
146 प्रजातियों के कुल 1,919 पक्षी दर्ज किए गए, जो काजीरंगा की समृद्ध पक्षी विविधता और पारिस्थितिकी की पुष्टि करता है।
दो संकटग्रस्त, छह संकटापन्न और छह निकट संकटग्रस्त प्रजातियों की उपस्थिति ने क्षेत्र की संरक्षण महत्ता को उजागर किया।
अगरातोली, गामीरी, पानबारी, पानपुर और लाओखोवा में गिनती हुई; अगरातोली रेंज में सर्वाधिक 89 प्रजातियां दर्ज की गई।
ग्रेट हॉर्नबिल, स्पॉट-बिल्ड पेलिकन, ब्लू-नेप्ड पिट्टा और स्वैम्प फ्रैंकोलिन जैसे दुर्लभ और प्रवासी पक्षी देखे गए।
भारत के असम राज्य में स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व को पूरी दुनिया में एक जैव-विविधता से भरपूर क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। यह क्षेत्र केवल एक सींग वाले गैंडे के लिए ही नहीं, बल्कि पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियों के लिए भी एक सुरक्षित और उपयुक्त निवास स्थल है।
इस क्षेत्र की पक्षी विविधता को बेहतर ढंग से समझने, संरक्षण को बढ़ावा देने और स्थानीय समुदायों को जोड़ने के उद्देश्य से ‘काटी बिहू बर्ड काउंट 2025’ का आयोजन किया गया। यह आयोजन 18 अक्टूबर 2025 को असम बर्ड मॉनिटरिंग नेटवर्क द्वारा काजीरंगा पार्क प्रशासन के सहयोग से किया गया।
पक्षियों की गिनती के आंकड़े
इस साल के बर्ड काउंट में कुल 146 प्रजातियों के 1,919 पक्षियों को दर्ज किया गया। यह संख्या दर्शाती है कि काजीरंगा न केवल स्तनधारियों के लिए, बल्कि पक्षियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है।
गिनती में शामिल पक्षियों को उनके संरक्षण की स्थिति के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा गया:
दो संकटग्रस्त प्रजातियां - स्वैम्प ग्रास बैबलर और पलास का फिश ईगल इसमें शामिल हैं।
छह संकटापन्न (वरिनेरब्ल) प्रजातियां - रिवर टर्न, ग्रेटर स्पॉटेड ईगल, स्लेंडर-बिल्ड बैबलर, लेसर अडजुटेंट, ग्रेट हॉर्नबिल, स्वैम्प फ्रैंकोलिन आदि शामिल हैं।
छह संकटग्रस्त के निकट की प्रजातियां - वुली-नेक्ड स्टॉर्क, नॉर्दर्न लैपविंग, ग्रे-हेडेड फिश ईगल, स्पॉट-बिल्ड पेलिकन, ब्लॉसम-हेडेड पेराकीट, रिवर लैपविंग।
132 प्रजातियां सामान्य स्थिति में थीं। यह आंकड़ा यह दिखाता है कि काजीरंगा पक्षियों की विभिन्न श्रेणियों के लिए एक सुरक्षित और अनुकूल वातावरण प्रदान करता है।
सर्वेक्षण के प्रमुख क्षेत्र
इस बार के बर्ड काउंट को पांच प्रमुख स्थानों पर आयोजित किया गया:
अगरातोली रेंज – 89 प्रजातियां (सबसे अधिक विविधता)
गामीरी रेंज – 59 प्रजातियां
पानबारी रेंज – 59 प्रजातियां
पानपुर (बिस्वनाथ वन्य प्रभाग) – 55 प्रजातियां
लाओखोवा वन्यजीव अभयारण्य – 37 प्रजातियां
इन स्थानों पर किए गए सर्वेक्षण ने दिखाया कि हर क्षेत्र की अपनी अनूठी पारिस्थितिकी है, जो विभिन्न प्रकार की पक्षी प्रजातियों को आकर्षित करती है।
जन समुदाय की भागीदारी
रिपोर्ट के अनुसार, इस कार्यक्रम में कुल 63 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें विद्यार्थी, पक्षी प्रेमी, शोधकर्ता और वन विभाग के अधिकारी शामिल थे। इस बार का एक विशेष आकर्षण यह रहा कि पानबारी और लाओखोवा क्षेत्रों में महिला वन कर्मियों की सक्रिय भागीदारी रही। यह एक सराहनीय कदम है, जो महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है और संरक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान को मान्यता देता है।
कार्यक्रम का एक और उद्देश्य युवाओं को प्रकृति से जोड़ना और स्थानीय समुदायों को पक्षियों की रक्षा में भागीदार बनाना था। इसके माध्यम से स्थानीय लोग पर्यावरण की रक्षा के महत्व को समझते हैं और स्वयं उसमें योगदान देने लगते हैं।
देखे गए प्रमुख पक्षी
इस आयोजन में कई विशेष और दुर्लभ पक्षियों को देखा गया, जिनमें शामिल हैं:
ग्रेट हॉर्नबिल
ब्लू-ईयर्ड बारबेट
ब्लू-नेप्ड पिट्टा
टाइगा फ्लायकैचर
ग्रे-हेडेड वुडपैकर
ग्रे-हेडेड फिश ईगल
नॉर्दर्न लैपविंग
स्पॉट-बिल्ड पेलिकन
जेर्डन का बाजा
लेसर अडजुटेंट
रूबी-चीक्ड सनबर्ड
स्लेंडर-बिल्ड बैबलर
स्वैम्प फ्रैंकोलिन
इन पक्षियों में से कई प्रवासी हैं, जो सर्दियों में भारत आते हैं, जबकि कई स्थायी निवासी हैं।
‘काटी बिहू बर्ड काउंट’ सिर्फ एक वैज्ञानिक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और पारिस्थितिक आंदोलन है। इसके माध्यम से पक्षियों की आबादी और उनके व्यवहार के आंकड़े इकट्ठा किए जाते हैं। संकटग्रस्त प्रजातियों की निगरानी की जाती है। संरक्षण नीति तैयार करने में सहायता मिलती है।स्थानीय लोगों को जागरूक और सक्रिय भागीदार बनाया जाता है।
यह आयोजन काजीरंगा की उस छवि को और भी मजबूत करता है, जिसमें यह क्षेत्र न केवल वन्य जीवों के लिए, बल्कि पक्षियों और अन्य जीवों के लिए भी एक सुरक्षित स्वर्ग के रूप में जाना जाता है।
‘काटी बिहू बर्ड काउंट 2025’ एक सफल और प्रेरणादायक आयोजन रहा, जिसने न केवल पक्षियों की स्थिति का मूल्यांकन किया, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को भी प्रकृति संरक्षण से जोड़ा। महिलाओं की भागीदारी, युवाओं की उपस्थिति और वैज्ञानिक नजरिए से यह कार्यक्रम भविष्य में और भी बड़े स्तर पर दोहराया जा सकता है।
काजीरंगा जैसे स्थलों में इस प्रकार के कार्यक्रमों की निरंतरता से ही हम अपनी जैव विविधता को सहेज सकते हैं, और आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर प्राकृतिक विरासत दे सकते हैं।