आईएनसी-5 बुसान: संयुक्त राष्ट्र की नई प्लास्टिक संधि में गरीब देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता दी जानी चाहिए

इस वार्ता का लक्ष्य समुद्री पर्यावरण सहित हानिकारक प्लास्टिक उत्पादन और प्रदूषण को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी तरीके पर सहमति बनाना है।
प्लास्टिक संबंधी अनुपालन को अधिक निष्पक्ष बनाने के लिए, विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता दी जानी चाहिए।
प्लास्टिक संबंधी अनुपालन को अधिक निष्पक्ष बनाने के लिए, विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता दी जानी चाहिए।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स
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दक्षिण कोरियाई शहर बुसान में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए वैश्विक प्लास्टिक संधि वार्ता का आज चौथा दिन है। वार्ता में संयुक्त राष्ट्र की नई प्लास्टिक संधि को अंतिम रूप दिया जाना है, जो प्लास्टिक प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता बनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है।

आज दुनिया भर में प्लास्टिक का कचरा हर जगह फैला है, मनुष्य के स्वास्थ्य और आजीविका के साथ-साथ पानी और जमीन पर पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है, फिर भी प्लास्टिक का उत्पादन अब तक के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर है।

इस हफ्ते होने वाली वार्ता का लक्ष्य समुद्री पर्यावरण सहित हानिकारक प्लास्टिक उत्पादन और प्रदूषण को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी तरीके पर सहमति बनाना है।

आज की प्लास्टिक संबंधी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से जीवाश्म के निकाले जाने पर निर्भर है और टेक- मेक-वेस्ट या ले-बनाएं -बर्बाद करें वाले मॉडल पर आधारित है जो लीनियर या रैखिक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाती है।

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प्राकृतिक संसाधनों और सस्ते श्रम का शोषण किया जाता है, जिससे उपभोक्तावाद को बढ़ावा मिलता है और लोगों के स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु और संसाधनों से समझौता होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि 10 फीसदी से भी कम प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग या पुनर्चक्रण किया जाता है

प्लास्टिक संकट को लेकर देशों के बीच और उनके भीतर भारी असमानता है, जिसमें प्लास्टिक का उत्पादन, प्रबंधन, एकत्र करना या एकत्र नहीं किया जाता है, तथा इससे निपटने के लिए बरती जाने वाली सतर्कता शामिल है। संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि में निष्पक्षता के आधार पर मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए।

प्लास्टिक को लकेर सार्वजनिक, राजनीतिक और कॉर्पोरेट क्षेत्रों का ध्यान मुख्य रूप से सामग्री पर आधारित है। अक्सर इस उद्योग में काम करने वाले लोगों की अनदेखी की जाती है। बेशक, ब्रांडेड पैकेजिंग प्लास्टिक कचरे की उत्पत्ति को स्पष्ट रूप से दिखाती है, जबकि लोगों का श्रम उन लोगों को अनदेखा लग सकता है जो इससे निकटता से जुड़े नहीं हैं। यह इस बात को सामने ला सकता है कि प्लास्टिक संकट लोगों पर कैसे असर डाल रहा है।

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प्लास्टिक का कचरा बीनने वाले अक्सर अनौपचारिक रूप से काम करते हैं और उन्हें सामाजिक सुरक्षा की कमी होती है। कोविड-19 के दौरान कई कचरा बीनने वालों को सरकारी सहायता और डंपसाइट से बाहर रखा गया था, जबकि जीवित रहने के लिए उन्हें इस काम की जरूरत थी।

उपयोग किए गए प्लास्टिक का काफी व्यापार होता है। प्लास्टिक का कचरा जिसे अमीर देशों से गरीब देशों में भेजा जाता है, जिसे कभी-कभी "अपशिष्ट उपनिवेशवाद" कहा जाता है।

प्लास्टिक के कचरे को अक्सर आवश्यक अपशिष्ट निपटान और रीसाइक्लिंग की बुनियादी ढांचे के बिना विभिन्न जगहों पर भेजा जाता है। इससे डंपिंग, जलाना, वायु प्रदूषण, मिट्टी का प्रदूषण और जलमार्गों का जाम होना होता है। जनवरी 2018 में चीन ने प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। फिर प्लास्टिक कचरे को मलेशिया और इंडोनेशिया सहित अन्य देशों में भेज दिया गया।

यदि प्लास्टिक का निर्यात जारी रखना है, तो इसे लेने वाले देशों की आबादी और पर्यावरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कुछ सामाजिक उद्यम प्लास्टिक रीसाइक्लिंग श्रमिकों की व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य संबंधी देखभाल और आय में सुधार करने के लिए काम कर रहे हैं।

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अधिकांश उत्पादन और उपभोग एक सर्कुलर मॉडल का अनुसरण करते हैं, जिसके तहत सामग्रियों को निकाला जाता है, उनका उपयोग किया जाता है और उनका निपटान किया जाता है। एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था यथासंभव लंबे समय तक उपयोग में आने वाली सामग्रियों को उनके ज्यादा से ज्यादा मूल्य पर रखकर निकालने और कचरे को कम करती है।

सर्कुलर विकल्पों में से, जैसे कि कमी, दोबारा उपयोग, प्रतिस्थापन और यहां तक कि इनकी रीसाइक्लिंग आमतौर पर सबसे कम संभव होती है। प्लास्टिक को अक्सर कम गुणवत्ता वाले उत्पादों में बदल दिया जाता है और रीसाइक्लिंग में ऊर्जा का अधिक उपयोग हो सकता है। प्लास्टिक रीसाइक्लिंग में विषाक्त केमिकलों और प्रदूषकों को भी छोड़ सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पष्ट जवाबदेही प्लास्टिक संधि को कमजोर कर सकती है। मौजूदा मसौदे में विवादों को सुलझाने और अनुपालन न करने पर दंडित करने के लिए स्पष्ट तंत्र का अभाव है। केवल स्वैच्छिक उपाय असरदार नहीं होते हैं और दंड और अभियोजन को मजबूत किया जाना चाहिए। प्रभावी प्रवर्तन के लिए एक मजबूत वैश्विक निगरानी प्रणाली की आवश्यकता होती है।

गलत जानकारी पर भी ध्यान देने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि उद्योग और सरकारों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति नियंत्रण में अधिक समय लगा सकती है, ध्यान भटका सकती है और खतरनाक पदार्थों के संपर्क में आने पर प्रभावी जवाबदेही से बच सकती है।

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रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च आय वाले देश आम तौर पर नियंत्रण लागू करने के लिए अधिक सक्षम होते हैं, जबकि कम आय वाले देश समान मानकों को लागू करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं। अनुपालन को अधिक निष्पक्ष बनाने के लिए, विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता दी जानी चाहिए।

मसौदा संधि में स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण का अधिकार शामिल है। यदि कोई प्लास्टिक विषाक्त रसायन छोड़ता है, तो उसे रीसाइक्लिंग से हटा दिया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 490 करोड़ टन, या अब तक उत्पादित सभी प्लास्टिक का 60 फीसदी, लैंडफिल में है या प्राकृतिक वातावरण को प्रदूषित करता है। प्लास्टिक कचरा असमान रूप से गरीब देशों में पाया जाता है।

सफाई ही एकमात्र उत्तर नहीं है, कुछ व्यवसाय दूसरों को अपना कचरा इकट्ठा करने के लिए अनुबंधित करके अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को ठीक कर रहे हैं। भविष्य में प्लास्टिक के कचरे को अलग तरीके से संभाला जाएगा। इसे हासिल करने के लिए प्रणालीगत बदलावों की जरूरत पड़ेगी।

प्लास्टिक के उत्पादन, निपटान में असमानताओं से निपटा जाना चाहिए। इसे हासिल करने के लिए, प्लास्टिक उद्योग को सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए फिर से विचार करने और दोबारा डिजाइन किया जाना चाहिए।

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