59 फीसदी प्रजातियों को आसरा देती है मिट्टी, लेकिन संकट में है 33 फीसदी हिस्सा

मृदा करीब 90 फीसदी कवक प्रजातियों का घर है। इसके अलावा यह पौधों की 86 और बैक्टीरिया की 44 फीसदी से ज्यादा प्रजातियों को आसरा प्रदान करती है
केंचुए और घोंघे जैसे मोलस्क प्रजातियों का 20 फीसदी हिस्सा अपने जीवन के लिए मृदा के सहारे है; फोटो: आईस्टॉक
केंचुए और घोंघे जैसे मोलस्क प्रजातियों का 20 फीसदी हिस्सा अपने जीवन के लिए मृदा के सहारे है; फोटो: आईस्टॉक
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मिट्टी जीवन का आधार है। इसे कृषि और खाद्य उत्पादन के दृष्टिकोण से काफी अहम समझा जाता है। लेकिन साथ ही यह जैवविविधता को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। क्या आप जानते हैं मिट्टी सबसे अधिक प्रजाति समृद्ध क्षेत्र हैं, जो पृथ्वी पर मौजूद 59 फीसदी प्रजातियों का आसरा देती है। 

इनमें छोटे सूक्ष्म जीवों से लेकर स्तनधारी तक शामिल हैं। यह जीवन के लिए किसी खजाने से कम नहीं, जो अनगिनत प्रजातियों को सहारा देती है। वर्षों से कोरल रीफ्स, गहरे समुद्र या वर्षावनों में पेड़ों की छतनार चोटियों को अक्सर जैवविविधता के हॉटस्पॉट के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन नए अध्ययन से पता चला है कि मृदा प्रजातियों की जैवविविधता के मामले में इनसे कहीं आगे हैं। रिसर्च के अनुसार मृदा, पृथ्वी पर सबसे अधिक प्रजाति-समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र है।

इस बारे में स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट, स्नो एंड लैंडस्केप के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने वैश्विक स्तर पर मिट्टी में मौजूद जैवविविधता का पहला विस्तृत अध्ययन किया है। इसमें ज्यूरिख विश्वविद्यालय और एग्रोस्कोप कृषि अनुसंधान स्टेशन से जुड़े वैज्ञानिक भी शामिल थे। अध्ययन के नतीजे जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मौजूदा वैज्ञानिक शोधों का विश्लेषण किया है और  मृदा में पाई जाने वाली प्रजातियों के डेटासेट की दोबारा जांच की है। अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं, उनके अनुसार पृथ्वी पर मौजूद प्रजातियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, करीब 59 ± 15 मृदा में वास करता है। देखा जाए तो यह आंकड़ा 2006 में वैज्ञानिकों द्वारा जारी अनुमान से दोगुणा है, जिसमें अनुमान लगाया गया था कि पृथ्वी पर 25 फीसदी जीवन मिट्टी पर आधारित है।

90 फीसदी कवक प्रजातियों का घर है मिट्टी

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि मृदा करीब 90 फीसदी कवक (फंगी) प्रजातियों का घर है। इसके अलावा यह पौधों की 86 फीसदी और बैक्टीरिया की 44 फीसदी से ज्यादा प्रजातियों को आसरा प्रदान करती है। वहीं केंचुए और घोंघे जैसे मोलस्क प्रजातियों का 20 फीसदी हिस्सा अपने जीवन के लिए मृदा के ही सहारे है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और पारिस्थितिकी विज्ञानी मार्क ए एंथोनी का कहना है कि, "हालांकि, किसी ने भी अभी तक मृदा में बैक्टीरिया, वायरस, आर्किया, कवक और एककोशिकीय जैसे बहुत छोटे जीवों की विविधता का अनुमान लगाने का प्रयास नहीं किया है। फिर भी वे मिट्टी में पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, कार्बन भंडारण के लिए महत्वपूर्ण हैं, और रोगजनकों के साथ-साथ पेड़ों के भागीदार के रूप में अहम भूमिका निभाते हैं।“

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह भी जानकारी दी है कि चूंकि मिट्टी की विविधता के बारे में, विशेष रूप से दक्षिण में पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं है। ऐसे में कुछ मामलों में अध्ययन निष्कर्ष की विस्तृत रेंज को दर्शाते हैं।

उदाहरण बैक्टीरिया को ही देखें तो मिट्टी इनकी 25 से 88 फीसदी तक प्रजातियां रहती हैं। इसी तरह वायरसों को लेकर भी बहुत ज्यादा अनिश्चितताएं हैं, जिनको अक्सर इंसानो ले लिए रोगजनक समझा जाता है। अन्य शोध से पता चला है कि एक चम्मच स्वस्थ मिट्टी में 100 करोड़ तक बैक्टीरिया और एक किलोमीटर से अधिक कवक हो सकते हैं।

देखा जाए तो मृदा कृषि और पोषण के दृष्टिकोण से भी काफी महत्वर्पूर होती है। औसतन एक पौधे को 18 में से 15 पोषक तत्व मृदा से प्राप्त होते हैं। ऐसे में उनकी गुणवत्ता का अच्छा होना बहुत मायने रखता है। इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दुनिया भर में 200 करोड़ लोग माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की कमी का शिकार हैं। इसे आसानी से चिन्हित कर पाना मुश्किल है। यही कारण है कि इसे "अदृश्य भूख" के नाम से भी जाना जाता है।

विनाश की पटकथा

आपको जानकार हैरानी होगी कि हम अपने 95 फीसदी भोजन के लिए प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से मृदा पर ही निर्भर रहते हैं। इसके बावजूद हम मिट्टी को गंभीरता से नहीं लेते। जो मृदा हमारे जीवन का आधार है, आज उसका 33 फीसदी से ज्यादा हिस्सा खराब होने की कगार पर है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ग्लोबल लैंड आउटलुक के मुताबिक एक तिहाई जमीन गंभीर रूप से खराब हो चुकी है, जबकि अकेले गहन कृषि के चलते हर साल 2,400 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी नष्ट हो जाती है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी “ग्लोबल एसेस्समेंट ऑफ सॉइल पोल्युशन: समरी फॉर पॉलिसी मेकर्स" नामक रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि मिट्टी पर बढ़ते दबाव के लिए अनियंत्रित तरीके से बढ़ रही औद्योगिक गतिविधियां, कृषि, खनन और शहरी प्रदूषण मुख्य रूप से जिम्मेवार हैं।

हैवी मेटल्स, साइनाइड, डीडीटी, अन्य कीटनाशक और लम्बे समय तक रहने वाले कार्बनिक रसायन जैसे पीसीबी मिट्टी को विषैला बना रहे हैं। हजारों सिंथेटिक केमिकल जो सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पर्यावरण में बने रह सकते हैं, पूरी दुनिया में फैले हुए हैं और मिट्टी को दूषित कर रहे हैं। आज दुनिया की करीब 83.3 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा भूमि खारेपन से प्रभावित हो चुकी है।

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने आगाह किया है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले 27 वर्षों में 90 फीसदी मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आ जाएगी। ऐसे में इसका खामियाजा न केवल हम इंसानों को बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को उठाना पड़ेगा।

पारिस्थितिकीविज्ञानी मार्क ए एंथोनी का भी कहना है कि, "मृदा भारी दबाव में है। इसे कृषि के बढ़ते दबाव, जलवायु परिवर्तन और आक्रामक प्रजातियों जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।" मिट्टी हमारे जीवन का आधार है इसकी केवल कुछ सेंटीमीटर ऊपरी परत को बनने में करीब एक हजार वर्षों का समय लगता है। ऐसे में इसे हम ऐसे ही बर्बाद होते नहीं देख सकते।

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