इसमें कोई शक नहीं कि जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया में बदलाव की वजह बन रहा है। इसकी वजह से न केवल मौसमी बदलाव हो रहे हैं, साथ ही प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी लगातार बढ़ रहा है। नतीजन यह आपदाएं उन क्षेत्रों को भी अपना निशाना बना रही हैं, जहां बेहद संवेदनशील प्रजातियां बसती हैं।
हालांकि इसके बावजूद हमारे पास उन प्रजातियों के बारे में बेहद कम जानकारी मौजूद है, जो प्राकृतिक आपदाओं की वजह से विशेष रूप से खतरे में हैं। कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के ग्लोब इंस्टीट्यूट से जुड़े शोधकर्ताओं ने उन प्रजातियों की पहचान की है जो तूफान, भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित नई रिसर्च के मुताबिक प्राकृतिक आपदाओं की वजह से दुनिया की 3,722 प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इनमें सरीसृप, उभयचर, पक्षी और स्तनधारी जीव शामिल हैं। गौरतलब है कि यह प्रजातियां ऐसे क्षेत्रों में रहती हैं जहां तूफान, भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी आने का सबसे ज्यादा खतरा है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चार प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं पर ध्यान केंद्रित किया है और इस बात की जांच की है कि वो कौन सी प्रजातियां हैं जो उन स्थानों पर रहती हैं जहां इन आपदाओं का सबसे ज्यादा जोखिम है। साथ ही शोधकर्ताओं ने उन प्रजातियों की भी पहचान की है जिनका वितरण सीमित है और जो बहुत कम संख्या में मौजूद हैं। इसकी मदद से उन्होंने उन प्रजातियों की पहचान की है जो इन खतरों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
किस आपदा से है सबसे ज्यादा खतरा
रिसर्च से पता चला है कि अध्ययन की गई 34,035 प्रजातियों में से 10 फीसदी कम से कम एक प्राकृतिक आपदा के चलते खतरे में हैं, जबकि 5.4 फीसदी प्रजातियों पर उच्च जोखिम मंडरा रहा है। खतरे में पड़ी इन प्रजातियों में पक्षियों की 5.7 फीसदी, स्तनधारियों की सात फीसदी, उभयचरों की 16 फीसदी, और सरीसृपों की 14.5 फीसदी प्रजातियां शामिल हैं।
इनमें से 2,001 प्रजातियां ऐसी हैं जिनपर इन आपदाओं का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। शोध के मुताबिक इनमें से 834 सरीसृप, 617 उभयचर, 302 पक्षी और 248 स्तनधारी प्रजातियां उच्च जोखिम में थी। यह प्रजातियां मुख्य रूप से द्वीपों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाती हैं।
आपदाओं के लिहाज से देखें तो जहां तूफानों की वजह से 983 प्रजातियों का अस्तित्व संकट में है। वहीं भूकंपों की वजह से 868, सुनामी ने 272 और ज्वालामुखी ने 171 प्रजातियों को प्रभावित किया है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ शोधकर्ता जोनास गेल्डमैन और बो डाल्सगार्ड ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, “इनमें से आधी प्रजातियां प्राकृतिक आपदाओं के कारण विलुप्त होने के उच्च जोखिम से जूझ रही हैं। इनमें से कई प्रजातियां उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय द्वीपों पर पाई जाती हैं, जहां इंसान पहले ही कई प्रजातियों के विलुप्त होने की वजह बन चुका है।“
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन उपायों पर भी प्रकाश डाला है जिनकी मदद से इन प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। इनमें प्रजातियों को संरक्षित क्षेत्रों में रखना, कैप्टिव ब्रीडिंग और उन्हें दूसरे सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाना जैसे उपाय शामिल हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इन प्रजतियों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा सकता है। इन प्रजातियों का ऐसा ही एक उदाहरण कैरिबियन द्वीप प्यूर्टो रिको में पाया जाने वाला तोता है, जो केवल उसी क्षेत्र में पाया जाता है।
इसके बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता फर्नांडो गोंसाल्वेस का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है कि, प्यूर्टो रिको में पाया जाने वाला यह तोता, जो कभी बेहद आम था, लेकिन अब इंसानी गतिविधियों और बढ़ते तूफानों की वजह से खतरे में पड़ गया है।" उनके मुतबिक इसे कैप्टिव ब्रीडिंग, संरक्षण और बहाली के उपायों की मदद से बचाया जा सकता है और प्राकृतिक आवास में इनकी तादाद में वृद्धि की जा सकती है।
प्रजातियों को खोने से पारिस्थितिकी तंत्र पर भी पड़ेगा गहरा असर
इस अध्ययन को लेकर शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि यह शोध प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए और अधिक प्रयासों को प्रेरित करेगा। वे चाहते हैं कि उनका काम सिर्फ खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची बनाने से कहीं ज्यादा हो।
उन्हें यह भी उम्मीद है कि इससे पारिस्थितिकी पर पड़ते व्यापक प्रभावों को समझने के लिए किए जाने वाले अध्ययनों को बढ़ावा मिलेगा, जैसे कि इन प्रजातियों के खत्म होने से उनके पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलु जैसे परागण, बीजों को फैलाना यह सभी जीवित जीवों के बीच होने वाली परस्पर क्रियाओं पर निर्भर करते हैं। ऐसे में इन परस्पर क्रियाओं में तालमेल के बिगड़ने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसकी वजह से न केवल प्रजातियों में तेजी से गिरावट आएगी। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को भी नुकसान पहुंचेगा।
गोंसाल्वेस का भी प्रेस विज्ञप्ति में कहना है कि, "हम सिर्फ एक प्रजाति ही नहीं खो रहे, इसके साथ ही हम पारिस्थितिकी तंत्र में उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले कई महत्वपूर्ण कार्यों को भी खो रहे हैं।"