सदी के अंत तक गेहूं-कॉफी जैसी फसलें खो सकती हैं अपनी आधी उपजाऊ जमीन: एफएओ

आशंका है कि कॉफी उत्पादन पर गंभीर असर पड़ सकता है, खासकर उन देशों में जो बड़े उत्पादक हैं। वहीं बीन्स और गेहूं की उपज यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे क्षेत्रों में काफी घट सकती है
गर्मी में अपने गेहूं की फसल काटता किसान; फोटो: आईस्टॉक
गर्मी में अपने गेहूं की फसल काटता किसान; फोटो: आईस्टॉक
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संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने अपने भू-स्थानिक ऐप एबीसी-मैप को एक अहम अपडेट दिया है। इस नए अपडेट में एक नया संकेतक जोड़ा गया है, जो दर्शाता है कि सदी के अंत तक गेहूं, कॉफी, बीन्स और कसावा जैसी प्रमुख फसलें अपनी आधी खेती के लिए सबसे उपयुक्त जमीन खो सकती हैं।

क्या है एबीसी-मैप?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एबीसी-मैप एक ओपन-सोर्स सैटेलाइट इमेजरी ऐप है, जो गूगल अर्थ इंजन पर आधारित है। इसमें वैश्विक डेटासेट से जानकारी मिलती है। यह नीति-निर्माताओं, तकनीशियनों और परियोजना योजनाकारों के लिए बनाया गया है। इसके जरिए किसी स्थान पर जलवायु से जुड़े जोखिम, जैव विविधता और कार्बन कटौती की संभावनाओं का आकलन किया जा सकता है।

एबीसी-मैप को 2024 में लॉन्च किया गया था, यह कॉप 28 की कृषि, खाद्य और जलवायु राष्ट्रीय कार्य योजना टूलकिट का हिस्सा है। यह एक तकनीकी उपकरण है, जो सरकारों को जलवायु कार्रवाई और कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव से जुड़ी नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने में मदद करता है। यह टूल जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता संरक्षण और कृषि-खाद्य सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है।

अपग्रेड के बाद, अब एबीसी-मैप में एक नया संकेतक जोड़ा गया है, जो यह जानकारी देता है कि बदलते जलवायु परिदृश्यों में सदी के अंत तक प्रमुख फसलें कितनी उपयुक्त रहेंगी। एफएओ के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ मार्शल बर्नौक्स का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है कि यह नई जानकारी हमें लंबे समय तक जलवायु परिवर्तन और उसके असर से निपटने की तैयारी में मदद कर सकती है।

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गर्मी में अपने गेहूं की फसल काटता किसान; फोटो: आईस्टॉक

उनके मुताबिक अब जब मौसम लगातार अनिश्चित होता जा रहा है और सूखा, भीषण गर्मी और बाढ़ जैसी चरम मौसमी आपदाएं बढ़ रही हैं, तो किसानों, नीति-निर्माताओं और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि जिन फसलों पर विचार किया जा रहा है वो आगे भी कारगर होंगी। हो सकता है कि उन्हें दूसरी फसलों या नई अनुकूलन रणनीतियों पर विचार करना पड़े।

उनका आगे कहना है कि एबीसी-मैप अब इस फैसले में उनकी बेहतर मदद कर सकता है और जलवायु के प्रति उनकी तैयारी को मजबूत बना सकता है।

किन फसलों को होगा सबसे ज्यादा नुकसान

गौरतलब है कि यह नया संकेतक एक अध्ययन पर आधारित है, जिसे फ्रेंच स्टार्टअप Finres ने इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आईएफएडी) के लिए तैयार किया है। इस अध्ययन में पाया गया है कि गेहूं, कॉफी, बीन्स, कसावा और प्लांटेन जैसी नौ में से पांच प्रमुख फसलें पहले ही अपनी उपयुक्त खेती योग्य जमीन खोने लगी हैं, और सदी के तक इनमें से कुछ अपनी आधी उपयुक्त जमीन खो सकती हैं।

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आशंका है कि कॉफी उत्पादन पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है, खासकर उन देशों में जो बड़े उत्पादक हैं। वहीं बीन्स और गेहूं की उपज यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे क्षेत्रों में काफी घट सकती है। हालांकि मक्का और चावल जैसी फसलों को शुरुआत में कुछ नए उपयुक्त क्षेत्र मिल सकते हैं, लेकिन सदी के अंत तक यदि उत्सर्जन तेजी से बढ़ता रहा तो इनकी स्थिति भी बिगड़ सकती है।

कैसे काम करता है एबीसी-मैप?

इस ऐप में तीन मुख्य भाग हैं, अनुकूलन, जैव विविधता, और कार्बन। वहीं नया संकेतक अनुकूलन वाले भाग को और बेहतर बनाता है। पहले इसमें केवल किसी इलाके के पुराने तापमान और वर्षा जैसे आंकड़े ही दिखते थे, लेकिन अब यह भविष्य के रुझान भी दिखाता है।

अब उपयोगकर्ता किसी स्थान का चुनाव करके 30 फसलों में से एक (जैसे कॉफी, मक्का, गेहूं आदि) को चुन सकते हैं और यह ऐप बताएगा कि उस स्थान पर वह फसल सदी के अंत तक कितनी उपयुक्त रहेगी। यह जानकारी दो जलवायु उत्सर्जन परिदृश्यों के आधार पर दी जाती है।

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इस साल इसमें दो और संकेतकों को जोड़ा जाएगा – एक पशुधन पर गर्मी का असर और दूसरा फसलों की जल आवश्यकताओं का, जो बारिश और सिंचाई की संभावित जरूरत का अनुमान देगा।

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे को देखते हुए फसलों की उपयुक्तता के यह आंकड़े किसानों, नीति-निर्माताओं और वैज्ञानिकों के लिए बेहद जरूरी है। ऐसे में एबीसी-मैप जैसे उपकरण भविष्य की कृषि योजनाओं को जलवायु अनुकूल बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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