कमजोर देशों पर टूटा प्लास्टिक कचरे का पहाड़, अमीर देश दोषी

2022 से 2023 के बीच, प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप के व्यापार में 3.4% की कमी आई। हालांकि, ओईसीडी देशों से गैर-ओईसीडी देशों को भेजे जाने वाले कचरे में 15% (यानि 2.2 लाख टन) का इजाफा हुआ है
कचरे के बढ़ते पहाड़; फोटो: आईस्टॉक
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आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भले ही दुनिया में प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप (कबाड़) का व्यापार लगातार घट रहा है। बावजूद इसके,इसके, समृद्ध ओईसीडी देश अब भी बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरा कमजोर और मध्यम आय वाले गैर-ओईसीडी देशों को भेज रहे हैं।

अंतराष्ट्रीय स्तर पर 2022 से 2023 के बीच प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप के व्यापार में 3.4 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं दूसरी तरफ ओईसीडी देशों से गैर-ओईसीडी देशों को भेजे जाने वाले इस कचरे का निर्यात 15 फीसदी यानी 2.2 लाख टन बढ़ा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये देश इस कचरे को पर्यावरण अनुकूल तरीके से संभालने के लिए तैयार हैं या नहीं।

चिंता की बात यह है कि अक्सर इन देशों को भेजा जाने वाला कचरा घटिया क्वालिटी का होता है, जिसे रिसाइकिल करना बेहद मुश्किल होता है। विडम्बना यह है कि आर्थिक रूप से कमजोर इन देशों के पास कचरे को पर्यावरण अनुकूल तरीके से निपटाने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती, जिससे पर्यावरण के प्रदूषित होने का खतरा और बढ़ जाता है। कचरे के पहाड़ न केवल पर्यावरण बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी खतरा हैं।

ओईसीडी द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘मॉनिटरिंग ट्रेड इन प्लास्टिक वेस्ट एंड स्क्रैप 2025’ के मुताबिक 2021 में नए अंतरराष्ट्रीय कानून लागू होने के बाद से ओईसीडी देशों से प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप का निर्यात, खासकर गैर-ओईसीडी देशों को कम हो गया। लेकिन यह गिरावट 2023 में थम गई। 2022 से 2023 के बीच ओईसीडी देशों का निर्यात थोड़ा बढ़ा और आयात में गिरावट दर्ज की गई, जिससे निर्यात-आयात का अंतर और बढ़ गया।

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रिपोर्ट से पता चला है कि कुछ ओईसीडी देश अब भी अपना ज्यादातर प्लास्टिक कचरा और स्क्रैप गैर-ओईसीडी देशों को भेज रहे हैं। 2023 में दुनिया के 20 सबसे बड़े प्लास्टिक कचरा आयातकों में से पांच देश ओईसीडी के सदस्य नहीं थे। मलेशिया इसमें सबसे बड़ा आयातक रहा, जबकि वियतनाम और इंडोनेशिया में भी दो लाख टन से ज्यादा कचरा भेजा गया।

इन देशों को निर्यात होने वाला प्लास्टिक कचरा और स्क्रैप 2022 से 2023 के बीच और बढ़ा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो इस दौरान ओईसीडी देशों से गैर-ओईसीडी देशों को प्लास्टिक कचरे का निर्यात 15 फीसदी यानी 2.2 लाख टन बढ़ा है। वहीं दूसरी तरफ ओईसीडी देशों के बीच इस कचरे के आपसी व्यापार में 2 फीसदी यानी 1.2 लाख टन की गिरावट आई है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि ओईसीडी देशों के बीच होने वाले प्लास्टिक कचरे के व्यापार का मूल्य (प्रति टन) अब भी थोड़ा अधिक है, मुकाबले इसके जो कचरा वे गैर-ओईसीडी देशों को भेजते हैं।

यह संकेत देता है कि ओईसीडी देश जो प्लास्टिक कचरा गैर-ओईसीडी और कमजोर देशों को निर्यात कर रहे हैं, वह अपेक्षाकृत सस्ता और कम गुणवत्ता वाला होता है। इससे साफ है कि अमीर देश अब भी कमजोर देशों को घटिया प्लास्टिक कचरा भेज रहे हैं।

ओईसीडी देश अब भी विनाइल क्लोराइड पॉलिमर जैसे प्लास्टिक कचरे को गैर-ओईसीडी देशों को भेज रहे हैं। 2023 में, ओईसीडी देशों की कुल विनाइल क्लोराइड निर्यात का करीब 19.3 फीसदी (करीब 30,000 टन) गैर-ओईसीडी देशों को गया, जिसमें से दो-तिहाई सिर्फ जापान ने भेजा था।

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कचरे के बढ़ते पहाड़; फोटो: आईस्टॉक

वहीं दूसरी तरफ अंतराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो 2022 से 2023 के बीच प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप के व्यापार में 3.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि गिरावट का यह सिलसिला बीते एक दशक से जारी है और 2014 से 2023 के बीच इसमें कुल 50 फीसदी की कमी आई है।

रिपोर्ट से पता चला है कि अधिकांश प्लास्टिक कचरा और स्क्रैप ओईसीडी देशों के बीच ही खरीदा-बेचा जाता है। लेकिन कई ओईसीडी देश अब भी बड़ी मात्रा में इस कचरे को गैर-ओईसीडी देशों को निर्यात कर रहे हैं। गौरतलब है कि इस कड़ी में ओईसीडी की यह पांचवी रिपोर्ट है, जिसमें प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप के व्यापारिक प्रवाह का विस्तृत विश्लेषण और आंकड़ों के साथ विवरण दिया गया है।

चीन के फैसले से शुरू हुई गिरावट

इस गिरावट के कारणों पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में चीन द्वारा प्लास्टिक कचरे के आयात पर एकतरफा रोक लगाने के बाद वैश्विक व्यापार में अचानक से भारी गिरावट आई। इसके बाद से व्यापार में लगातार गिरावट की प्रवत्ति देखने को मिली है।

प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप के व्यापार को नियंत्रित करने के लिए देशों ने बेसल कन्वेंशन में संशोधन किए। बता दें कि यह कन्वेंशन खतरनाक कचरे के सीमापार के आवागमन और निपटान से जुड़ा एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है। बाद में इन बदलावों को आंशिक रूप से ओईसीडी काउंसिल के निर्णय में भी शामिल किया गया, जो पुनर्प्रक्रिया (रिकवरी) के लिए कचरे के सीमापार व्यापार को नियंत्रित करता है।

ओईसीडी देशों ने एक जनवरी 2021 से नए नियम लागू किए इनका मकसद ऐसा प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप को कम करना था जिसे संभालना मुश्किल होता है या जो पर्यावरण के लिए खतरनाक हो सकते हैं।

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इससे पहले जारी रिपोर्ट में भी 2022 तक व्यापार से जुड़े रुझानों पर प्रकाश डाला गया था। इसके मुताबिक प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप का वैश्विक व्यापार 2020 से 2022 के बीच आठ फीसदी घट गया। यह गिरावट उन नियमों के लागू होने से ठीक पहले की है। इतना ही नहीं इस दौरान ओईसीडी देशों के बीच निर्यात और आयात अब ज्यादा संतुलित हो गए हैं। गैर-ओईसीडी देशों को होने वाला जो निर्यात 2020 में 35 फीसदी था, वो 2022 में घटकर 27 फीसदी रह गया।

हालांकि दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को अभी भी भारी मात्रा में कचरा भेजा जा रहा है। नई रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि 2022 से 2023 के बीच यूरोपीय ओईसीडी देशों के आपसी क्षेत्रीय व्यापार में वृद्धि हुई है और अब यह प्लास्टिक कचरे के वैश्विक व्यापार का करीब आधा हिस्सा बन गया है।

रिपोर्ट में प्लास्टिक कचरे से जुड़े रुझानों की तुलना कागज से जुड़े कचरे से की गई है, जिस पर नए नियंत्रण लागू नहीं हुए हैं। इससे संकेत मिलता है कि नए नियमों के कारण प्लास्टिक कचरे और स्क्रैप के व्यापार में कमी आई है।

अच्छी खबर यह रही कि कुल 22 ओईसीडी देशों ने अपने प्लास्टिक कचरे के निर्यात में गिरावट दर्ज की है। इनमें जर्मनी, स्लोवेनिया, बेल्जियम और पोलैंड जैसे देश शामिल हैं। वहीं दूसरी तरफ इस कचरे का सबसे ज्यादा निर्यात करने वालों में जापान, नीदरलैंड, जर्मनी, स्पेन, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं।

रिपोर्ट से एक चीज तो पूरी तरह स्पष्ट है कि वैश्विक नियमों और सख्ती के बावजूद विकसित देश अब भी अपने प्लास्टिक कचरे का एक बड़ा हिस्सा कमजोर देशों को भेज रहे हैं, जिससे उन देशों में पर्यावरण से जुड़ा खतरा कम नहीं हो रहा है।

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