

गुरुग्राम नगर निगम ने एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अप्रैल 2025 के बाद से बंधवाड़ी स्थित सैनिटरी लैंडफिल साइट पर आग की कोई घटना दर्ज नहीं हुई है।
नगर निगम ने बताया कि हॉटस्पॉट्स की पहचान, मीथेन नियंत्रण और फायर तंत्र के जरिए आग के खतरे को न्यूनतम किया गया है
लैंडफिल में आग लगने का सबसे आम कारण बायो-रीमेडिएशन के दौरान ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ना है। इससे बैक्टीरिया की गतिविधि तेज हो जाती है और तापमान बढ़ता है, नतीजन एरोबिक अपघटन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
ऐसे स्थानों को ‘हॉटस्पॉट’ कहा जाता है, जहां कचरों के भीतर मीथेन गैस फंसी रहती है। तापमान बढ़ने के साथ इन हॉटस्पॉट्स पर आग लगने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
नगर निगम ने हॉटस्पॉट्स की पहचान के लिए पोर्टेबल मीथेन गैस डिटेक्टर का उपयोग किया है। बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर चार पोर्टेबल मीथेन गैस डिटेक्टर लगाए गए हैं।
नगर निगम का कहना है कि समय रहते हॉटस्पॉट्स की पहचान होने से आग के खतरे को पहले ही कम किया जा सकता है।
गुरुग्राम नगर निगम ने 15 दिसंबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अप्रैल 2025 के बाद से बंधवाड़ी स्थित सैनिटरी लैंडफिल साइट पर आग की कोई घटना दर्ज नहीं हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लैंडफिल में आग लगने का सबसे आम कारण बायो-रीमेडिएशन के दौरान ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ना है। इससे बैक्टीरिया की गतिविधि तेज हो जाती है और तापमान बढ़ता है, नतीजन एरोबिक अपघटन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। ऐसे स्थानों को ‘हॉटस्पॉट’ कहा जाता है, जहां कचरों के भीतर मीथेन गैस फंसी रहती है। तापमान बढ़ने के साथ इन हॉटस्पॉट्स पर आग लगने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
गुरुग्राम नगर निगम ने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के दिशा-निर्देशों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र व आस-पास के इलाकों के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के आदेशों के अनुसार, आग लगने की घटनाओं को रोकने और जरूरत पड़ने पर उसे तुरंत नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
नगर निगम ने हॉटस्पॉट्स की पहचान के लिए पोर्टेबल मीथेन गैस डिटेक्टर का उपयोग किया है। बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर चार पोर्टेबल मीथेन गैस डिटेक्टर लगाए गए हैं।नगर निगम का कहना है कि समय रहते हॉटस्पॉट्स की पहचान होने से आग के खतरे को पहले ही कम किया जा सकता है।
हॉटस्पॉट मिलने पर वहां जेसीबी और एक्स्केवेटर की मदद से खुदाई की जाती है, ताकि कचरे के भीतर फंसी मीथेन बाहर निकल सके और आग का जोखिम घट सके। इसके अलावा, गर्मियों के महीनों में, जब आग लगने की आशंका सबसे अधिक होती है, साइट पर फायर टेंडरों की तैनाती भी सुनिश्चित की जाती है।
नगर निगम ने कचरे में खाली जगहों (वॉइड्स) में मीथेन जमा न हो, इसके लिए कचरे को दबाकर रखने की तकनीक भी अपनाई है। इससे गैस के जमाव और आग लगने का खतरा कम हो जाता है।
गर्मियों में बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए लैंडफिल से निकलने वाले लीचेट को टैंकरों और पाइपलाइनों के जरिए कचरे पर छिड़का जाता है। इससे न सिर्फ तापमान कम रहता है, बल्कि लीचेट का उपयोग भी हो जाता है और आग का खतरा घटता है।
रिपोर्ट में नगर निगम ने साइट पर मौजूद फायर फाइटिंग उपकरणों और उनकी तैनाती का पूरा ब्योरा भी एनजीटी को सौंपा है।
काल्दिया नदी अवैध खनन मामला: एनजीटी ने प्रशासन की रिपोर्ट को बताया अधूरा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी पीठ ने 11 दिसंबर 2025 को हुई सुनवाई में कहा कि बजाली के जिला आयुक्त द्वारा दी गई जानकारी अधूरी है। मामला असम के बजाली जिले की चायबारी गांव में काल्दिया नदी में हुए अवैध खनन से जुड़ा है।
एनजीटी ने स्पष्ट किया कि हलफनामे में यह नहीं बताया गया कि अवैध खनन के मामले में एफआईआर दर्ज की गई या नहीं। चार्जशीट दाखिल किए जाने का उल्लेख जरूर किया गया है, लेकिन न तो एफआईआर की कॉपी संलग्न की गई है और न ही चार्जशीट की। इसके अलावा, अवैध रूप से निकाले गए खनिज की मात्रा का भी कोई विवरण नहीं दिया गया है और यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि दोषियों पर कोई जुर्माना लगाया गया है या नहीं।
सुनवाई के दौरान बजाली के जिला मजिस्ट्रेट और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने अदालत को बताया कि अवैध खनन रोकने के लिए कदम उठाए गए हैं और आगे भी आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। जिला मजिस्ट्रेट ने यह भी कहा कि नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना लगाया गया है, लेकिन अब तक उसकी वसूली नहीं हो सकी है।
वहीं, असम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एएसपीसीबी) ने एनजीटी को बताया कि प्रशासन की ओर से मांगी गई जानकारी बोर्ड को उपलब्ध नहीं कराई गई है। बोर्ड ने भरोसा दिलाया कि वह जल्द ही अपनी ओर से कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करेगा।
इस मामले में अगली सुनवाई 23 फरवरी 2026 को होगी।