में रहते हैं, और वनमानुष इंडोनेशिया और मलेशिया के वर्षावनों के मूल निवासी हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने चिम्पांजियों और बोनोबोस को लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया है, जबकि गोरिल्ला और वनमानुष अधिक लुप्तप्राय प्रजाति है। ये वानर पहले से ही इनके रहने की जगहों को छीने जाने, अवैध शिकार के कारण खतरे में हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों में सामान्य सर्दी जैसे वायरस के हल्के प्रभाव हैं, अगर इन जंगली वानरों के संपर्क आते हैं तो ये जानवर मर भी सकते हैं। विशेषज्ञों को डर है कि यह बड़े वानरों के लिए विनाशकारी हो सकता है।

अभी तक के साक्ष्यों से पता चलता है कि कोविड-19 उन लोगों द्वारा फैलाया जा सकता है, जिनमें हल्के लक्षण भी होते हैं।

गिलेस्पी कहते हैं कि कर्मचारियों को उन अभयारण्यों में रहना चाहिए, लेकिन उनकी कर्मचारियों की संख्या की जानी चाहिए और इन कर्मचारियों को कोरोनावायरस संक्रमण से खुद को बचा कर रखना चाहिए। गिलेस्पी आईयूसीएन के एक सदस्य के रूप में उन्होंने संगठन में बड़े वानरों की आबादी में स्वास्थ्य निगरानी और रोग नियंत्रण के लिए सर्वोत्तम दिशानिर्देश बनाने में मदद की है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि हमें इन बड़े वानरों को लोगों के द्वारा फैलाए जाने वाले रोगाणुओं से बचाने के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी। इन संकटग्रस्त प्रजातियों पर हमारी गतिविधियों से पड़ने वाले खराब प्रभावों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

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