वैज्ञानिकों को मिली 'धरती के छोटे इंजीनियर' की नई प्रजाति

वॉयली जमीन में बिल खोदते और ऐसा करते-करते वे साल भर में कई टन मिट्टी पलट देते। यही वजह थी कि वैज्ञानिक इन्हें प्राकृतिक इंजीनियर कहते हैं।
वैज्ञानिकों ने गुफाओं से मिली हड्डियों के अध्ययन में वॉयली की नई प्रजाति खोजी, लेकिन वह पहले ही विलुप्त हो चुकी।
वैज्ञानिकों ने गुफाओं से मिली हड्डियों के अध्ययन में वॉयली की नई प्रजाति खोजी, लेकिन वह पहले ही विलुप्त हो चुकी।फोटो साभार: जूटाक्सा
Published on
Summary
  • नई प्रजाति की खोज: गुफाओं में मिली हड्डियों से बेट्टोंगिया हाउचारेनामक नई वॉयली प्रजाति का पता चला।

  • विलुप्त हो चुकी प्रजाति: दुर्भाग्यवश यह नई प्रजाति आज जीवित नहीं है।

  • दो नई उप-प्रजातियां: मौजूदा वॉयली की आनुवंशिक विविधता को समझने के लिए दो नई उप-प्रजातियों की पहचान हुई।

  • प्राकृतिक इंजीनियर: वॉयली मिट्टी खोदकर जंगल की मिट्टी और बीजों को संजीवनी देते हैं।

  • संरक्षण के लिए अहम: शोध से मिली जानकारी वॉयली के प्रजनन और स्थानांतरण कार्यक्रमों में मददगार होगी।

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की गर्म और शुष्क धरती के नीचे, गहरी गुफाओं में सदियों पुराना रहस्य छिपा था। यह रहस्य किसी खजाने का नहीं, बल्कि एक भूले-बिसरे जीव का था जो एक ऐसा छोटा वॉयली है जो कभी झाड़ियों और घास के मैदानों में कूदता-फिरता था।

जंगल का छोटा इंजीनियर

उस जीव का नाम था वॉयली, जिसे ब्रश-टेल्ड बेटॉन्ग भी कहा जाता है। देखने में यह छोटा, प्यारा और चूहे से बड़ा लगता है, लेकिन काम इसका बहुत बड़ा था। वॉयली जमीन में बिल खोदते और भूमिगत कवक (फंगी) खोजते थे। ऐसा करते-करते वे साल भर में कई टन मिट्टी पलट देते। यही वजह थी कि वैज्ञानिक इन्हें प्राकृतिक इंजीनियर कहते हैं। मिट्टी के हिलने-डुलने से उसमें नमी बनी रहती, बीज अंकुरित होते और जंगल की सांसें चलती रहतीं।

यह भी पढ़ें
पेरू में मिली मेंढकों की तीन नई प्रजातियों, जानें- खासियत
वैज्ञानिकों ने गुफाओं से मिली हड्डियों के अध्ययन में वॉयली की नई प्रजाति खोजी, लेकिन वह पहले ही विलुप्त हो चुकी।

लेकिन वक्त बदलता गया। इंसानों ने जंगलों को काटा, नए जानवर आए और शिकार बढ़ा। धीरे-धीरे वॉयली की संख्या घटने लगी। कभी यह जीव पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के हर कोने में दिखता था, पर अब केवल चुनिंदा जगहों पर ही पाया जाता है। हालात इतने खराब हुए कि वॉयली को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति घोषित करना पड़ा।

गुफाओं से मिला सुराग

जूटाक्सा नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुताबिक, कहानी में मोड़ तब आया जब करटिन यूनिवर्सिटी, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलियन म्यूजियम और मर्डोक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने नलार्बोर और दक्षिण-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की गुफाओं में खुदाई शुरू की। वहां उन्हें असंख्य हड्डियां मिलीं। ये हड्डियां हजारों साल पुरानी थीं और इनमें कुछ ऐसी थी जो अब तक की किसी भी ज्ञात वॉयली से मेल नहीं खा रही थीं।

वैज्ञानिकों ने सावधानी से उनकी माप ली, खोपड़ियों और हड्डियों की तुलना की और धीरे-धीरे सच्चाई सामने आने लगी। यह हड्डियां वॉयली की एक नई प्रजाति से जुड़ी थीं, जिसका नाम 'बेटॉन्गिया हाओचारे' रखा गया।

यह भी पढ़ें
शोधकर्ताओं ने पूर्वोत्तर भारत में खोजी मकड़ी की चार नई प्रजातियां: शोध
वैज्ञानिकों ने गुफाओं से मिली हड्डियों के अध्ययन में वॉयली की नई प्रजाति खोजी, लेकिन वह पहले ही विलुप्त हो चुकी।

गायब हुई प्रजाति

दुर्भाग्य से यह नई खोजी गई प्रजाति आज जीवित नहीं है। यह पहले ही विलुप्त हो चुकी है, शायद उस समय जब इंसानों ने इस भूमि पर अपना असर बढ़ाना शुरू किया था। एक ऐसा जीव, जिसके बारे में हमने अभी-अभी जाना, वह दुनिया से बहुत पहले गायब हो चुका है।

लेकिन यही पूरी कहानी नहीं थी। इन हड्डियों और अन्य प्रमाणों से वैज्ञानिकों ने यह भी जाना कि मौजूदा वॉयली दरअसल दो अलग-अलग उप-प्रजातियों में बंटे हुए हैं। इसका मतलब है कि आज भी जीवित वॉयली की आनुवंशिक विविधता कहीं ज्यादा है जितनी पहले मानी जाती थी।

यह भी पढ़ें
तितली की अनोखी व नई प्रजाति की हुई खोज, जलवायु परिवर्तन से अस्तित्व पर खतरा
वैज्ञानिकों ने गुफाओं से मिली हड्डियों के अध्ययन में वॉयली की नई प्रजाति खोजी, लेकिन वह पहले ही विलुप्त हो चुकी।

संरक्षण की नई राह

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि हमने न केवल एक नई प्रजाति खोजी है, बल्कि पहली बार दो उप-प्रजातियों की पहचान भी की है। यह जानकारी बेहद अहम है, क्योंकि जब हम वॉयली का प्रजनन और नए इलाकों में स्थानांतरण करते हैं, तो आनुवंशिक विविधता को समझना आवश्यक होता है। तभी हम इन्हें मजबूत और स्वस्थ आबादी बना सकते हैं।

केवल हड्डियों के आकार-प्रकार का अध्ययन करने से ही हमें इतने नए तथ्य मिले। अगर हम इन्हें आधुनिक आनुवंशिक उपकरणों के साथ जोड़ें, तो संरक्षण की दिशा में और बड़े कदम उठाए जा सकते हैं।

यह भी पढ़ें
उत्तर अमेरिका में नई टाइगर स्वैलोटेल तितली की खोज, भारतीय प्रजाति से संबंध
वैज्ञानिकों ने गुफाओं से मिली हड्डियों के अध्ययन में वॉयली की नई प्रजाति खोजी, लेकिन वह पहले ही विलुप्त हो चुकी।

नाम में सम्मान

नए जीव का वैज्ञानिक नाम बेट्टोंगिया हाउचारे दिया गया है। लेकिन शोधकर्ता चाहते हैं कि इसका अंतिम नाम आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर रखा जाए, क्योंकि वॉयली शब्द खुद नूंगार भाषा से आया है। यह सम्मान और सहयोग इस खोज को और गहराई देता है।

यह कहानी सिर्फ एक छोटे जीव की नहीं, बल्कि पूरी प्रकृति की है। जो हमें याद दिलाती है कि कितने जीव बिना जाने-समझे हमेशा के लिए खो जाते हैं। अगर वैज्ञानिक इन हड्डियों का अध्ययन न करते, तो हमें कभी पता न चलता कि हमारी धरती पर एक और अनोखी प्रजाति रहती थी।

वॉयली आज भी संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन अब जब हमें उनकी विविधता के बारे में ज्यादा जानकारी है, तो उम्मीद है कि इंसान उनकी रक्षा में और समझदारी से कदम उठाएगा। हो सकता है कि भविष्य में यह छोटे-छोटे “जंगल के इंजीनियर” फिर से बड़े पैमाने पर धरती को संजीवनी देते नजर आएं।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in