ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने बाकू में चल रहे जलवायु शिखर सम्मलेन कॉप-29 में घोषणा की है कि यूनाइटेड किंगडम का लक्ष्य 1990 की तुलना में 2035 तक अपने कुल उत्सर्जन में 81 फीसदी की कटौती करना है।
गौरतलब है कि यह लक्ष्य की नई जलवायु कार्य योजना का हिस्सा है, जिसे 2035 के लिए जारी किया गया है। यूके ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के तहत उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य निर्धारित किया है। बता दें कि एनडीसी पेरिस समझौते के तहत देशों द्वारा अपने उत्सर्जन में कटौती से जुड़े लक्ष्यों का हिस्सा है।
2015 में पेरिस समझौते के तहत देशों ने अपने उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के अपने प्रयासों की रूपरेखा तैयार की थी। इन प्रतिबद्धताओं को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) कहा जाता है। इसके तहत हर पांच साल में देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को अपडेट करना होता है।
यूके ने इस योजना को पेरिस समझौते के एक हिस्से के रूप में 2025 के लिए प्रस्तुत किया है। बता दें कि पेरिस समझौते का लक्ष्य वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है और यदि संभव तो सके तो इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने से रोके रखना है।
स्टार्मर ने कहा, "हमने इस कॉप को एक अवसर के रूप में लिए है और सभी पक्षों से अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ने का आग्रह किया है, जैसा कि हमने पिछले कॉप में सहमति जताई थी।"
यह घोषणा जलवायु परिवर्तन समिति (सीसीसी) द्वारा यूके के एनडीसी के लिए की गई अनुशंसा के बाद की गई है। सीसीसी एक समूह है जो उत्सर्जन लक्ष्यों पर सरकार को सलाह देता है और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में हुई कटौती की प्रगति पर संसद को रिपोर्ट करता है।
"यूके द्वारा जारी यह नया एनडीसी डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने का एक प्रभावी तरीका है और 2035 के लिए वास्तविक महत्वाकांक्षा का प्रतिनिधित्व करता है। अब, इसे कार्रवाई में बदलने का समय आ गया है। इस लक्ष्य को विश्वसनीय बनाने के लिए यूके को अपनी नीतियों के विकास में तेजी लानी चाहिए।"
यह बातें क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कही गई हैं। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर एक स्वतंत्र समूह हो जो सरकार की जलवायु कार्रवाइयों को मापता है।
यूके को जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने की है जरूरत
ग्रांथम इंस्टीट्यूट ने सरकार के इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य की प्रशंसा की है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि अब यूके को जीवाश्म ईंधन के उत्पादन और उपयोग से तेजी से दूरी बनाने की आवश्यकता है। साथ ही इस बदलाव के दौरान श्रमिकों और स्थानीय समुदायों को सहायता देने के लिए स्पष्ट कदम उठाने की जरूरत है।
क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ने 2030 के लिए यूके के मौजूदा एनडीसी को "अपर्याप्त" माना है। उसने अपने वेबसाइट पर लिखा है, "इसका मतलब है कि यूके को अपनी जलवायु नीतियों और कार्रवाइयों में बड़े सुधारों की आवश्यकता है ताकि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जा सके।
यह नए लक्ष्य ऐसे समय में सामने आए हैं जब ब्रिटेन 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने में तेल और गैस उद्योग को एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखता है।
इस साल मई 2024 में नॉर्थ सी ट्रांजिशन अथॉरिटी (एनएसटीए) ने उत्तरी सागर में तेल और गैस की खोज के लिए 31 लाइसेंस दिए। इससे पहले जनवरी में शेल, इक्विनोर, बीपी, टोटल, एनईओ के साथ-साथ 12 अन्य कंपनियों को 24 लाइसेंस दिए गए हैं।
इसके साथ ही यूके ने कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) में करीब 2200 करोड़ पाउंड का निवेश करने की भी योजना बनाई है। ये तकनीकें प्रदूषण पैदा करने वाले स्रोतों से कार्बन डाइऑक्साइड को पकड़ती हैं और उसे जमीन के भीतर संग्रहीत करती हैं।
हालांकि, यूसीएल से जुड़े प्रोफेसर मार्क मसलिन ने द कन्वर्सेशन में लिखा है, "यूके 2050 के बाद भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रह सकता है, यह वही साल है जिसमें यूके नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करने की योजना बना रहा है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक गैस की वजह से मीथेन के रिसाव के साथ-साथ परिवहन और प्रसंस्करण से अतिरिक्त उत्सर्जन भी होता है। मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो कार्बन डाइऑक्साइड से 80 गुना अधिक शक्तिशाली है।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर ने अपने एक बयान में कहा कि, "2025 ले लिए प्रस्तुत किए जाने वाले एनडीसी में विभिन्न क्षेत्रों के लिए विज्ञान आधारित लक्ष्य, वैश्विक समीक्षा के परिणाम, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं, खाद्य प्रणाली में परिवर्तन और प्रकृति संरक्षण को भी शामिल किया जाना चाहिए।"
संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2024 के लिए जारी एमिशन गैप रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि मजबूत प्रतिज्ञाओं के बिना वर्तमान एनडीसी का पालन किया जाता है, जो फरवरी 2025 तक लागू होना है, तो सदी के अंत तक दुनिया 2.6 डिग्री सेल्सियस तक अधिक गर्म हो सकती है।