
ओकापी को “जंगल का जिराफ” कहा जाता है - यह जेब्रा जैसी धारियों और जिराफ जैसी जीभ वाला अद्भुत जीव है।
यह केवल कांगो के वर्षावनों में पाया जाता है और अब इसकी संख्या 15,000 से भी कम रह गई है।
शिकार, अवैध खनन और जंगलों की कटाई इसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।
ओकापी संरक्षण परियोजना (ओसीपी) 30 से अधिक वर्षों से इसके संरक्षण में सक्रिय है, जो जंगलों और स्थानीय समुदायों की भी मदद करता है।
हर साल 18 अक्टूबर को विश्व ओकापी दिवस मनाया जाता है, ताकि लोगों को इस अद्भुत और दुर्लभ जीव के बारे में जागरूक किया जा सके। बहुत से लोग आज भी ओकापी के नाम से अनजान हैं, लेकिन यह जीव प्रकृति की सबसे अद्भुत रचनाओं में से एक है।
ओकापी कौन है?
ओकापी का वैज्ञानिक नाम ओकापिया जॉनस्टोनी है। यह जीव दिखने में थोड़ा जेब्रा जैसा और थोड़ा जिराफ जैसा लगता है, इसलिए इसे कभी-कभी "जंगल का जिराफ" या "जेब्रा-जिराफ" भी कहा जाता है।
यह जानवर मुख्य रूप से अफ्रीका के कांगो देश के घने वर्षावनों में पाया जाता है। इसके शरीर का रंग गहरा भूरा होता है, लेकिन इसके पैरों पर सफेद धारियां होती हैं, जो इसे जेब्रा जैसा रूप देती हैं। यह रंग संयोजन इसे जंगल में छिपने में मदद करता है, जिससे यह शिकारी जानवरों से बच पाता है।
ओकापी की खासियतें
ओकापी न केवल दिखने में अनोखा है, बल्कि इसकी शारीरिक संरचना भी बहुत खास है। इसके कान बहुत बड़े और घूमने वाले होते हैं, जिससे यह बहुत हल्की-सी आवाज भी सुन सकता है। इसकी जीभ लंबी और लचीली होती है, जिससे यह ऊंचे पेड़ों पर लगे पत्तों को खा सकता है और अपने शरीर की सफाई भी कर सकता है।
यह कुछ विषैले पौधे और फल भी खा सकता है, लेकिन उन जहर को मिटाने के लिए यह कोयला और मिट्टी भी खाता है, जिससे उसे जरूरी खनिज भी मिलते हैं। जिराफ की तरह, ओकापी भी पानी पीते समय अपने पैर फैलाता है।
निवास स्थान और संकट
ओकापी केवल डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के इतुरी और अरुविमी जंगलों में पाया जाता है। यही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है, इसका निवास क्षेत्र बहुत सीमित है।
जैसे-जैसे इंसानों की आबादी बढ़ रही है, वैसे-वैसे जंगलों के काटे जाने, खेती, अवैध खनन और शिकार जैसे कारणों से ओकापी का घर नष्ट होता जा रहा है। कुछ लोग इसके सुंदर चमड़े और मांस के लिए शिकार करते हैं। इसके अलावा, कुछ ओकापी बच्चों को अवैध रूप से पालतू जानवर की तरह भी बेचा जाता है।
इन सभी कारणों से ओकापी की संख्या में भारी गिरावट आई है। अब केवल 10,000 से 15,000 ओकापी जंगलों में बचे हैं। इसलिए इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में "अति संकटग्रस्त" प्रजाति माना गया है।
संरक्षण प्रयास: उम्मीद की किरण
ओकापी को बचाने के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं। सबसे प्रमुख है – ओकापी संरक्षण परियोजना (ओसीपी), जो पिछले 30 वर्षों से ओकापी की रक्षा में लगा है। ओसीपी के शिकार-विरोधी दल जंगल में गश्त करते हैं ताकि शिकारियों से ओकापी को बचाया जा सके। वे स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर ऐसे रोजगार के अवसर पैदा करते हैं, जिससे लोग जंगल को नुकसान पहुंचाए बिना अपनी रोजी-रोटी कमा सकें।
इसके अलावा, वैज्ञानिक ओकापी के व्यवहार, आहार और स्वास्थ्य पर शोध करते हैं, जिससे उनकी सुरक्षा और बेहतर की जा सके।
विश्व ओकापी दिवस का इतिहास
विश्व ओकापी दिवस की शुरुआत 2016 में ओकापी संरक्षण परियोजना द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य लोगों को ओकापी के बारे में जागरूक बनाना और इसके संरक्षण में सहयोग बढ़ाना था।
एक उज्जवल भविष्य की ओर
हालांकि ओकापी के लिए चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन संरक्षण कार्यों से सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं। अगर हम सब मिलकर प्रयास करें, तो वह दिन दूर नहीं जब ओकापी फिर से सुरक्षित रूप से अपने प्राकृतिक वनों में विचरण करता दिखाई देगा।
ओकापी न केवल एक अद्भुत जीव है, बल्कि यह हमें यह सिखाता है कि हर प्रजाति की प्रकृति में एक खास जगह है, और हमें उसे बचाने की जिम्मेवारी लेनी चाहिए।
इस विश्व ओकापी दिवस, हम संकल्प लें कि हम अपने जंगलों और उसमें रहने वाले अद्भुत जीवों की रक्षा करेंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस "जंगल के जिराफ" को देख सकें और उससे प्रेरणा ले सकें।