किसानों पर महंगा पड़ रहा बिजली संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण, पैदावार में कर रहा दस फीसदी की गिरावट

कोयला बिजली संयंत्रों से पैदा हो रहे नाइट्रोजन डाइऑक्साइड पर लगाम से गेहूं और धान की पैदावार को सालाना 82 करोड़ डॉलर का फायदा होगा
किसानों पर महंगा पड़ रहा बिजली संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण, पैदावार में कर रहा दस फीसदी की गिरावट
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भारत में बिजली संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण किसानों को महंगा पड़ रहा है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से पैदा हो रहा नाइट्रोजन ऑक्साइड देश के कई हिस्सों में गेहूं और धान की पैदावार में सालाना दस फीसदी या उससे अधिक की गिरावट की वजह बन रहा है।

यह अध्ययन स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि गेहूं और धान देश की दो प्रमुख खाद्यान फसलें हैं, जो बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए बेहद मायने रखती हैं। भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। इतना ही नहीं यह दुनिया में कुपोषण से जूझ रहे एक-चौथाई लोगों का भी घर है। ऐसे में न केवल किसानों के लिए बल्कि खाद्य सुरक्षा के लिए भी इन फसलों की पैदावार बेहद महत्वपूर्ण है।

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो दर्शाते हैं कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से उत्सर्जित हो रहे नाइट्रोजन डाइऑक्साइड पर लगाम से गेहूं और धान की पैदावार में इजाफा हो सकता है। इससे किसानों को सालाना 82 करोड़ डॉलर का फायदा होगा।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता कीरत सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “हम जानना चाहते थे कि किस तरह भारत में कोयले से होने वाला उत्सर्जन फसलों को प्रभावित कर रहा है।“ उनके मुताबिक बिजली उत्पादन के लिए कोयले का बढ़ता उपयोग खाद्य उत्पादन को नुकसान पहुंचा सकता है।

पिछले शोधों से पता चला है कि कोयले के उपयोग से हो रहा प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। इसके साथ ही यह न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि पर्यावरण पर भी गहरा असर डाल रहा है। बता दें कि भारत में अभी भी बिजली की 72 फीसदी आपूर्ति कोयले पर निर्भर है।

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अध्ययन के मुताबिक पिछले शोधों से भी पता चला है कि वायु प्रदूषण फसलों की पैदावार को नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से फसलों को होने वाले नुकसान के बारे में बेहद कम अनुमान हैं। वहीं एक दशक से भी अधिक समय में किए शोधों से पता चला है कि ओजोन, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे वायु प्रदूषक फसलों की पैदावार को नुकसान पहुंचाते हैं।

वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण भारत में गेहूं और धान की पैदावार को कैसे प्रभावित कर रहा है। इसके लिए उन्होंने एक मॉडल की मदद ली है। उन्होंने हवा के पैटर्न, 144 बिजली संयंत्रों की गतिविधि और उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली है, ताकि यह समझा जा सके कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड फसलों को कितना नुकसान पहुंचाता है।

उत्सर्जन में रोकथाम से किसानों को होगा करोड़ों डॉलर का फायदा

वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह बिजली संयंत्र 100 किलोमीटर के दायरे में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के प्रदूषण में इजाफा कर रहे हैं, जो फसलों को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में यदि फसलों के प्रमुख सीजन (जनवरी-फरवरी और सितंबर-अक्टूबर) के दौरान इस प्रदूषण पर लगाम लगाई जाए तो धान उत्पादन को सालाना 42 करोड़ डॉलर और गेहूं उत्पादन को 40 करोड़ डॉलर का फायदा होगा।

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अध्ययन के मुताबिक छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्यों में जहां बिजली उत्पादन में कोयले की बड़ी हिस्सेदारी है, वहां कोयले से होने वाला उत्सर्जन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण का करीब 13 से 19 फीसदी तक होता है। वहीं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण में कोयले की हिस्सेदारी तीन से पांच फीसदी है। वहीं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के अन्य स्रोतों में कार और कारखानों में जीवाश्म ईंधन की वजह से होने वाला उत्सर्जन शामिल है।

विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि कोयला बिजली संयंत्रों की वजह से होने वाली मौतों की तुलना में फसलों को होने वाला नुकसान आमतौर पर कम होता है।  हालांकि, बिजली की प्रति यूनिट के लिए फसलों को होने वाला नुकसान अधिक हो सकता है। अध्ययन किए गए 144 संयंत्रों में से 58 में धान की क्षति मौतों की तुलना में अधिक थी। इसी तरह गेहूं के लिए, 35 संयंत्रों में फसल को होने वाला नुकसान मौतों की तुलना में अधिक था।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि भविष्य में उत्सर्जन को कम करने से बड़े फायदे सामने आ सकते हैं। ऐसे में भारत में कोयला बिजली संयंत्रों से होने वाले उत्सर्जन से जुड़े नियमों को बनाते समय फसलों को होने वाले नुकसान और स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों दोनों पर विचार करना जरूरी है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रदूषण कम करने वाली नीतियों से न केवल स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा साथ ही किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। इतना ही नहीं इसका फायदा जलवायु को भी मिलेगा साथ ही लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।

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