बढ़ती गर्मी और बेतरतीब शहरीकरण से उबलते शहर; फोटो: आईस्टॉक
बढ़ती गर्मी और बेतरतीब शहरीकरण से उबलते शहर; फोटो: आईस्टॉक

बढ़ती गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन ही नहीं बेतरतीब शहरीकरण भी है जिम्मेवार, भारत में भी दिखने लगा है असर

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से जुड़े शोधकर्ताओं का दावा है कि अकेले शहरीकरण ने भारतीय शहरों में गर्मी को 60 फीसदी तक बढ़ा दिया है
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दुनिया में बढ़ती गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन को दोषी माना जाता रहा है, लेकिन साथ ही इसका एक अपराधी बेतहाशा होता शहरीकरण भी है। आज जिस तरह प्राकृतिक आवासों को पाट कंक्रीट के जंगल तैयार करने की जो होड़ लगी है उससे इन शहरी जंगल में रहने वाले लोगों का जीवन ही दुश्वार होता जा रहा है। दिल्ली जैसे शहरों में तो इसका खुलकर असर सामने आने लगा है, जहां दिन ही नहीं रात में भी तापमान गिरने का नाम नहीं ले रहा।

गौरतलब है कि दिल्ली में एक महीने से भी ज्यादा समय से तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बना हुआ है। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बढ़ते तापमान के लिए सिर्फ जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेवार है। क्या जिस तरह से पेड़ों को काट, झीलों को पाट शहरीकरण किया जा रहा है वो इस गर्मी में इजाफा नहीं कर रहा? वैज्ञानिक भी इससे इत्तेफाक रखते हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक बढ़ते तापमान और गर्मी में शहरीकरण की बड़ी भूमिका है, जो न केवल स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बढ़ते तापमान की वजह बन रहा है। लेकिन यह शहरी विस्तार गर्मी में कितना योगदान दे रहा है, यह लम्बे समय से सवालों के घेरे में रहा है।

हालांकि पहले यह माना जाता था कि दुनिया में शहरी विस्तार इतना कम है, जो बड़े पैमाने पर जलवायु को प्रभावित नहीं कर सकता। लेकिन एक नए अध्ययन से पता चला है कि शहरीकरण वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को स्पष्ट रूप से प्रभावित कर रहा है। वैज्ञानिकों का यह भी मत है कि जैसे-जैसे शहरी विस्तार बढ़ रहा है, उसके साथ ही जलवायु पर उनका प्रभाव और बढ़ सकता है।

जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि जिन क्षेत्रों में बेहद तेजी से शहरीकरण हो रहा है वहां यह प्रभाव कहीं ज्यादा नाटकीय है। उदाहरण के लिए चीन के यांग्त्जी नदी बेसिन क्षेत्र में, जहां चीन की करीब एक तिहाई आबादी बसती है। वहां 2003 से 2019 के बीच शहरी विस्तार ने बढ़ती गर्मी में करीब 40 फीसदी का योगदान दिया है। इसी तरह जापान में जहां करीब 10 फीसदी हिस्से पर शहरी विस्तार हो चुका है, वहां अध्ययन के दौरान बढ़ती गर्मी के एक चौथाई हिस्से के लिए शहरीकरण जिम्मेवार था।

हालांकि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में यह प्रभाव बेहद सीमित था, इन क्षेत्रों में शहरीकरण की वजह से बढ़ती गर्मी में दो से तीन फीसदी की वृद्धि हुई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक शायद ऐसा इसलिए है क्योंकिं इन क्षेत्रों में अधिकांश विकास अध्ययन से पहले ही हो चुका था। साथ ही छोटे क्षेत्रों और अन्य देशों की तुलना में अभी भी वहां बहुत अधिक भूमि खाली है।

वैश्विक स्तर पर देखें तो शहरीकरण सतह के तापमान में हुई वृद्धि के एक फीसदी के लिए जिम्मेवार है। जो दिन के दौरान तापमान में 1.3 फीसदी जबकि रात के तापमान में 1.1 फीसदी की वृद्धि की वजह रहा है। इसका मतलब है कि शहरी प्रभाव को वैश्विक जलवायु मॉडल में शामिल किए जाने की जरूरत है।

देखा जाए तो शहरीकरण एक व्यापक शब्द है, जिसमें न केवल शहरी निर्माण शामिल है। साथ ही शहरों में होने वाला वायु प्रदूषण, मौजूद पार्क, जल स्रोत और बढ़ती आबादी जैसे कारक भी इसमें शामिल हैं, जो शहरी जीवन से जुड़े हैं और जलवायु को प्रभावित करते हैं।

बहुत सारे शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि शहर कई तरह से जलवायु को प्रभावित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए शहरी इमारतें गर्मी को सोख लेती हैं और उसे अपने में समेटे रहती हैं। नतीजन शहरों को ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में गर्म और ठंडा होने में कहीं ज्यादा समय लगता है। इसका मतलब है कि शहरों में रहने वाले लोगों को ग्रामीणों की तुलना में ज्यादा समय असहज गर्मी का सामना करना पड़ता है। इसी तरह शहर परिदृश्य हवा के प्रवाह को भी बदल सकते हैं, यहां तक की यह चरम मौसम को भी और बदतर बना सकते हैं।

अध्ययन में साझा किए आंकड़ों के मुताबिक 1992 से 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर शहरी क्षेत्र में 226 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि इन तीन दशकों से भी कम समय में शहरी क्षेत्र में 448,113 वर्ग किलोमीटर का विस्तार हुआ है। जो पिछली पूरी सदी में देखी गई शहरी वृद्धि से कहीं अधिक है।

शहरीकरण की मार से सुरक्षित नहीं भारतीय शहर

ज्यादातर यह वृद्धि एशिया में दर्ज की गई है। आंकड़ों के मुताबिक जहां अमेरिका ने इस दौरान शहरी क्षेत्र में 181 फीसदी की वृद्धि देखी है। वहीं भारत के लिए यह आंकड़ा 366 फीसदी रहा, जबकि चीन में 413 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

स्थानीय तौर पर देखें तो शहरीकरण का प्रभाव कहीं ज्यादा स्पष्ट है लेकिन क्या क्षेत्रीय, महाद्वीपीय या पृथ्वी के लिहाज से देखें तो बढ़ता शहरीकरण मायने रखता है। एक प्रेस विज्ञप्ति में शोधकर्ता तीर्थांकर चक्रवर्ती का कहना है कि "हां, वे ऐसा करते हैं, लेकिन बहुत कम।" उनके मुताबिक भले ही वैश्विक स्तर पर इसका प्रभाव उतना स्पष्ट न हो लेकिन जब बात महाद्वीपों या देशों की हो तो यह काफी स्पष्ट है। वहीं जब दुनिया के कुछ क्षेत्रों को बारीकी से देखें तो यह प्रभाव काफी बड़े हो सकते हैं।

चक्रवर्ती का कहना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहां देखते हैं। उदाहरण के लिए ग्रीनलैंड के मामले में, जहां अध्ययन के दौरान बहुत कम शहरीकरण हुआ है, वहां शहरी विस्तार ने बड़े पैमाने पर गर्मी पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं डाला है। लेकिन दूसरी तरफ एशिया के कुछ हिस्सों में जहां तेजी से शहरीकरण हो रहा है, वहां प्रभाव बड़े ज्यादा स्पष्ट हैं।

इन क्षेत्रों में गर्मी तेजी से बढ़ रही है, जो कहीं न कहीं बढ़ते शहरीकरण की देन है। शोधकर्ताओं के मुताबिक शहरीकरण इस स्तर पर पहुंच चुका है कि वैश्विक जलवायु पर उसके प्रभाव पहले से कहीं ज्यादा स्पष्ट हैं, लेकिन उत्सर्जन और इंसानी बदलावों की तुलना में उनका प्रभाव अभी भी कम है।

अध्ययन में यह भी कहा है कि अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट वैश्विक तापमान में होती वृद्धि का एक प्रमुख कारण नहीं है। हालांकि वो तापमान में हो रही वृद्धि में योगदान जरूर दे रहा है। शोधकर्ताओं का यह भी मत है कि जलवायु पर शहरी प्रभाव बेहद जटिल है। रिसर्च में रेगिस्तानी क्षेत्रों का उदाहरण देते हुए लिखा है कि वहां शहरीकरण से तापमान में गिरावट आई है। उन्होंने पाया है कि शुष्क क्षेत्रों में पार्कों और कृषि भूमि में इजाफा करने से शहरों को कुछ हद तक ग्लोबल वर्मिंग के प्रभावों का सामना करने में मदद मिली है।

इस नए अध्ययन में भी इसी तरह की प्रवति देखी गई है। भारत और अफ्रीका के कई शुष्क शहरों में विकास के साथ दिन के समय तापमान में गिरावट आई है। चक्रवर्ती के मुताबिक भारत में यह ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही सिंचाई की वजह से है जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान के अंतर को प्रभावित करता है। साथ ही शहरों से एरोसोल का उत्सर्जन भी होता है। जो इसपर असर डालता है।

देखा जाए तो जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, ज्यादा से ज्यादा लोग शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। इसका मतलब है कि इससे जलवायु मॉडल के लिए शहरी क्षेत्रों का सटीक प्रतिनिधित्व करना बहुत ज़रूरी हो गया है। इससे शोधकर्ताओं को क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तनों की बेहतर भविष्यवाणी करने और योजना बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही इसकी मदद से इन बदलावों से निपटने और उनके अनुकूल होने के प्रयासों का दिशा मिलेगी।

चक्रवर्ती के मुताबिक जलवायु मॉडल में शहरी विस्तार को शामिल करके, हम स्थानीय पैमाने पर लू की भविष्यवाणी करने की अपनी क्षमता में सुधार कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि शहरीकरण भारी बारिश की घटनाओं को बढ़ा सकता है, लेकिन मौजूदा मॉडल शहरी क्षेत्रों और उनकी विशेषताओं को पर्याप्त तौर पर शामिल न करने की वजह से सटीक आंकलन में संघर्ष कर रहे हैं।

उनके अनुसार कुछ ऐसे चीजे हैं जिनके बारे में हम नहीं जानते। शहरीकरण, व्यापक जलवायु पैटर्न को कैसे प्रभावित करता है, हमने इस बारे में पर्याप्त अध्ययन नहीं किया है। हमें इस बात का भी बहुत कम अंदाजा है कि शहरीकरण से प्रेरित अन्य प्रतिक्रियाएं क्या हैं, और वो कैसे जलवायु पर असर डाल सकते हैं। ऐसे में बेहतर शहरी नियोजन बढ़ती गर्मी और तापमान के प्रभावों को सीमित करने में मददगार साबित हो सकता है।

गौरतलब है कि हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर ने अपने एक अध्ययन में खुलासा किया है कि भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी के करीब 60 फीसदी के लिए बढ़ता शहरीकरण जिम्मेवार है। बढ़ती गर्मी पर शहरीकरण का यह प्रभाव जबलपुर, गोरखपुर, आसनसोल, जमशेदपुर, मंगलौर, श्रीनगर, भागलपुर, भुवनेश्वर, मुजफ्फरपुर, कटक, देहरादून और रायपुर जैसे शहरों पर कहीं ज्यादा स्पष्ट है। कुल मिलकर देखें तो अध्ययन किए गए भारतीय शहरों में शहरीकरण ने बढ़ते तापमान में औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक का योगदान दिया है। यदि दिल्ली से जुड़े आंकड़ों को देखें तो शहरीकरण ने बढ़ती गर्मी में 32.6 फीसदी का योगदान दिया है।

अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की 68 फीसदी आबादी शहरों में रह रही होगी। देखा जाए तो सामाजिक उन्नति का संकेत माने जाने के बावजूद तेजी से होते अनियोजित शहरीकरण ने दुनिया के कई हिस्सों में पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है, इससे स्वयं इंसान भी सुरक्षित नहीं है।

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