प्लास्टिक पर्यावरण को प्रदूषित कर समस्याएं उत्पन्न कर रहा है, इस बात के पर्याप्त सबूत हैं, लेकिन जलवायु और जैव विविधता पर प्लास्टिक का कितना प्रभाव पड़ रहा है, इस बात की सटीक जानकारी अभी दुनिया को नहीं है।
हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल रिसर्च (यूएफजेड) के शोधकर्ताओं की टीम ने जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और पर्यावरण प्रदूषण के धरती पर पड़ने वाले तीन संकटों को लेकर प्लास्टिक के प्रभावों का विश्लेषण किया है।
शोधकर्ता प्लास्टिक के सटीक नियमों की मांग कर रहे हैं जो इन तीन संकटों में प्लास्टिक के अनेक प्रभावों पर गौर करते हैं। 25 नवंबर से दक्षिण कोरिया के बुसान में आयोजित होने वाली संयुक्त राष्ट्र वैश्विक प्लास्टिक संधि पर वार्ता में ऐसे नियमों को पेश करने का अवसर है।
संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और पर्यावरण प्रदूषण के परस्पर जुड़े वैश्विक संकटों का वर्णन करने के लिए "ट्रिपल प्लेनेटरी क्राइसिस" शब्द की शुरुआत की है। शोध के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र इस शब्द का उपयोग पारिस्थितिकी तंत्र, समाज और अर्थव्यवस्थाओं पर इन संकटों की परस्पर निर्भरता और पारस्परिक प्रभाव को सामने लाने के लिए कर रहा है।
हालांकि पर्यावरण प्रदूषण में प्लास्टिक की भूमिका पर अच्छी तरह से शोध किए गए हैं, लेकिन जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन पर तुलनात्मक रूप से बहुत कम गौर किया गया है। शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, प्लास्टिक के संबंध में इन संकटों की परस्पर क्रियाओं की वैज्ञानिक समझ वर्तमान में स्पष्ट नहीं है।
इस शोध के लिए 19,000 से ज्यादा वैज्ञानिक अध्ययनों का मूल्यांकन किया गया है। इन अध्ययनों में से 17,463 पर्यावरण प्रदूषण पर प्लास्टिक और इससे संबंधित केमिकल के बुरे प्रभावों को सामने रखा गया है। केवल 1,279 जलवायु परिवर्तन पर प्लास्टिक के प्रभावों की बात करते हैं और केवल 652 ने जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभावों पर गौर किया है।
शोध के अनुसार, 1950 के दशक से लेकर अब तक दुनिया भर में लगभग 920 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जा चुका है। इसमें से 290 करोड़ टन वर्तमान में उपयोग में है, जिसमें 270 करोड़ टन प्राथमिक प्लास्टिक और लगभग 20 करोड़ टन पुनर्चक्रित सामग्री शामिल है। 530 करोड़ टन लैंडफिल में छोड़ दिया गया है और 100 करोड़ टन जला दिया गया है।
इस बात की भी जानकारी है कि 175 से 250 करोड़ टन के बीच को सहीं से प्रबंधित नहीं किया जाता है, जिसका अर्थ है कि वे अनियोजित तरीके से पर्यावरण में फैला हो सकता है। प्लास्टिक से जुड़े केमिकलों से लोगों और पर्यावरणीय जीवों को होने वाले खतरे और महासागरों, मिट्टी और मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्लास्टिक के प्रभाव पर भी अच्छी तरह से शोध किए गए हैं।
शोध के मुताबिक, आज तक प्लास्टिक उत्पादों में लगभग 64 करोड़ टन एडिटिव केमिकल मिलाए जा चुके हैं। लेकिन इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि वे कैसे निकलते हैं और लोगों और पर्यावरण पर उनके क्या प्रभाव पड़ते हैं।
शोधकर्ता ने शोध में बताया कि प्लास्टिक में लगभग 16,000 केमिकल होते हैं। इनमें से, यह ज्ञात है कि 4,200 से अधिक केमिकल पर्यावरण में स्थायी हैं, जीवित जीवों में जमा होते हैं, लंबी दूरी तक ले जाए जाते हैं या खतरा पैदा करते हैं।
वर्तमान नियमों में इनमें से बहुत कम केमिकलों को शामिल किया गया हैं। इनमें से कई पदार्थों को कम समस्याग्रस्त पदार्थों से बदला जा सकता है जो समान कार्य करते हैं।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, प्रभावी प्लास्टिक संधि के लिए वैज्ञानिकों के गठबंधन के रूप में जाने जाने वाले नेटवर्क के हिस्से के रूप में, वैश्विक संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि पर वार्ता में इन जैसी सिफारिशों का योगदान करने का इरादा रखते हैं, जो 25 नवंबर से एक दिसंबर तक दक्षिण कोरिया के बुसान में आयोजित की जाएगी।
अंतिम बैठक में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय नए प्लास्टिक के उत्पादन को कम करने और खतरनाक प्लास्टिक रसायनों को कम करने के उद्देश्यों के साथ एक वैश्विक समझौते को अपनाने की योजना बना रहे हैं।
प्लास्टिक के व्यापक प्रभावों के कारण, भविष्य के समझौतों को जलवायु और जैव विविधता की रक्षा करने वाले कानूनों के साथ सामंजस्य स्थापित करना भी महत्वपूर्ण है। इसके लिए प्लास्टिक और संबंधित रसायनों के लिए नियम बनाना जरूरी है। यह शोध एनवायरनमेंट इंटरनेशनल पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।