क्यों प्लास्टिक कचरे के मामले में एनजीटी ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को लगाई फटकार

मामला हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर के बाद प्रकाश में आया है, जिसके मुताबिक लखनऊ में पैदा हो रहे प्लास्टिक कचरे में पांच गुणा वृद्धि हुई है
प्रतीकात्मक तस्वीर: विकीमीडिया कॉमन्स
प्रतीकात्मक तस्वीर: विकीमीडिया कॉमन्स
Published on

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने (एनजीटी) ने प्लास्टिक कचरे के मामले में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को फटकार लगाई है। मामला लखनऊ में प्लास्टिक कचरे की सही स्थिति और तथ्यों की जांच के बिना रिपोर्ट प्रस्तुत करने से जुड़ा है।

अदालत का कहना है कि 10 सितंबर, 2024 को यूपीपीसीबी की प्रतिक्रिया लापरवाहीपूर्ण थी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने लखनऊ में पैदा हो रहे कचरे और उसके निपटान के आंकड़ों की जांच के उचित प्रयास नहीं किए थे। ट्रिब्यूनल का कहना है कि यूपीपीसीबी को रिपोर्ट सबमिट करने से पहले सटीक जानकारी एकत्र करने के लिए जमीनी स्तर पर पड़ताल करनी चाहिए थी।

एनजीटी का कहना है कि, "यह जवाब लखनऊ नगर निगम के पर्यावरण इंजीनियर द्वारा दी गई कुछ सूचनाओं पर आधारित है। जिसके मुताबिक लखनऊ में हर दिन करीब 99 टन कचरा पैदा हो रहा है।

हालांकि, जवाब में इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यूपीपीसीबी ने इस सूचना की जांच के प्रयास किए हैं और यह नहीं बताया है कि लखनऊ नगर निगम ने शहर में पैदा हो रहे कचरे की मात्रा का आकलन कैसे किया है।"

लखनऊ नगर निगम से मिली जानकारी के आधार पर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि हर दिन पैदा हो रहे 99 टन में से 86 86 टन कचरे का निपटान हो रहा है। साथ ही इस बात का भी जिक्र किया गया है कि उल्लंघन करने वालों से 15.26 लाख रुपए का जुर्माना वसूला गया है।

यूपीपीसीबी ने नई रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए अदालत से तीन सप्ताह का समय मांगा है। ट्रिब्यूनल ने लखनऊ नगर निगम को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 12 दिसंबर, 2024 को होगी।

गौरतलब है कि इस मामले में अदालत ने स्वतः संज्ञान लिया था। 22 अप्रैल, 2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर में सामने आया है कि लखनऊ में हर दिन करीब 300 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है। खबर में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि शहर में प्लास्टिक कचरे की मात्रा में पांच गुणा वृद्धि हुई है। यह कचरा 2015 में 59 टन से बढ़कर 2024 में 300 मीट्रिक टन पर पहुंच गया है।

एनजीटी ने अतिक्रमण को दूर करने के लिए सतलुज बाढ़ क्षेत्र के सीमांकन का दिया निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने फिरोजपुर और तरनतारन के 47 किलोमीटर क्षेत्र में सतलुज नदी के चिह्नित बाढ़ क्षेत्र पर रिपोर्ट मांगी है। 11 सितंबर 2024 को दिए आदेश के मुताबिक इस रिपोर्ट को जनवरी 2025 के पहले सप्ताह तक प्रस्तुत करनी है। इस मामले में अगली सुनवाई 15 जनवरी 2025 को होगी।

पंजाब के खनन संचालन विभाग के मुख्य अभियंता ने अदालत को बताया कि फिरोजपुर और तरनतारन के विचाराधीन खंड में सतलुज नदी के बाढ़ क्षेत्र का चिह्नांकन 31 दिसंबर, 2024 तक पूरा हो जाएगा।

गौरतलब है कि इस मामले में 17 अप्रैल, 2023 को एनजीटी के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था। इसमें सतलुज नदी के बाढ़ क्षेत्र को चिह्नित करने का अनुरोध किया गया था। जो सतलुज की पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। मीडिया में प्रकाशित खबरों से पता चला है कि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर  अतिक्रमण हुए हैं।

क्या यमुनानगर में वन क्षेत्र के भीतर चल रहे हैं क्रशर, एनजीटी ने जांच के दिए आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने चार सदस्यीय समिति से वन क्षेत्र की प्रतिबंधित सीमा के भीतर चल रहे स्टोन क्रशर के संबंध में आई शिकायत पर जांच करने को कहा है। मामला हरियाणा में यमुनानगर के डोईवाला गांव का है।

इस समिति में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), यमुनानगर के जिला वन अधिकारी, हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य तथा यमुनानगर के जिला मजिस्ट्रेट शामिल होंगे।

11 सितंबर, 2024 को दिए इस आदेश में अदालत ने समिति से यमुनानगर में कितने स्टोन क्रशर चल रहे हैं, इसकी जांच करने को कहा है। इसके लिए समिति इस साइट का दौरा करेगी। समिति यह भी पता लगाएगी कि क्या यह क्रशर साइट और पर्यावरण मानकों से जुड़े नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं। इसके बाद समिति एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in