खतरे में हिम तेंदुएं: आनुवंशिक विविधता में कमी से बढ़ सकता है विलुप्त होने का खतरा

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के नए अध्ययन में पता चला है कि हिम तेंदुओं की आनुवंशिक विविधता बेहद कम है, जिससे जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरण में आने वाले बदलाव उनके अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं
दुनिया में हिम तेंदुओं की संख्या 8,000 से भी कम है; फोटो: आईस्टॉक
दुनिया में हिम तेंदुओं की संख्या 8,000 से भी कम है; फोटो: आईस्टॉक
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सारांश
  • स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के अध्ययन में पाया गया है कि हिम तेंदुओं की आनुवंशिक विविधता में कमी उनके अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती है।

  • इनकी संख्या 8,000 से कम है और जलवायु परिवर्तन जैसे बड़े पर्यावरणीय बदलावों के सामने ये बेहद संवेदनशील हैं।

  • इनकी सीमित आबादी और आनुवंशिक समानता इन्हें विलुप्ति के कगार पर ला सकती है।

दुनिया के सबसे रहस्यमय शिकारी जीव हिम तेंदुएं अपने ही जीन के कारण खतरे में हैं। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में पाया है कि इन जीवों के जीन इतने समान हैं कि पर्यावरण में आने वाले किसी भी बड़े बदलाव से इनकी प्रजाति को भारी नुकसान हो सकता है।

स्टडी से पता चला है कि हिम तेंदुएं अन्य बड़ी बिल्लियों की तुलना में सबसे अधिक आनुवंशिक रूप से समान हैं। इसका मतलब है कि ये छोटी और सीमित आबादी वाले जीव, जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी चुनौतियों के सामने बेहद संवेदनशील हैं।

अध्ययन के मुताबिक, दुनिया में हिम तेंदुओं की संख्या 8,000 से भी कम है और यह स्थिति लंबे समय से बनी हुई है। इनके छोटी आबादी और सीमित आनुवंशिक विविधता के कारण ये किसी भी बड़े पर्यावरणीय बदलाव का सामना करने में विफल हो सकते हैं।

इस बारे में स्टैनफोर्ड की जीवविज्ञानी और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता कैथरीन एंड्रिया सोलारी का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “हिम तेंदुएं बेहद दूरदराज के अनछुए क्षेत्रों में रहते हैं। इनके संख्या के साथ-साथ आनुवंशिक विविधता भी सीमित है। ऐसे में ये जीव समय के साथ आने वाले पर्यावरणीय बदलावों का सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं।”

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अध्ययन में यह भी सामने आया है कि हिम तेंदुओं की आनुवंशिक विविधता सीमित होने का कारण उनकी स्थिर और छोटी आबादी रही है। जबकि अन्य बड़े बाघ, जैसे चीता और फ्लोरिडा पैंथर, आबादी में अचानक आई गिरावट के कारण आनुवंशिक रूप से कमजोर हुए हैं।

इस अध्ययन के लिए 11 देशों के शोधकर्ताओं और वन अधिकारियों ने हिम तेंदुओं के रक्त और ऊतक के नमूने प्रदान किए। इसके बाद 41 हिम तेंदुओं का पूरा जीनोम सीक्वेंस किया गया, जिनमें 35 जंगली और 6 चिड़ियाघर में रह रहे हिम तेंदुएं शामिल थे। इससे पहले महज चार हिम तेंदुओं के जीनोम के बारे में जानकारी मौजूद थी।

इन दुर्लभ जीवों में हानिकारक जीन म्यूटेशन्स कम हैं, क्योंकि समय-समय पर प्राकृतिक चयन ने कमजोर जीन वाले तेंदुओं को आबादी से बाहर कर दिया। इसका मतलब है कि छोटे समूह होने के बावजूद हिम तेंदुएं अभी तक अपेक्षाकृत स्वस्थ बने हुए हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक दूसरी ओर बड़ी बिल्लियों की अन्य प्रजातियां, जैसे कि चीते, जो कभी बड़ी संख्या में थे, उनकी आबादी में आई अचानक गिरावट जिसे वैज्ञानिक “बॉटलनेक” कहते हैं, उसके चलते इनकी आबादी और आनुवंशिक विविधता दोनों तेजी से कम हो गई।

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नतीजा यह हुआ कि इन जीवों में हानिकारक जीन अगली पीढ़ियों में फैलते गए और प्रजाति कमजोर होती चली गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि चीते दो बार ऐसे बॉटलनेक से गुजरे हैं, जिसके कारण आज उनमें आनुवंशिक विविधता बहुत कम है और वे कम प्रजनन क्षमता तथा बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशीलता जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता दिमित्रि पेट्रोव ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया, “मानव आबादी की वृद्धि ने इनके आवासों को बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया है। यह जीव ऐसे दुर्गम इलाकों में रहते हैं, जहां इंसानी आबादी या बस्तियां बनना करीब-करीब नामुमकिन है।"

जलवायु परिवर्तन जैसे बदलाव बन सकते हैं खतरा

हालांकि उन्होंने आशंका जताई है कि जलवायु परिवर्तन इनकी अस्तित्व को गंभीर खतरे में डाल सकता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन का असर दूरदराज के पहाड़ों और दुर्गम इलाकों पर भी पड़ता है।

शोधकर्ता अब और अधिक हिम तेंदुओं के नमूने विश्लेषित कर रहे हैं, ताकि उनकी पूरे क्षेत्र में स्थिति का सटीक अनुमान लगाया जा सके। साथ ही, उन्होंने हिम तेंदुओं के फेकल नमूने से आनुवंशिक जानकारी हासिल करने की नई तकनीक भी विकसित की है, जिससे इन्हें पकड़ने या परेशान करने की आवश्यकता नहीं होगी।

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देखा जाए तो यह जीव अपने क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। ये मुख्य रूप से भराल (नीली भेड़), साइबेरियन आइबेक्स और छोटे स्तनधारी जैसे पिका का शिकार करते हैं। ऐसे में अगर हिम तेंदुएं विलुप्त हो गए, तो इसका मतलब होगा कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो गया है।

शोधकर्ताओं ने चेताया है कि अगर इनके आवास क्षेत्रों में गिरावट आती है, तो यह जीव आसानी से विलुप्त हो सकते हैं, क्योंकि इनके पास रहने के लिए न तो बड़े आवास क्षेत्र हैं और न ही आबादी इतनी बड़ी है कि वे ऐसे संकटों का सामना कर सकें।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं।

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