बजट 2024-25: जैव विविधता योजना के प्रति केंद्र की प्रतिबद्धता पर लगा सवालिया निशान

समग्र जैव विविधता संरक्षण के लिए आवंटन बढ़ाने के बजाय बाघ जैसी विशिष्ट प्रजातियों के संरक्षण पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है
उत्तराखंड की फूलों की घाटी। फोटो: विकास चौधरी
उत्तराखंड की फूलों की घाटी। फोटो: विकास चौधरी
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केंद्र सरकार समय-समय पर दावे करती रही है कि वह जैव विविधता योजना को तय समय पर पूरी कर देगी, बावजूद इसके इस वर्ष के आम बजट (2024-25) में जैव विविधता के प्रमुख क्षेत्रों के लिए आवंटन कम कर दिया गया है। इस योजना को दिसंबर 2022 में मॉन्ट्रियल में कॉप15 में अपनाया गया था और भारत ने इसका पूरा समर्थन किया था।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पास जैव विविधता संरक्षण (जिसमें वनस्पतियों, जीवों, वनों और वन्यजीवों के संरक्षण और सर्वेक्षण के व्यापक दायरे में; प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण; वनीकरण और क्षरित क्षेत्रों का सुधार; पर्यावरण की सुरक्ष; और जानवरों के कल्याण को सुनिश्चित करना शामिल है) की जिम्मेवारी है। इस मंत्रालय का आवंटन 2023-24 में 3,079.4 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 3,330.37 करोड़ रुपए हो गया है। हालांकि, इसके भीतर, जैव विविधता से जुड़े कार्यों के लिए आवंटित खर्च कम हो गया है।

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मंत्रालय के अधीन काम कर रहे राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) का बजट 16.4 करोड़ रुपए से घटाकर 16 करोड़ रुपए कर दिया गया है। एनबीए की स्थापना 2003 में केंद्र सरकार द्वारा भारत के जैविक विविधता अधिनियम (2002) को लागू करने के लिए की गई थी।

हाल ही में इसमें संशोधन किया गया था और संशोधित कार्य योजना को लागू करने के लिए कम से कम शुरुआती चरण में अधिक धन की आवश्यकता होगी।

समग्र जैव विविधता संरक्षण के बजाय प्रजातियों के संरक्षण के लिए उपलब्ध धन में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के लिए उपलब्ध धन पिछले साल के 11 करोड़ रुपए से बढ़कर इस साल 35 करोड़ रुपए हो गया है। यह प्राधिकरण केवल एक ही प्रजाति का प्रभारी है।

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उत्तराखंड की फूलों की घाटी। फोटो: विकास चौधरी

शोध करने में शामिल स्वायत्त निकायों के मामले में कुल धनराशि 309 करोड़ रुपए से बढ़कर 391 करोड़ रुपए हो गई है, लेकिन वन प्रबंधन के लिए धनराशि में कटौती की गई है। भारतीय वन प्रबंधन संस्थान का आवंटन 17.5 करोड़ रुपए से घटकर सिर्फ 13 करोड़ रुपए रह गया है।

केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए कुल आवंटन 3,079.4 करोड़ रुपए से बढ़कर 3,330.37 करोड़ रुपए हो गया है। लेकिन पर्यावरण, वानिकी और वन्यजीव जैसी विशिष्ट केंद्र प्रायोजित योजनाओं के बजट में कटौती की गई है। यह पिछले साल के 758.8 करोड़ रुपए से घटकर इस साल 713.5 करोड़ रुपए रह गया है।

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प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण जैसे विशिष्ट कार्यक्रमों में भी बजट में कटौती देखी गई। वर्ष 2023-24 में इसके लिए 47 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। लेकिन इस वर्ष आवंटन मात्र 43.5 करोड़ रुपए रहा। 

जैव विविधता संरक्षण के लिए पहले मात्र 7 करोड़ रुपए मिलते थे, जो अब घटकर 5 करोड़ रुपए रह गए हैं। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए आवंटन 38.4 करोड़ रुपए से घटकर 35.5 करोड़ रुपए रह गया है, जबकि बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाओं के लिए आवंटन 1.6 करोड़ रुपए से बढ़कर 3 करोड़ रुपए हो गया है। 

जैव विविधता योजना में एक वित्तपोषण घटक है, जिसके तहत विकसित देशों को योजना के तहत निर्धारित 23 लक्ष्यों और 4 लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विकासशील देशों के प्रयासों में सहायता प्रदान करना अनिवार्य है।

 हालांकि, अभी तक वित्तपोषण बहुत कम हुआ है और जैव विविधता की रक्षा का दायित्व राष्ट्रीय सरकारों पर है। इस दृष्टि से, इस वर्ष का केंद्रीय बजट भारत की जैव विविधता के लिए शुभ संकेत नहीं है।

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