क्या आप जानते हैं कि वैश्विक स्तर पर अगले 28 वर्षों में 90 फीसदी मिट्टी की गुणवत्ता में आ जाएगी। यह न केवल पर्यावरण बल्कि खाद्य सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा है। देखा जाए तो हम अपने 95 फीसदी भोजन के लिए पूरी तरह से मिट्टी पर निर्भर हैं।
आपको यह जानकार हैरानी होगी की जो मिट्टी हमारे जीवन का आधार है केवल कुछ सेंटीमीटर ऊपरी परत को बनने में लगभग एक हजार साल लगते हैं। वहीं हम इंसान जिस तेजी से इसका दोहन कर रहे हैं उसके चलते हर पांच सेकंड में धरती पर एक सॉकर पिच के बराबर मिट्टी नष्ट हो रही है।
वहीं एफएओ द्वारा जारी खारेपन से प्रभावित भूमि के वैश्विक मानचित्र (जीएसएएसमैप) से पता चला है कि दुनिया की करीब 83.3 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा भूमि खारेपन से प्रभावित हो चुकी है जोकि इस धरती करीब 8.7 फीसदी हिस्सा है। अनुमान है कि दुनिया भर में सिंचित भूमि का करीब 20 से 50 फीसदी हिस्सा इतना ज्यादा खारा हो गया है कि उससे कृषि उत्पादकता काफी घट गई है।
वैज्ञानिकों की मानें तो इसके लिए कुछ हद तक जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेवार है। अध्ययनों से पता चला है कि सदी के अंत तक शुष्क भूमि का दायरा 23 फीसदी तक बढ़ सकता है, जिसका ज्यादातर हिस्सा विकासशील देशों में होगा।
उद्योग, कृषि, खनन और शहरी प्रदूषण जैसी गतिविधियां मिट्टी पर बढ़ते दबाव के लिए है जिम्मेवार
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ग्लोबल एसेस्समेंट ऑफ सॉइल पोल्युशन: समरी फॉर पॉलिसी मेकर्स नामक रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि मिट्टी पर बढ़ते दबाव के लिए लिए अनियंत्रित तरीके से बढ़ रही औद्योगिक गतिविधियां, कृषि, खनन और शहरी प्रदूषण मुख्य रूप से जिम्मेवार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार हैवी मेटल्स, साइनाइड, डीडीटी, अन्य कीटनाशक और लम्बे समय तक रहने वाले कार्बनिक रसायन जैसे पीसीबी मिट्टी को विषैला बना रहे हैं। हजारों सिंथेटिक केमिकल जो सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पर्यावरण में रह सकते हैं, पूरी दुनिया में फैले हुए हैं।
ऐसे में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने उन देशों और भागीदारों से इसपर त्वरंत कार्रवाई की मांग की है जिन्होंने पिछले एक दशक में ग्लोबल सॉयल पार्टनरशिप (जीएसपी) पर हस्ताक्षर किए हैं। ग्लोबल सॉयल पार्टनरशिप (जीएसपी) पिछले एक दशक से देशों और 500 से अधिक भागीदारों के साथ मिलकर मिट्टी संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए काम कर रही है। इसका मकसद वैश्विक स्तर पर मिट्टी में आती गिरावट को ग्लोबल एजेंडा बनाना है।
एफएओ जिन पांच क्षेत्रों में सरकारों, स्थानीय लोगों और किसानों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहा है उसमें सरकारों के साथ मिलकर मिट्टी की बहाली, वैश्विक स्तर पर मिट्टी की डिजिटल मैपिंग, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और लोगों को शिक्षित करना जैसे उपाय शामिल हैं। इसके साथ-साथ इस विषय में लोगों में जागरूकता पैदा करने के साथ युवाओं की भागीदारी को बढ़ाना और सरकारी नीतियों को आकार देने के साथ कार्रवाई शुरू करना शामिल हैं।
इस बारे में एफएओ का कहना है कि मिट्टी की बहाली के लिए कवर फसलों, फसल में बदलाव और कृषि वानिकी जैसी प्रथाओं को अपनाकर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में सुधार के लिए कई कार्यक्रम शुरू भी किए गए हैं।
कोस्टा रिका और मैक्सिको ने इन पायलट योजनाओं और उदाहरणों की मदद से किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए भागीदारी की है। इसके साथ-साथ जीएसपी ने मिट्टी की डिजिटल मैपिंग के लिए डेटा संग्रह में विस्तार किया है। देखा जाए तो यह तकनीक नीति निर्माताओं को मिट्टी की स्थिति के बारे में सूचित करती है और उन्हें मिट्टी के बढ़ते क्षरण को रोकने के लिए मदद करती है। एफएओ ने मिट्टी के बारे में युवाओं में जागरूकता बढ़ाने और भागीदारी बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष और विश्व मृदा दिवस जैसे अभियान तैयार किए हैं।
वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ सॉइल साइंस 2022 में जुटेंगे दुनिया भर के मृदा वैज्ञानिक
गौरतलब है कि इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक 31 जुलाई से 05 अगस्त के बीच स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जुटने वाले हैं जहां इस बार की वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ सॉइल साइंस 2022 होनी है।
मिट्टी की बहाली और संरक्षण के लिए होने वाली यह कांग्रेस हर चार साल में दुनिया के अलग-अलग देशों में आयोजित की जाती है। इसमें 3,000 से ज्यादा मृदा वैज्ञानिक भाग लेते हैं।
इस कांग्रेस का आयोजन इस बार इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सॉयल साइंसेज की ओर से ब्रिटिश सोसाइटी ऑफ सॉयल साइंस द्वारा किया जा रहा है। इस बार कांग्रेस का विषय, 'सॉइल साइंस - क्रासिंग बाउंड्रीज, चेंजिंग सोसाइटी' है। इसमें मिट्टी और समाज के बीच की कड़ी पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए आज वैश्विक स्तर पर सहयोग को बढ़ावा देने की जरुरत है। इसके लिए देशों को अपने ज्ञान और अनुभवों को आपस में साझा करना होगा। साथ ही सभी के लिए बेहतर और नवीनतम तकनीकों और प्रौद्योगिकियों तक पहुंच सुनिश्चित करनी होगी, जिससे कोई पीछे न रहे।