
दिल्ली में वेटलैंड्स यानी आर्द्रभूमियों को जिस संरक्षण की दरकार है, वह उन्हें नहीं मिल रहा। इसकी ताजा मिसाल है उत्तर दिल्ली के वजीराबाद में स्थित झरोदा तालाब, जो अब पूरी तरह से कचरे के नीचे दबकर गायब हो चुका है। यह मामला अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के संज्ञान में है।
एनजीटी ने 23 जुलाई, 2025 को मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति, दिल्ली विकास प्राधिकरण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तरी दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट और दिल्ली नगर निगम को मामले की जांच करने और अपनी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
अखबार की रिपोर्ट के आधार पर दर्ज हुआ मामला
गौरतलब है कि यह मामला टाइम्स ऑफ इंडिया में 16 जुलाई 2025 को छपी एक खबर के आधार पर अदालत द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया गया है।
यह मामला उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद के पास मौजूद एक आर्द्रभूमि (झरोदा तालाब) के गायब होने से जुड़ा है, जो कभी जलीय वनस्पति और जीवों के एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र का आधार थी। रिपोर्ट के मुताबिक, कभी जीव-जंतुओं और जलजीवों की शरणस्थली रहा झरोदा तालाब, बीते दो वर्षों में धीरे-धीरे कचरे से भरकर समतल जमीन में बदल गया। यह क्षेत्र यमुना के बाढ़ क्षेत्र और कैचमेंट का हिस्सा रहा है, जिसे पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील माना जाता है।
भलस्वा लैंडफिल से लाई जा रही थी भराई की सामग्री
2023 में टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक अन्य खबर में पहले ही बताया गया था कि भलस्वा लैंडफिल से निकला मलबा वजीराबाद और तिमारपुर क्षेत्रों के वेटलैंड्स में डंप किया जा रहा है। यह दोनों ही ऐतिहासिक रूप से यमुना के बाढ़ क्षेत्र और जलग्रहण क्षेत्र का हिस्सा हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक तब झरोदा तालाब आंशिक रूप से ही भरा गया था, लेकिन हाल ही में किए एक निरीक्षण में पूरा क्षेत्र समतल और कचरे से ढका पाया गया, यहां जलचरों या जल स्रोत का कोई चिन्ह नहीं बचा है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि यह काम कम से कम दो वर्षों से जारी है, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
कागजों तक सीमित वेटलैंड नियम
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि भले ही देश में वेटलैंड (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम 2017 को 2020 में लागू किया गया हो, लेकिन दिल्ली में आज तक एक भी वेटलैंड को आधिकारिक रूप से अधिसूचित नहीं किया गया है।