सात लाख फर्जी प्रमाण पत्र: सीएसई रिपोर्ट ने ईपीआर दिशा-निर्देशों के क्रियान्वयन में खामियां को किया उजागर

ईपीआर दिशा-निर्देशों में निर्माताओं के लिए पंजीकरण अनिवार्य है, इसके बावजूद वर्जिन प्लास्टिक के निर्माता पोर्टल से गायब हैं
प्लास्टिक कचरे का जमा पहाड़, फोटो: आईस्टॉक
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भारत बढ़ते प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है, लेकिन जब तक वो अपनी नीतियों और दिशानिर्देशों को सशक्त नहीं करता, तब तक उसके प्रयास सफल नहीं होंगे। इसका एक ज्वलंत उदाहरण एक्सटेंडेड प्रॉड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व) (ईपीआर) से जुड़े दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए जारी किया गया था।

हालांकि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने अपने नए विश्लेषण में इन दिशा-निर्देशों के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण खामियों को उजागर किया है।

सीएसई विश्लेषण में जो निष्कर्ष समाने आए हैं वो लक्षित सिफारिशों के साथ, मजबूत कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं, ताकि भारत का ईपीआर ढांचा प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में प्रभावी साबित हो सके। साथ ही प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेवार लोगों की जवाबदेही तय की जा सके और उन्हें ‘प्रदूषणकर्ता भुगतान सिद्धांत’ के दायरे में लाया जा सके।

यहां विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व से तात्पर्य है कि उत्पादक और आयातकों जैसे अन्य हितधारक, जो शुरू से अंत तक पूरे जीवन चक्र के दौरान प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए जिम्मेवार हैं, उनकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। इसका मतलब है कि प्लास्टिक उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों (पीआईबीओ) को पैकेजिंग से जुड़े प्लास्टिक कचरे को एकत्र, परिवहन, चैनलाइजेशन और रीसाइक्लिंग करने में निवेश करना चाहिए।

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गौरतलब है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 16 फरवरी, 2022 को ईपीआर से जुड़े दिशा-निर्देश जारी किए थे। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार निर्माताओं, उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों के साथ-साथ जो लोग प्लास्टिक कचरे को प्रोसेस करने के कार्यों से जुड़े हैं, उन्हें अपने आप को अनिवार्य रूप से एक केंद्रीय पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा।

इन दिशा-निर्देशों में प्लास्टिक पैकेजिंग को एकत्र, पुनर्चक्रित करने के साथ-साथ पुनर्चक्रित सामग्री का उपयोग और पुनः उपयोग करने के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। हालांकि सीएसई ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि इन नियमों को लागू करने में महत्वपूर्ण खामियां हैं, जिन्हे जल्द से जल्द दुरुस्त किए जाने की आवश्यकता है।

इस विश्लेषण को जारी करते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि हमें अपने प्लास्टिक का प्रबंधन इस तरह करना चाहिए कि वो कचरा न बने।" उनके मुताबिक सरकार के ईपीआर दिशानिर्देश एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं, लेकिन सीएसई विश्लेषण में जो खामियां सामने आई हैं, उनसे इसकी ईमानदारी पर सवाल उठ सकते हैं। ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह सारे प्रयास समय की बर्बादी न बन जाएं।

सीएसई द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक सेंट्रल ईपीआर पोर्टल को इस विश्लेषण के समय तक उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों से 41,577 पंजीकरण प्राप्त हुए हैं। इनमें से 83 फीसदी आयातक, 11 फीसदी उत्पादक हैं और छह फीसदी ब्रांड मालिक हैं।

विश्लेषण से यह भी पता चला है कि उत्पादक भारत में प्लास्टिक पैकेजिंग के अधिकांश हिस्से के लिए जिम्मेवार हैं। इनकी कुल हिस्सेदारी करीब 65 फीसदी है। वहीं 26 फीसदी के लिए ब्रांड मालिक जवाबदेह हैं। हालांकि पंजीकरण कराने वालों में सबसे अधिक संख्या आयातकों की होने के बावजूद प्लास्टिक पैकेजिंग में उनकी सिर्फ नौ फीसदी की हिस्सेदारी है।

सीएसई के कार्यक्रम निदेशक अतिन बिस्वास के मुताबिक, "ईपीआर दिशा-निर्देशों में निर्माताओं के लिए पंजीकरण अनिवार्य है, इसके बावजूद वर्जिन प्लास्टिक के निर्माता पोर्टल से गायब हैं।“

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प्लास्टिक रीसाइकिलर्स द्वारा बनाए गए 700,000 फर्जी प्रमाणपत्र

“एक और समस्या यह है कि प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन से जुड़े अहम खिलाड़ी, जैसे शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) और अनौपचारिक तरीके से कचरा एकत्र करने वाले ईपीआर ढांचे में शामिल नहीं हैं। हालांकि समर्थन और प्रोत्साहन के बिना, उनके लिए प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन कठिन हो जाता है, जिससे स्थानीय सरकारों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।“

रिपोर्ट के मुताबिक दिशा-निर्देशों की घोषणा के बाद से ही कचरे के संग्रह से जुड़े लक्ष्य लागू कर दिए गए, लेकिन इसकी रीसाइक्लिंग से जुड़े लक्ष्यों को 2024-25 में लागू किया गया है। इनके मुताबिक 2024-25 में पंजीकृत पीआईबीओ को भारतीय बाजार में लाए जाने वाली सभी प्लास्टिक पैकेजिंग का 35 फीसदी हिस्सा मेकैनिकल तरीके से पुनर्चक्रित करना होगा।

रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2022 में ईपीआर पोर्टल लॉन्च होने के बाद से, पीआईबीओ ने भारतीय बाजार में 2.39 करोड़ टन प्लास्टिक पैकेजिंग पेश की है, इसकी वजह से हर साल करीब 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है। बिस्वास का कहना है इससे पता चलता है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का सालाना 41 लाख टन प्लास्टिक कचरे का अनुमान बहुत कम है।

इससे जुड़ी एक और समस्या यह है कि भारतीय बाजार में पहुंचने वाली करीब लगभग 66 फीसदी प्लास्टिक पैकेजिंग लचीली है, जिसे इकट्ठा और रीसाइकिल करना बेहद मुश्किल है। मार्च 2024 में, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत ईपीआर दिशा-निर्देशों को बहु-स्तरीय प्लास्टिक (एमएलपी) पैकेजिंग को लचीली प्लास्टिक पैकेजिंग के रूप में वर्गीकृत करने के लिए अपडेट किया गया था। इस पैकेजिंग का उपयोग चिप्स, बिस्कुट और पाउच जैसे उत्पादों के लिए किया जाता है।

इस बारे में सीएसई के कार्यक्रम प्रबंधक सिद्धार्थ सिंह ने जानकारी दी है कि, "भारतीय उपमहाद्वीप के शहर एमएलपी पैकेजिंग से जूझ रहे हैं, क्योंकि इसका केवल एक छोटा सा हिस्सा ही प्रोसेस और रीसाइकिल हो पाता है।

वहीं एमएलपी को लचीले प्लास्टिक के रूप में पुनर्वर्गीकृत करने से कंपनियों पर बेहतर, अधिक पुनर्चक्रणीय पैकेजिंग तैयार करने का दबाव कम हो जाता है। इसका मतलब है कि स्थानीय सरकारों को इस मुश्किल प्लास्टिक कचरे को एकत्र और प्रबंधित करने के लिए कहीं अधिक जूझना होगा।

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सिंह कहते हैं, "फिलहाल, ब्रांड मालिक प्लास्टिक, विशेष रूप से एमएलपी पैकेजिंग को एकत्र करने और उसे कचरा प्रोसेस या रीसायकल करने वालों तक भेजने की लागत का महज 10 फीसदी ही वहन कर रहे हैं।"

अक्टूबर 2023 में, सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने प्लास्टिक कचरे के क्षेत्र में एक घोटाले का भी पर्दाफाश किया। उन्होंने पाया कि तीन राज्यों में प्लास्टिक रीसाइकलर नकली "प्लास्टिक प्रमाणपत्र" बना रहे हैं।

बिस्वास बताते हैं, "ईपीआर दिशा-निर्देश बाजार-संचालित क्रेडिट/सर्टिफिकेट ट्रेडिंग प्रणाली को प्रोत्साहित करते हैं। इसमें पीआईबीओ प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा और उसका प्रबंधन किए बिना क्रेडिट या प्रमाणपत्र का व्यापार कर सकते हैं।

अब, पीआईबीओ प्लास्टिक कचरा प्रोसेस करने वालों से बहुत कम कीमतों पर प्रमाणपत्र खरीद सकते हैं। इससे उनकी जिम्मेदारी और जवाबदेही कम हो जाती है। नतीजन ‘प्रदूषणकर्ता भुगतान सिद्धांत’ कमजोर हो जाता है, जिसका समर्थन करने के लिए ये कानून बनाए गए थे।"

विनियामक निकायों ने पाया है कि प्लास्टिक रीसाइकिलर्स द्वारा 700,000 फर्जी प्रमाणपत्र बनाए, जोकि उनके द्वारा बनाए जाने वाले प्रमाण पत्रों की क्षमता से 38 गुणा अधिक है। सीपीसीबी ने उल्लंघनकर्ताओं पर पहले ही 355 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है।

सिंह का कहना है, "इन प्रथाओं से प्रमाणपत्रों की कीमतें बहुत कम हो जाती हैं, जिससे सिस्टम पर भरोसा घट जाता है। हमने पाया कि समस्या अपेक्षा से कहीं ज्यादा बड़ी है। सीएसई द्वारा किए विश्लेषण से पता चला है कि कई और राज्यों का पता चला है जहां नकली प्रमाणपत्र बन रहे हैं।

जो कंपनियां कचरे को तेल, ऊर्जा या सीमेंट में बदल देती हैं, वे अपनी स्वीकृत प्रसंस्करण सीमा से ज्यादा प्रमाणपत्र बना और हस्तांतरित कर रही हैं। हालांकि इसके बावजूद अभी तक, ईपीआर दिशा-निर्देशों के उद्देश्य और सिद्धांतों को कमजोर करने के लिए पीआईबीओ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।"

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता श्रोतिक बोस का कहना है, अध्ययन में प्रोसेस प्लास्टिक कचरे की मात्रा और पंजीकृत क्षमताओं के बीच बड़ा अंतर देखा गया। उदाहरण के लिए सीमेंट संयंत्र हर साल 33.5 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरे को प्रोसेस करने का दावा करते हैं, जबकि उनकी वास्तविक क्षमता महज 1.14 करोड़ टन है।

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क्या होनी चाहिए आगे की राह

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए ईपीआर प्रणाली को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण बदलावों के सुझाव दिए हैं। बिस्वास कहते हैं, "हमारे पास इन बदलावों के लिए समय है क्योंकि दिशा-निर्देशों की समय सीमा 2027-28 तक है। ऐसे में यदि हम समय रहते ठोस कदम उठाते हैं तो बेहतर तरीके से काम करने वाली बाजार संचालित ईपीआर प्रणाली बना सकते हैं।"

अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता अनिकेत चंद्रा का कहना है, "मौजूदा ईपीआर प्रणाली हितधारकों के एक महत्वपूर्ण समूह को नजरअंदाज करती है, इसमें अपशिष्ट प्रबंधन एजेंट और अनौपचारिक क्षेत्र शामिल हैं। उनके मुताबिक मूल्य श्रृंखला की ट्रेसेबिलिटी में सुधार के लिए उन्हें पहचानना आवश्यक है।

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में फर्जी प्रमाणपत्रों के साथ-साथ बेईमान प्रोसेस और रीसायकल करने वालों की गतिविधियों को रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसके साथ ही पोर्टल का उपयोग करके प्लास्टिक कचरे के उत्पादन की सटीक संख्या की रिपोर्ट करना, रीसाइक्लिंग प्रमाणपत्रों के लिए उचित मूल्य निर्धारित करने और कम बाजार मूल्यों से बचने के लिए प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए लागत अध्ययन करना जैसी सिफारिशें भी दी हैं।

साथ ही रिपोर्ट में पैकेजिंग सामग्री और डिजाइनों को सुसंगत बनाकर प्लास्टिक कचरे की पुनर्चक्रण क्षमता में सुधार करने के लिए उत्पादों का मानकीकरण करने पर भी जोर दिया है।

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