
आईयूसीएन ने भारतीय भेड़िए (कैनिस ल्यूपस पैलिप्स) की पहली बार अलग से समीक्षा की और इसे अलग प्रजाति मानने की सिफारिश की।
भारत और पाकिस्तान में इनकी कुल अनुमानित संख्या लगभग 3,093 है, और इसे "लुप्तप्राय" की श्रेणी में रखा गया है।
यह भेड़िया दुनिया की सबसे प्राचीन भेड़िया नस्लों में से एक है, जिसका विकास मानवों के आगमन से पहले हुआ।
केवल 12.4 फीसदी आबादी ही संरक्षित क्षेत्रों में है, बाकी खुले इलाकों में मानव-जनित खतरों का सामना कर रही है।
अगर इसे अलग प्रजाति का दर्जा मिलता है, तो यह कैनिस वंश की आठवीं आधिकारिक प्रजाति बन जाएगी।
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले भेड़िए 'कैनिस ल्यूपस पैलिप्स' की पहली बार अलग से समीक्षा की है। यह एक बड़ा कदम माना जा रहा है क्योंकि इस समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि भारतीय भेड़िए को अब भेड़ियों की एक अलग प्रजाति के रूप में मान्यता दी जा सकती है। अगर यह मान्यता मिलती है, तो यह भेड़िया, कैनिस वंश की आठवीं प्रजाति बन जाएगा।
क्या है भारतीय भेड़िया?
भारतीय भेड़िया, जिसे आम तौर पर ग्रे वुल्फ (ग्रे वुल्फ) कहा जाता है, भारत और पाकिस्तान में पाया जाता है। यह भेड़िया रेगिस्तानी, घास के मैदानों और सूखे जंगलों में रहता है। यह आकार में अन्य भेड़ियों से थोड़ा छोटा होता है, और इसके शरीर पर हल्के भूरे रंग की खाल होती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह भेड़िया दुनिया की सबसे प्राचीन भेड़िया नस्लों में से एक है। इसका विकास मानवों के आने से भी पहले भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ था। इसलिए इसे जैव-विविधता के नजरिए से एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रजाति माना जा रहा है।
क्या कहती है आईयूसीएन की रिपोर्ट?
आईयूसीएन के विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और पाकिस्तान में भारतीय भेड़ियों की कुल संख्या लगभग 2,877 से 3,310 के बीच हो सकती है। इतने कम संख्या में होने के कारण, इसे अब असुरक्षित (वल्नरेबल) श्रेणी में रखा गया है, जिसका मतलब है कि यह प्रजाति विलुप्त होने के खतरे में है।
आईयूसीएन की रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारतीय भेड़िया अब भी लगातार गिरावट की ओर बढ़ रहा है, जबकि बाघ जैसे अन्य बड़े जानवरों की संख्या धीरे-धीरे स्थिर हो रही है। इसका मुख्य कारण है कि यह भेड़िया अधिकतर संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहता है, जहां यह मानव गतिविधियों और खतरों से सीधे प्रभावित होता है।
संरक्षित क्षेत्रों में स्थिति
रिपोर्ट के अनुसार, केवल 12.4 फीसदी क्षेत्र ही ऐसा है जहां भारतीय भेड़ियों की मौजूदगी संरक्षित क्षेत्रों में है। बाकी लगभग 87 फीसदी भेड़िए ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां सरकारी संरक्षण या प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में यह भेड़िए शिकार, जमीन की बर्बादी, सड़क निर्माण और मानव-वन्यजीव संघर्षों से खतरे में हैं।
भारत में संरक्षण की जरूरत
रिपोर्ट में देहरादून के वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वैज्ञानिक के हवाले से कहा गया है कि जहां एक ओर बाघों की संख्या स्थिर हो रही है, वहीं भारतीय भेड़िए की संख्या लगातार घट रही है। इसका कारण यह है कि ये प्रजाति संरक्षित इलाकों के बाहर रहती है और मानवीय दबाव में है। इसे बचाने के लिए विशेष संरक्षण योजनाएं जरूरी हैं।
आईयूसीएन द्वारा इसे एक अलग प्रजाति का दर्जा मिल जाता है, तो यह कैनिस वंश की आठवीं आधिकारिक प्रजाति बन जाएगी। अभी तक इस वंश में निम्नलिखित सात प्रजातियां शामिल हैं:
कैनिस ल्युपस – ग्रे वुल्फ
कैनिस लैट्रांस – कोयोट
कैनिस ऑरियस– गोल्डन जैकल
कैनिस सिमेंसिस – इथियोपियन वुल्फ
कैनिस फैमिलिएरिस – घरेलू कुत्ता
कैनिस रूफस – रेड वुल्फ
कैनिस लूपास्टर – अफ्रीकी वुल्फ
भविष्य की राह
रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगले 10 सालों में खतरे और अधिक बढ़ सकते हैं। मानव और भेड़ियों के बीच संघर्ष जैसे उत्तर प्रदेश में हाल की घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि अगर भेड़ियों को समय पर संरक्षण नहीं मिला, तो उनकी संख्या और भी कम हो सकती है।
रिपोर्ट में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि जहां भी मानव-भेड़िया संघर्ष होता है, वहां पर समस्या पैदा करने वाले भेड़ियों को सावधानीपूर्वक हटाना चाहिए ताकि स्थानीय लोगों का समर्थन बना रहे और संरक्षण कार्य सफल हो सके।
भारतीय भेड़िया एक अनोखे और प्राचीन प्रजाति है जो केवल भारत और सीमित संख्या में पाकिस्तान में पाई जाती है। इसकी घटती संख्या और बढ़ते खतरे को देखते हुए, अब समय आ गया है कि इसे अलग प्रजाति के रूप में मान्यता दी जाए और इसके संरक्षण के लिए सख्त कदम उठाए जाएं। अगर हम आज नहीं जागे, तो आने वाले समय में यह प्रजाति हमेशा के लिए विलुप्त हो सकती है।