भीषण गर्मी के साथ वायु प्रदूषण का मेल बना भारतीयों के लिए जानलेवा

शोधकर्ताओं ने 2008 से 2019 के बीच भारत के 10 प्रमुख शहरों में रोजाना होने वाली मौतों के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद निष्कर्ष जारी किया
फोटो: विकास चौधरी/ सीएसई
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हर साल भारतीय शहर दो जाने-पहचाने अनदेखे दुश्मनों से जूझते हैं। इनमें से एक है जानलेवा गर्मी तो दूसरा जहरीली हवा। लेकिन क्या हो अगर ये दोनों एक साथ हमला करें?

इस बारे में स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्मेंटल मेडिसिन द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि भीषण गर्मी और वायु प्रदूषण का मेल मृत्यु के जोखिम को नाटकीय रूप से बढ़ा सकता है। मतलब कि भारतीय शहरों में उन दिनों में मृत्यु का जोखिम तेजी से बढ़ जाता है, जब वायु प्रदूषण और भीषण गर्मी दोनों ही अधिक होते हैं।

अध्ययन में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि यह जोखिम उन दिनों की तुलना में बहुत अधिक होता है, जब इनमें से केवल एक कारक मौजूद होता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायरमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं।

अब तक कई शोधों में वायु प्रदूषण और भीषण गर्मी के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर किया गया है। लेकिन इन दोनों का मेल किस हद तक जानलेवा साबित हो सकता है इस बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है। यह कमी खास तौर पर भारत जैसे देशों में कहीं ज्यादा खलती है, जहां हर साल गर्मी और प्रदूषण दोनों ही अक्सर अपने खतरनाक स्तर पर पहुंच जाते हैं।

इसे समझने के लिए कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में 2008 से 2019 के बीच भारत के 10 प्रमुख शहरों में रोजाना होने वाली मौतों के आंकड़ों को शामिल किया है। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने इन शहरों में वायु प्रदूषण और तापमान के दैनिक स्तरों का पता लगाने के लिए दो उन्नत वैज्ञानिक मॉडलों का उपयोग किया है।

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करीब 36 लाख मौतों का अध्ययन करके उन्होंने पाया है कि जब तापमान बेहद अधिक था, तो प्रदूषण के महीन कणों (पीएम2.5) और मौतों के बीच सम्बन्ध बहुत मजबूत था।

शोधकर्ताओं ने समय के साथ वायु प्रदूषण, गर्मी और मौतों के बीच संबंध का अध्ययन करने के लिए उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों की मदद ली है। उन्होंने विशेष रूप से इस बात का अध्ययन किया कि कैसे प्रदूषण का उच्च स्तर और भीषण गर्मी का संयोजन मृत्यु के जोखिम को बढ़ा देते हैं, और कैसे इनमें से एक का प्रभाव दूसरे के बढ़ने पर बदल जाता है।

बढ़ते तापमान के साथ बिगड़ सकती है स्थिति

अध्ययन में पाया गया कि अत्यधिक गर्म दिनों में, यदि पीएम2.5 का स्तर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर बढ़ जाता है, तो इसके साथ ही रोजाना होने वाली मौतों का आंकड़ा भी 4.6 फीसदी बढ़ जाता है। यह सामान्य गर्म दिनों में देखी गई 0.8 फीसदी की वृद्धि से कहीं अधिक है।

इसी तरह जब तापमान गर्म से बेहद गर्म हो गया, तो पीएम2.5 के स्तर के 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होने के साथ मृत्यु का जोखिम 8.3 फीसदी बढ़ गया। वहीं प्रदूषण के स्तर के 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक बढ़ने के साथ यह जोखिम भी 64 फीसदी तक बढ़ गया।

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ऐसे में यह निष्कर्ष गर्मी और वायु प्रदूषण के बीच एक चिंताजनक तालमेल को उजागर करते हैं। यह दर्शाते हैं कि स्वास्थ्य पर इनके संयुक्त प्रभाव किसी भी अकेले कारक की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक है।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर जेरोन डी बोंट ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "निष्कर्ष वायु प्रदूषण और भीषण गर्मी के संयुक्त प्रभावों को उजागर करते हैं, जो विशेष रूप से घनी आबादी वाले शहरों में सबसे अधिक खतरनाक होते हैं, जहां यह दोनों समस्याएं अक्सर एक साथ होती हैं।"

ऐसे में उनके मुताबिक लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए, वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन दोनों की वजह बनने वाले उत्सर्जन को जल्द से जल्द सीमित करने के लिए तत्काल प्रयास किए जाने की जरूरत है।

अध्ययन में इस बात पर जोर दिया है कि भारत को वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन दोनों से निपटने के लिए एक संयुक्त कार्य योजना की आवश्यकता है, क्योंकि वैश्विक तापमान में वृद्धि के साथ भविष्य में स्थिति और खराब हो सकती है।

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देखा जाए तो वैश्विक तापमान में इजाफे के साथ भारत में भी गर्मी का कहर बढ़ रहा है। इस साल भी भारत में गर्मी और लू के थपेड़ों ने समय से पहले ही दस्तक दे दी है। इतना ही नहीं हाल के वर्षों की तुलना में इस बार रातें भी पहले ही गर्म होने लगी हैं। आईएमडी ने पुष्टि की है कि पिछले 125 वर्षों में फरवरी में कभी इतनी गर्मी नहीं पड़ी जितनी इस साल 2025 में दर्ज की गई है।

ऐसा नहीं कि सिर्फ लू की घटनाएं समय से पहले दस्तक दे रहीं हैं। साथ ही इनकी तीव्रता भी बढ़ रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो 15 मार्च, 2025 को ओडिशा के बौध में भारत का सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया। इस दौरान भीषण गर्मी का कहर जारी रहा।

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16 मार्च को बौध में तापमान 43.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इसके बाद झारसुगुड़ा में 42 डिग्री सेल्सियस और बोलनगीर में 41.7 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था।

इसी तरह भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने पुष्टि की थी कि 1901 के बाद से औसत और न्यूनतम तापमान के लिहाज से अक्टूबर 2024 अब तक का सबसे गर्म अक्टूबर का महीना था।

यह आंकड़े इस बात के सबूत हैं कि भारत में भी तापमान तेजी से बढ़ रहा है, उसके साथ ही प्रदूषण का मेल दोहरी मार कर रहा है। ऐसे में इस दोहरे खतरे से निपटने के लिए पुख्ता रणनीतियों की आवश्यकता है।

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