
एक चौंकाने वाली वैश्विक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दुनिया की करीब 16 फीसदी कृषि भूमि जहरीली भारी धातुओं (हैवी मैटल्स) की वजह से जहरीली हो चुकी है। इसकी वजह से 140 करोड़ लोगों की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है।
दुनिया में कृषि भूमि का छठा हिस्सा हिस्सा भारी धातुओं की वजह से दूषित हो चुका है। मतलब की करीब 24.2 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र ऐसा हैं, जहां मिट्टी में जहरीली धातुओं का स्तर सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक है। चिंता की बात है कि सबसे अधिक खतरे वाले क्षेत्रों में दक्षिणी चीन, उत्तरी और मध्य भारत, और मध्य पूर्व के हिस्से शामिल हैं, जहां मिट्टी में भारी धातुओं की मात्रा पहले से बहुत अधिक है।
यह अध्ययन चीन, अमेरिका और ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए हैं।
भारी धातुएं यानी हैवी मैटल्स वे तत्व होते हैं, जो प्राकृतिक या मानव-निर्मित स्रोतों से उत्पन्न होते हैं। इन्हें भारी इसलिए कहतें हैं क्योंकि इन धातुओं का घनत्व परमाणु स्तर पर बहुत अधिक होता है। मतलब कि ये सामान्य धातुओं से कहीं अधिक वजनदार होती हैं।
यह भारी धातुएं आसानी से खत्म नहीं होती, इस वजह से दशकों तक मिट्टी में बनी रह सकती हैं। जहां फसलें इन्हें अवशोषित कर लेती हैं, और यह खाद्य श्रृंखला का हिस्सा बन जाती हैं। समय के साथ, ये शरीर में जमा होती जाती हैं और ऐसे स्थाई रोग उत्पन्न कर सकती हैं, जिनके लक्षण सामने आने में कई साल लग सकते हैं।
आपको जानकार हैरानी होगी की जो मिट्टी हमारे जीवन का आधार है, उसकी ऊपरी परत के केवल कुछ सेंटीमीटर हिस्से को बनने में करीब एक हजार से अधिक वर्ष लगते हैं। वहीं हम इंसान जिस तेजी से इसका दोहन कर रहे हैं उसके चलते हर पांच सेकंड में धरती पर एक सॉकर पिच के बराबर मिट्टी नष्ट हो रही है।
गौरतलब है कि यह पहली बार है जब वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में मिट्टी में मौजूद भारी धातुओं के प्रदूषण का इतने बड़े स्तर पर विश्लेषण किया है। अपने अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने दुनिया भर से जुटाए गए करीब आठ लाख मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया है। इसके साथ ही उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से उन इलाकों की पहचान की है जहां जमीन में जहर सबसे ज्यादा फैल चुका है।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने सात जहरीली धातुओं आर्सेनिक, कैडमियम, कोबाल्ट, क्रोमियम, कॉपर, निकल और सीसा पर ध्यान केंद्रित किया है। शोधों से पता चला है कि इन भारी धातुओं की मात्रा अगर तय सीमा से अधिक हो तो वो इंसानों, जानवरों और पौधों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। यह पेट की समस्या, किडनी सम्बन्धी बीमारियों और कैंसर का कारण बन सकती हैं।
स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बन रहा जहर
जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था के समय भारी धातुओं के संपर्क में आने से बच्चे में जन्म के समय होने वाली समस्याएं जैसे समय से पहले जन्म और जन्म के समय बच्चे का कम वजन हो सकती हैं।
साथ ही महिलाओं में प्रीक्लैम्प्सिया (बच्चे के जन्मे के समय उच्च रक्तचाप) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हालांकि ऐसा क्यों होता है इस बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है।
देखा जाए तो अगर लोग लंबे समय तक आर्सेनिक, कैडमियम या सीसे के संपर्क में रहते हैं, तो उन्हें कैंसर, किडनी की बीमारी, हड्डियों के कमजोर होने (ऑस्टियोपोरोसिस) और बच्चों में विकास संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। मतलब कि भारत जैसे देशों में जहां लोगों का भोजन ज्यादातर एक ही अनाज, जैसे चावल या गेहूं पर निर्भर होता है, वहां यह खतरा और भी अधिक बढ़ जाता है।
रिसर्च से पता चला है कि मिट्टी में मौजूद यह भारी धातुएं फसलों और पानी के जरिए खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकती हैं। इसकी वजह से लंबे समय तक स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर पड़ता है।
अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि दुनिया की 14 से 17 फीसदी कृषि भूमि पहले ही किसी न किसी भारी धातु से जहरीली हो चुकी है। इस जमीन में इन भारी धातुओं की मात्रा तय सीमा से कहीं अधिक है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि करीब 90 से 140 करोड़ लोगों ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं जो गंभीर खतरे में हैं।
वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की है कि मिट्टी में घुलता यह जहर सिर्फ प्राकृतिक नहीं है। इंसानी गतिविधियां जैसे उद्योग, खनन और खेतों में बढ़ता केमिकल्स का बढ़ता उपयोग भी इसका बड़ा कारण है।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने भी चेताया है कि यदि मौजूदा हालात जारी रहे, तो 2050 तक दुनिया की 90 फीसदी मिट्टी खतरे में पड़ सकती है। इसके लिए मिट्टी का कटाव, केमिकल युक्त खाद, कीटनाशकों का जरूरत से ज्यादा उपयोग, और औद्योगिक प्रदूषण जैसे कारण जिम्मेवार हैं।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ‘ग्लोबल एसेस्समेंट ऑफ सॉइल पोल्युशन: समरी फॉर पॉलिसी मेकर्स’ नामक रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि मिट्टी पर बढ़ते दबाव के लिए लिए अनियंत्रित तरीके से बढ़ रही औद्योगिक गतिविधियां, कृषि, खनन और शहरी प्रदूषण मुख्य रूप से जिम्मेवार हैं।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने आंकड़ों की कमी को भी उजागर किया है। अध्ययन के मुताबिक खासतौर पर अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में आंकड़ों की कमी के चलते असल स्थिति और भी ज्यादा भयावह हो सकती है।
यह अध्ययन एक वैज्ञानिक चेतावनी की तरह सामने आया है, जो नीति-निर्माताओं, किसानों और समाज से यह अपील करता है कि वे मिट्टी, भोजन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जल्द से जल्द और ठोस कदम उठाएं।