गैलापागोस: जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से जूझती अनूठी जैव विविधता

खतरों का विश्लेषण करने के लिए शोधकर्ताओं ने गैलापागोस में दर्ज विस्फोटों, भूकंपों, सुनामी, भयंकर बारिश और समुद्री लहरों पर 70 से अधिक सालों के ऐतिहासिक आंकड़ों का इस्तेमाल किया।
गैलापागोस द्वीपसमूह दुनिया के उन खास इलाकों में से एक है, जिसे उसकी अनूठी जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए पहचाना जाता है।
गैलापागोस द्वीपसमूह दुनिया के उन खास इलाकों में से एक है, जिसे उसकी अनूठी जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए पहचाना जाता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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गैलापागोस द्वीपसमूह दुनिया के उन खास इलाकों में से एक है, जिसे उसकी अनूठी जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए पहचाना जाता है। यहां मिलने वाले विशालकाय कछुए, गुलाबी इगुआना और कई विशिष्ट जीव-जंतु व पौधे इसे खास बनाते हैं। लेकिन आज यह अनमोल द्वीपसमूह लगातार कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के खतरे झेल रहा है।

हाल ही में एस्कुएला सुपीरियर पोलिटेक्निका डेल लिटोरल (एसपोल) नामक संस्थान के शोधकर्ताओं ने एक नया अध्ययन किया है। इसमें गैलापागोस में पिछले 70 सालों में आए ज्वालामुखी विस्फोटों, भूकंपों, सुनामी, भारी बारिश और समुद्री लहरों के ऐतिहासिक आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया। यह शोध अंतरराष्ट्रीय पत्रिका नेचुरल हैजर्ड्स में प्रकाशित हुआ है।

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गैलापागोस द्वीपसमूह दुनिया के उन खास इलाकों में से एक है, जिसे उसकी अनूठी जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए पहचाना जाता है।

परस्पर जुड़े खतरे

शोधकर्ताओं का कहना है कि प्राकृतिक आपदाएं अकेली नहीं आतीं, बल्कि वे आपस में जुड़ी हुई होती हैं। उदाहरण के लिए, अगर ज्वालामुखी फटता है तो सिर्फ लावा और राख ही नहीं निकलती। इससे जंगल में आग लग सकती है, अम्लीय बारिश हो सकती है, जमीन की सतह बदल सकती है और अगर ज्वालामुखी का कोई हिस्सा ढह जाए तो सुनामी भी आ सकती है।

इन आपदाओं के बाद पानी के स्रोत दूषित हो सकते हैं, लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ सकता है, सड़कों और इमारतों जैसी बुनियादी सुविधाएं खराब हो सकती हैं और कई स्थानीय प्रजातियां संकट में पड़ सकती हैं।

इसी तरह अगर भारी बारिश होती है तो भूस्खलन, बाढ़ और मिट्टी की गुणवत्ता खराब होने जैसी कई नई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। यानी एक आपदा अपने साथ दूसरी कई परेशानियां भी लाती है।

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समाज और प्रकृति का रिश्ता

इस अध्ययन की खास बात यह है कि इसमें सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं को नहीं देखा गया, बल्कि यह भी समझा गया कि ये आपदाएं द्वीप के लोगों के रोजमर्रा के जीवन को कैसे प्रभावित करती हैं। द्वीपवासी जो पानी पीते हैं, जो फसलें उगाते हैं और जिस पर्यटन पर उनकी अर्थव्यवस्था टिकी है, सब पर इन खतरों का असर पड़ता है। जंगल और समुद्र में रहने वाले दुर्लभ जीव-जंतु भी खतरे में आ जाते हैं।

उदाहरण के लिए, अगर ला नीना जैसी जलवायु घटना की वजह से भीषण सूखा पड़ता है तो जंगलों में आग लग सकती है। इससे न केवल हवा की गुणवत्ता खराब होती है, बल्कि मिट्टी की पानी धारण करने की क्षमता भी घट जाती है और स्थानीय जीव-जंतु अपना आवास खो देते हैं।

इसी तरह, भूकंप और सुनामी से सड़कों और परिवहन मार्गों को नुकसान पहुंच सकता है, पेयजल आपूर्ति बाधित हो सकती है और पर्यटन अवसंरचना बर्बाद हो सकती है।

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सामाजिक और आर्थिक असर

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि आपदाओं का असर केवल प्राकृतिक नहीं होता। इनके प्रभाव इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि समाज और अर्थव्यवस्था कितनी संवेदनशील है। गैलापागोस की अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन और प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है। अगर आपदा आती है और पर्यटक आना बंद कर देते हैं, तो स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी पर तुरंत असर पड़ता है।

इसके अलावा अगर पानी या भोजन की आपूर्ति प्रभावित होती है तो लोगों का जीवन कठिन हो जाता है। इसलिए आपदाओं से निपटने के लिए सिर्फ वैज्ञानिक नजरिया ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक तैयारी भी जरूरी है।

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आपदा प्रबंधन का नया ढांचा

यह अध्ययन केवल शोध तक सीमित नहीं है। इसका एक व्यावहारिक उद्देश्य भी है। इसे इस तरह बनाया गया है कि रेड क्रॉस, स्थानीय सरकारें और इक्वाडोर की ईसीयू911 आपातकालीन प्रणाली जैसी संस्थाएं इसका इस्तेमाल आपदाओं से निपटने के लिए कर सकें।

इस ढांचे की मदद से आपदा आने पर तेजी से निर्णय लिए जा सकते हैं, प्रभाव कम किए जा सकते हैं और बचाव कार्य में लगने वाला समय कम किया जा सकता है। गैलापागोस में पहले ही "सुनामी रेडी" नामक एक कार्यक्रम चलाया गया है, जिसने सुनामी जैसी आपदा के लिए तैयारियों को बेहतर किया है।शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि स्थानीय स्तर पर आंकड़े इकट्ठा करने और अलग-अलग संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाने की जरूरत है।

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जलवायु परिवर्तन से बढ़ता खतरा

आज जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है। गैलापागोस जैसे नाजुक द्वीपों पर इसका असर और भी गहरा है।समुद्र का बढ़ता स्तर, बढ़ती गर्मी और असामान्य मौसम की घटनाएं यहां के पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा रही हैं। इंसानी गतिविधियां जैसे अत्यधिक पर्यटन और संसाधनों का उपयोग भी प्रकृति पर दबाव डाल रहे हैं।

इसलिए शोधकर्ता कहते हैं कि अब आपदाओं को अलग-अलग समझने का समय बीत चुका है। हमें यह देखना होगा कि वे आपस में कैसे जुड़ी हैं और उनका प्रभाव समाज और प्रकृति दोनों पर कैसे पड़ता है। गैलापागोस द्वीपसमूह का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम अप्रत्याशित आपदाओं का कितना सही अनुमान लगा पाते हैं और उनसे निपटने की कितनी तैयारी करते हैं।

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यह नया अध्ययन दिखाता है कि अगर हम बहु-खतरे वाले ढांचे (मल्टी-हैजर्ड फ्रेमवर्क) का इस्तेमाल करें तो आपदा और लचीलेपन (रेसिलिएंस) के बीच का अंतर कम किया जा सकता है। इससे लोगों की जिंदगी, उनकी अर्थव्यवस्था और प्रकृति सभी को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।

गैलापागोस न केवल इक्वाडोर के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए अनमोल धरोहर है। इसकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए वैज्ञानिक, सरकार, स्थानीय लोग और अंतरराष्ट्रीय समुदाय सभी को मिलकर काम करना होगा।

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