

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अध्ययन के अनुसार, वर्तमान कृषि प्रणाली जारी रही तो भारी संख्या में प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं।
नया “लाइफ” मेट्रिक बताता है कि भूमि उपयोग में बदलाव जैव विविधता पर कितना असर डालते हैं।
बीफ और लैंब का उत्पादन जैव विविधता के लिए सबसे हानिकारक है, जबकि दालें और फलियां 150 गुना बेहतर विकल्प हैं।
ब्रिटेन की जैव विविधता पर प्रभाव का अधिकांश हिस्सा आयातित खाद्य पदार्थों, खासकर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आने वाले मांस से जुड़ा है।
अध्ययन दर्शाता है कि शाकाहारी आहार अपनाने और स्थानीय खाद्य स्रोतों को प्राथमिकता देने से जैव विविधता पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव आधा किया जा सकता है।
हम जो भी खाना खाते हैं, उसका प्रभाव केवल हमारे शरीर पर नहीं, बल्कि इस धरती पर रहने वाली अन्य जीव प्रजातियों पर भी पड़ता है। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के वैज्ञानिकों ने एक नया तरीका विकसित किया है, जिससे यह मापा जा सकता है कि हमारी खाद्य उत्पादन प्रणाली का अन्य प्रजातियों के अस्तित्व पर कितना असर पड़ता है।
शोध के अनुसार, यदि दुनिया भर में खेती की जमीन के उपयोग के तरीके नहीं बदले, तो आने वाले 100 वर्षों में 700 से 1,100 तक कशेरुकी प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। यह अनुमान आबादी की वृद्धि को शामिल नहीं करता, इसलिए वास्तविक खतरा इससे कहीं अधिक हो सकता है।
“लाइफ” मेट्रिक क्या है?
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने नई पद्धति विकसित की है, जिसे लैंड कवर चेंज इम्पैक्टस ऑन फ्यूचर एक्सटिंक्शन (लाइफ) कहा गया है। यह तकनीक यह समझने में मदद करती है कि भूमि उपयोग में होने वाले बदलाव, जैसे जंगलों की कटाई, खेती का विस्तार या आवासों की बहाली - कैसे जीव-जंतुओं की विलुप्ति के खतरे को प्रभावित करते हैं।
इस मेट्रिक में दुनिया की 30,875 स्थलीय कशेरुकी प्रजातियों (जैसे स्तनधारी, पक्षी, सरीसृप आदि) के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इसके माध्यम से वैज्ञानिक अब यह बता सकते हैं कि किसी भी खाद्य वस्तु के प्रति किलों उत्पादन से जैव विविधता पर सालाना कितना असर पड़ता है।
कौन-सा खाना सबसे अधिक नुकसानदायक?
नेचर फूड में प्रकाशित शोध में पाया गया कि बीफ और लैंब (भेड़ का मांस) का जैव विविधता पर सबसे बड़ा बुरा प्रभाव डालता है। इन जानवरों को पालने के लिए बहुत ज्यादा जमीन की आवश्यकता होती है, जिससे प्राकृतिक आवास नष्ट होते हैं और सैकड़ों प्रजातियां अपना घर खो देती हैं।
वहीं दूसरी ओर, फलियां (जैसे राजमा, मसूर, चना) जैसे पौधों पर आधारित प्रोटीन स्रोतों का असर बहुत कम है। अध्ययन के अनुसार, बीन्स और दालें खाने से जैव विविधता पर 150 गुना कम प्रभाव पड़ता है बनिस्बत रूमिनेंट (जैसे गाय, भेड़) मांस खाने के।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि एक किलो बीफ तैयार करने के लिए जितनी जमीन चाहिए, उतनी जमीन पर सैकड़ों जीव-जंतुओं का प्राकृतिक आवास होता है। अगर हम उतनी ही मात्रा में वनस्पति प्रोटीन उगाएं, तो पर्यावरण और जैव विविधता पर असर बहुत कम होगा।
उष्णकटिबंधीय खाद्य पदार्थों का बड़ा प्रभाव
हमारे कई पसंदीदा खाद्य पदार्थ जैसे कॉफी, कोको, चाय और केले मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में जैव विविधता बहुत समृद्ध होती है, इसलिए यहां खेती का विस्तार प्रजातियों के लिए बहुत अधिक खतरनाक साबित होता है।
इसके विपरीत, समशीतोष्ण क्षेत्रों में उगाई गई फसलें अपेक्षाकृत कम नुकसान पहुंचाती हैं, क्योंकि वहां जैव विविधता अपेक्षाकृत कम होती है।
शोध में पाया गया कि ब्रिटेन की जैव विविधता पर पड़ने वाला लगभग पूरा प्रभाव आयातित खाद्य वस्तुओं से जुड़ा है। उदाहरण के तौर पर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आयात किया जाने वाला बीफ, ब्रिटेन या आयरलैंड में उत्पादित बीफ की तुलना में 30 से 40 गुना अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा पैदा करता है।
ब्रेक्जिट के बाद इन देशों से मांस आयात में वृद्धि हुई है, जिससे ब्रिटेन की “विलुप्त होने के पदचिह्न” और बढ़ने के आसार हैं।
नीति-निर्माण में योगदान
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट और संयुक्त प्रकृति संरक्षण समिति (जेएनसीसी) के साथ मिलकर इस लाइफ मेट्रिक को यूके सरकार के पर्यावरणीय नीति उपकरणों में शामिल किया है।
इसके माध्यम से अब सरकारें यह विश्लेषण कर सकती हैं कि कौन-सी खाद्य नीति या व्यापारिक निर्णय वैश्विक जैव विविधता पर किस तरह का प्रभाव डालेंगे।
शोध में कहा गया है कि अगर हम केवल अपने देश की कृषि नीति पर ध्यान दें और कमी पूरी करने के लिए अन्य देशों से खाद्य आयात करें, तो हो सकता है कि हम अनजाने में कहीं और अधिक जैव विविधता नष्ट कर रहे हैं।
आगे की राह
पिछले 60 वर्षों में पृथ्वी की लगभग एक-तिहाई जमीन कृषि के लिए बदल दी गई है। यही भूमि उपयोग परिवर्तन प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण है।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का यह अध्ययन बताता है कि अगर लोग पौधों पर आधारित आहार अधिक अपनाएं और मांस का सेवन घटाएं, तो केवल ब्रिटेन जैसे देश अपनी जैव विविधता पर होने वाले प्रभाव को आधा कर सकते हैं।
क्या कहते हैं अध्ययन के निष्कर्ष?
हर बार जब हम कुछ खाते हैं, तो हम पृथ्वी के किसी न किसी जीव पर असर डालते हैं। इसलिए भोजन की हमारी पसंद न केवल हमारे स्वास्थ्य बल्कि पूरी पृथ्वी की जैव विविधता के भविष्य को भी तय करती है।
अगर हम अपनी थाली में थोड़ा बदलाव करें - मांस की जगह दालें, स्थानीय खाद्य पदार्थ और टिकाऊ उत्पादन को प्राथमिकता दें तो शायद आने वाली पीढ़ियों के लिए इस धरती को थोड़ा अधिक जीवंत बना सकते हैं।