
दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल में हर दिन 1,500 से 1,600 टन कचरा प्रोसेस नहीं हो पा रहा है।
एमसीडी की रिपोर्ट के अनुसार, लैंडफिल में 2,400 से 2,600 मीट्रिक टन कचरा आता है, लेकिन प्रोसेसिंग क्षमता केवल 700 से 1,000 टन है।
बायो-खनन और वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के माध्यम से कचरे की सफाई की जा रही है।
इसमें से कुछ कचरे को पहले ओखला प्लांट में भेजा जाता था, हालांकि यह प्लांट अप्रैल 2025 में बंद हो गया। इसके बाद अगस्त 2025 से इसे फिर से शुरू किया गया है। वर्तमान में हर दिन करीब 300 टन कचरा ओखला प्रोसेसिंग सुविधा में भेजा जा रहा है
जुलाई 2022 में ड्रोन सर्वे की मदद से साइट में कितना कचरा जमा है इसका मूल्यांकन किया गया। इससे पता चला है कि वहां करीब 85 लाख मीट्रिक टन पुराना कचरा जमा था।
यह भी सामने आया कि कचरे के इस पहाड़ की ऊंचाई करीब 65 मीटर थी। हालांकि अगस्त 2025 तक इसमें से 32 लाख मीट्रिक टन कचरे को प्रोसेस किया जा चुका है।
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि गाजीपुर लैंडफिल में हर दिन आने वाला 1,500 से 1,600 टन कचरा तुरंत प्रोसेस नहीं हो पा रहा है। यह रिपोर्ट 10 अक्टूबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में प्रस्तुत की गई है। रिपोर्ट में गाजीपुर लैंडफिल की मौजूदा स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, गाजीपुर सैनिटरी लैंडफिल में हर दिन करीब 2,400 से 2,600 मीट्रिक टन कचरा आता है। इसमें से 700 से 1000 टन कचरे को गाजीपुर वेस्ट टू एनर्जी (डब्ल्यूटीई) प्लांट में प्रोसेस किया जाता है, जबकि 1,500 से 1,600 टन कचरे को तुरंत प्रोसेस नहीं किया जा सकता।
इस बचे कचरे को बायो-माइनिंग की मदद से बनाई सीमित जगह में डाला जाता है, क्योंकि वहां कचरे का पहाड़ इतना ऊंचा हो गया है कि उसका ऊर्ध्वाधर विस्तार संभव नहीं है।
इसमें से कुछ कचरे को पहले ओखला प्लांट में भेजा जाता था, हालांकि यह प्लांट अप्रैल 2025 में बंद हो गया। इसके बाद अगस्त 2025 से इसे फिर से शुरू किया गया है। वर्तमान में हर दिन करीब 300 टन कचरा ओखला प्रोसेसिंग सुविधा में भेजा जा रहा है, हालांकि, कचरे की यह मात्रा ओखला प्लांट की संचालन जरूरतों पर निर्भर करती है, क्योंकि कभी-कभी निर्धारित क्षेत्र से कचरे की आपूर्ति हमेशा पूरी नहीं हो पाती। यानी कभी-कभी जरूरत के हिसाब से पूरा कचरा नहीं मिल पाता।
करीब 65 मीटर ऊंचा है कचरे का पहाड़
रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि एमसीडी ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 और एनजीटी निर्देशों के अनुसार साइट पर बायो-खनन और बायो-रिमेडिएशन परियोजनाएं शुरू की हैं। वहां कई ट्रॉमेल मशीनें लगाई गई हैं और पुराने कचरे की काफी मात्रा प्रोसेस की जा चुकी है।
हालांकि, कचरे की भारी मात्रा जमा होने के कारण पूरी सफाई में काफी समय लगेगा। यह काम 2019 में पायलट आधार पर शुरू किया गया था। इसमें सीमित मशीनरी के साथ पैनल्ड एजेंसियों द्वारा काम किया गया।
रिपोर्ट में इस बात को भी उजागर किया गया है कि इस काम के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे कि ट्रॉमेल मशीनों के लिए पर्याप्त जगह न होना, विशेष मशीनों या तकनीक की कमी और अनुभवी ठेकेदारों का अभाव जैसी दिक्कतें सामने आई।
रिपोर्ट से पता चला है कि जुलाई 2022 में ड्रोन सर्वे की मदद से साइट में कितना कचरा जमा है इसका मूल्यांकन किया गया। इससे पता चला है कि वहां करीब 85 लाख मीट्रिक टन पुराना कचरा जमा है। यह भी सामने आया कि कचरे के इस पहाड़ की ऊंचाई करीब 65 मीटर थी। हालांकि अगस्त 2025 तक इसमें से 32 लाख मीट्रिक टन कचरे को प्रोसेस किया जा चुका है।
ताजा कचरे और प्रोसेसिंग क्षमता में बड़ा अंतर
रिपोर्ट के मुताबिक, लैंडफिल पर हर दिन करीब 2,400 से 2,600 मीट्रिक टन ताजा कचरा आ रहा है, जबकि मौजूदा प्रोसेसिंग क्षमता महज 700 से 1,000 मीट्रिक टन प्रतिदिन है। इस कारण रोजाना 1,500 से 1,600 मीट्रिक टन कचरे को तुरंत प्रोसेस नहीं किया जा सकता।
बचा कचरा गाजीपुर साइट पर सीमित उपलब्ध जगह में अस्थाई रूप से फैला दिया जाता है। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि यह केवल अस्थाई उपाय है, जो अतिरिक्त भूमि और प्रोसेसिंग सुविधाओं की कमी के चलते अपनाया गया है। एमसीडी इस समय वेस्ट टू एनर्जी प्लांट और बायो-खनन कार्यों के विस्तार में सक्रिय रूप से जुटा है।
रिपोर्ट से पता चला है कि बायो-खनन की मदद से करीब पांच एकड़ जमीन साफ की जा चुकी है। यह जगह खाली नहीं छोड़ी गई है, बल्कि संचालन संबंधी जरूरतों के लिए इस्तेमाल की जा रही है। हालांकि ताजा कचरा अभी भी डाला जा रहा है, लेकिन लैंडफिल का कुल आयतन घट रहा है क्योंकि पुराने कचरे को तेजी से हटाया जा रहा है, जिससे हर दिन कचरे का ढेर कम हो रहा है।
इससे लैंडफिल में जमा कचरा भी घट रहा है। हालिया आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2025 में ठेका मिलने के बाद, हटाए गए कचरे की मात्रा ताजा कचरे से कहीं अधिक है। लैंडफिल से निकलने वाला लीचेट इकट्ठा किया जा रहा है और इसे धूल रोकने और ताजा कचरे के बायो-कल्चर के लिए पुनः छिड़का जा रहा है।
इसके अलावा, एमसीडी ने लीचेट को एकत्र करने के लिए दो टैंक बनाए हैं, जिनमें से प्रत्यके की क्षमता 50,000 लीटर है। ये टैंक दिसंबर 2024 में पूरी तरह तैयार हो गए थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लैंडफिल साइट पर निर्माण सम्बन्धी कचरे के निपटान के लिए विभिन्न स्थानों पर बायो-खनन जारी है और कचरे का निपटान गाजीपुर एसएलएफ साइट के तीन गेट्स के माध्यम से किया जा रहा है।
रिपोर्ट में इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि अपघटन एक सतत प्रक्रिया है। ऐसे में वेस्ट साइटों पर आग लगने का खतरा बना रहता है, क्योंकि जैविक पदार्थों के एनएरोबिक अपघटन से मिथेन गैस निकलती है। इसलिए प्राप्त कचरे के ऊपर निर्माण सम्बन्धी सामग्री फैलाई जाती है, जिससे उच्च तापमान पर गैस को अचानक निकलने को रोका जा सके। इससे आग का जोखिम घट जाता है और पैदा होने वाली दुर्गन्ध भी नियंत्रित रहती है।
यह उपाय गैस को रोकने का एक तरीका है और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 तथा सीपीसीबी दिशानिर्देशों के अनुसार बायो-रिमेडिएशन और बायो-खनन प्रक्रियाओं का हिस्सा भी है।
लीचेट के कच्चे नालों में प्रवाह के संबंध में बताया गया है कि गेट के पास स्थित नाला पहले पक्का था, लेकिन समय के साथ इसकी स्थिति खराब हो गई। नाले को पुनर्निर्मित करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया गया है।
वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के बारे में जानकारी दी गई है प्लांट में हर दिन करीब 700 से 1000 मीट्रिक टन कचरा आ रहा है। प्लांट की तकनीकी रूप से अधिकतम क्षमता 1300 मीट्रिक टन प्रति दिन है, जबकि वास्तविक संचालन क्षमता 800 से 850 मीट्रिक टन प्रति दिन है।
ऐसे में रोजाना कचरे के प्रवाह में उतार-चढ़ाव को संभालने और लगातार संचालन बनाए रखने के लिए प्लांट में एक कचरा भंडारण पिट बनाया गया है। कचरे को प्रोसेसिंग से पहले इस अस्थाई स्टोरेज पिट में रखा जाता है।
फ्लाई ऐश, ईंट बनाने में हो रहा है इस्तेमाल
रिपोर्ट में बताया गया कि फ्लाई ऐश लीचेट से नहीं बनाया जाता। वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में कचरा उच्च तापमान वाली भट्ठी या इनसिनरेटर में जलाया जाता है ताकि बिजली उत्पन्न की जा सके। जलने के दौरान फ्लाई ऐश और बॉटम ऐश बनते हैं, जिन्हें फ्लाई ऐश ईंट बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, इसके लिए बाजार में केवल कुछ ही खरीदार उपलब्ध हैं।
एमसीडी की रिपोर्ट बताती है कि गाजीपुर लैंडफिल में सक्रिय प्रयासों के चलते लैंडफिल घट रहा है। बायो-खनन, बायो-रिमेडिएशन और वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के माध्यम से कचरे की तेजी से सफाई हो रही है, जबकि सुरक्षा और पर्यावरणीय मानकों का पालन किया जा रहा है।