भारत में 17,800 अस्पताल व नर्सिंग होम अभी भी जमीन में दबा रहे कचरा: रिपोर्ट

सीपीसीबी ने माना है कि अगर अस्पतालों से निकले इस कचरे का सही तरीके से निपटान न किया गया तो इससे पर्यावरण प्रदूषित हो सकता है
फोटो: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)
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भारत में अब भी 17,800 स्वास्थ्य संस्थान यानी अस्पताल, नर्सिंग होम आदि अपने बायोमेडिकल कचरे को निपटान के लिए मिट्टी में दबा रहे हैं। यह जानकारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट के मुताबिक 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में केवल कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोजल फैसिलिटी (सीबीडब्ल्यूटीएफ) के जरिए बायोमेडिकल कचरे का निपटान किया जा रहा है। इन राज्यों में कैप्टिव ट्रीटमेंट और मिट्टी में कचरे को गहराई में दबाने जैसे तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा।

इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में आंध्र प्रदेश, चंडीगढ़, दादरा नगर हवेली, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, पुदुचेरी, तमिलनाडु, तेलंगाना, और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। इनमें हर दिन 280 टन बायोमेडिकल कचरा पैदा हो रहा है, जबकि उसके निपटान की क्षमता 656 टन प्रति दिन है।

15 अप्रैल 2025 को सबमिट की गई इस रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि बाकी के 24 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश सीबीडब्ल्यूटीएफ के साथ-साथ कैप्टिव ट्रीटमेंट फैसिलिटी और कचरे को मिट्टी में दबाने जैसे निपटान के दोनों ही तरीकों का उपयोग कर रहे हैं।

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हालांकि इन राज्यों में बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोजल फैसिलिटी (सीबीडब्ल्यूटीएफ) की उपलब्ध क्षमता पैदा हो रहे कचरे से दोगुनी है। इन 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हर दिन 439 टन बायो-मेडिकल वेस्ट पैदा हो रहा है, जबकि सीबीडब्ल्यूटीएफ की उपलब्ध क्षमता 936 टन प्रति दिन है।

इनमें से कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश ऐसे भी हैं जहां कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोजल फैसिलिटी की क्षमता पैदा हो रहे कचरे से अधिक है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि 82 स्वास्थ्य संस्थानों में कैप्टिव इंसीनरेटर यानी अपना कचरा जलाने की सुविधा मौजूद हैं, जबकि 17,800 स्वास्थ्य संस्थान बायोमेडिकल कचरे के निपटान के लिए उसे मिट्टी में गहरा गड्ढे में डाल रहे हैं। इसके तहत कचरे को मिट्टी में गहराई में दबाकर उसके ऊपर से मिट्टी या चूने की परत डाल दी जाती है।

क्या कहता है नियम

बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के अनुसार, जहां कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोजल फैसिलिटी की सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहां कुछ श्रेणियों के बायोमेडिकल कचरे—जैसे मानव या पशु अंगों और गंदे कचरे का मिट्टी में गहराई में निपटान किया जा सकता है।

इसके अलावा, डीप बुरियल की केवल ग्रामीण या दूरदराज के क्षेत्रों में ही अनुमति दी जाती है, जहां सीबीडब्ल्यूटीएफ की सुविधा उपलब्ध नहीं है, और इसे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या प्रदूषण नियंत्रण समिति से अनुमति लेकर ही किया जाता है।

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रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि इन 17,800 हेल्थ केयर फैसिलिटीज में से 15,614 दूरदराज के इलाकों में हैं और ये बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के मानकों के अनुसार काम कर रही हैं।

केरल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने रिपोर्ट में जानकारी दी है कि वह 29 हेल्थ केयर सेंटरों में कैप्टिव ट्रीटमेंट सुविधाएं, जिनमें डीप बुरियल भी शामिल है, को बंद करने की प्रक्रिया में है। लेकिन कुछ संस्थानों के कोर्ट में जाने के कारण यह प्रक्रिया अटकी हुई है।

सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि बायोमेडिकल कचरे के निपटान के लिए मिट्टी में दबाने की इजाजत केवल ग्रामीण या दूर-दराज के इलाकों में ही दी जानी चाहिए। वहां भी बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के मानकों के अनुसार ऐसा किया जाना चाहिए।

साथ ही राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और समितियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन नियमों का सही तरीके से पालन हो। इसके लिए लिए लगातार निगरानी की जानी चाहिए।

रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण समितियां दूर-दराज के इलाकों में जहां डीप बुरियल का उपयोग हो रहा है, वहां जल्द से जल्द कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी की स्थापना करें ताकि जैव चिकित्सा कचरे का बेहतर तरीके से निपटान हो सके।

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रिपोर्ट के अनुसार सीपीसीबी को अब तक कचरे को मिट्टी में दबाने से जुड़ी कोई शिकायत या नुकसान की जानकारी नहीं मिली है। हालांकि, सीपीसीबी ने माना है कि अगर इसे सही तरीके से न किया गया तो इससे पर्यावरण प्रदूषण हो सकता है। इसलिए रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि डीप बुरियल की अनुमति केवल ग्रामीण या दूर-दराज के इलाकों में ही दी जाए और वह भी बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट नियम के तहत किया जाना चाहिए।

पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन करते गए पुंछ में आठ स्टोन क्रशर: जम्मू और कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति

जम्मू और कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि पुंछ में 12 स्टोन क्रशर और हॉट वेट मिक्स प्लांट्स में से चार निरीक्षण के दौरान बंद पाए गए। वहीं इनमें से आठ प्लांट जो चालू थे, वे वायु गुणवत्ता और ध्वनि प्रदूषण से जुड़े सभी मानकों का पालन कर रहे थे।

जांच में यह भी सामने आया है कि इन यूनिट्स में जरूरी प्रदूषण नियंत्रण उपकरण और उपाय भी लगाए गए हैं। यह रिपोर्ट 22 अप्रैल 2025 को अदालत में सबमिट की गई है।

संयुक्त समिति की इस रिपोर्ट के मुताबिक, इन यूनिट्स में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल जैसे पत्थर और बजरी मुख्य रूप से चालू खनन ब्लॉकों से खरीदी गए नदी तल सामग्री (आरबीएम) से आता है। हालांकि जीआरईएफ नामक इकाई अपने आसपास के क्षेत्रों में चल रहे सिविल कार्यों के दौरान निकाले गए पत्थरों का उपयोग करती है।

गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने प्रदूषण नियंत्रण समिति को स्टोन क्रशर और हॉट मिक्स प्लांट्स के आसपास धूल और शोर प्रदूषण के प्रभावों की जांच के निर्देश दिए थे।

साथ ही, इस बात की भी जांच की जानी थी कि बीते एक साल में इन यूनिट्स ने कौन सा कच्चा माल उपयोग किया, उनका स्रोत क्या था और समिति द्वारा पहले किए गए निरीक्षण के बाद लगाए गए प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की वर्तमान स्थिति क्या है।

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