
खोखरी नदी के पुनर्जीवन और संरक्षण के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार कर ली गई है। इस योजना में स्पष्ट तथ्यात्मक और तकनीकी विवरणों को भी शामिल किया गया है। यह जानकारी शामली के जिला अधिकारी द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सबमिट रिपोर्ट में दी गई है। मामला उत्तर प्रदेश के शामली का है।
यह मामला एनजीटी में तब पहुंचा जब खोखरी नदी में प्रदूषण और अतिक्रमण को लेकर एक याचिका दायर की गई। गौरतलब है कि खोखरी, यमुना की एक मौसमी सहायक नदी है।
यह नदी चौसाना जदीद गांव से निकलती है, जो ऊन विकास खंड के अंतर्गत आता है और यह गुरजरपुर, जीजौला, कला माजरा, कमालपुर और सकोती जैसे गांवों से होते हुए कबीरपुर के पास मजरा ख्वाजापुर में यमुना में मिल जाती है।
इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय के द्वारा एक संयुक्त समिति गठित की गई। इस समिति में शामली के उपजिलाधिकारी, विकास खंड अधिकारी (बीडीओ) ऊन शामिल थे। समिति को नदी के चिन्हांकन, अतिक्रमण हटाने और खुदाई का विस्तृत एक्शन प्लान तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई।
इस काम की शुरुआत के लिए ऊन ब्लॉक के विकास खंड अधिकारी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत 50 जॉब कार्ड जारी किए थे। इस प्रस्तावित काम का अनुमानित खर्च ₹288.06 लाख लगाया गया। लेकिन योजना के तहत काम पूरा होने में करीब 8 साल लगते और उपलब्ध मजदूरों की संख्या भी कम थी, इसलिए यह तय किया गया कि मनरेगा के माध्यम से यह परियोजना करना व्यावहारिक नहीं होगा।
इसलिए खुदाई के लिए मशीनों से काम करने का वैकल्पिक प्रस्ताव तैयार किया गया। इसके लिए विकास खंड अधिकारी ने ₹564.455 लाख के खर्च का अनुमान लगाया।
जिला पंचायत राज अधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार, 16 ग्राम पंचायतों की नालियों के जरिए घरों से निकला गंदा पानी सीधे खोखरी में गिर रहा है। इसे रोकने के लिए 16 फिल्टर चैंबर और दो वेस्ट स्टेबलाइजेशन पॉन्ड बनाने का ₹15.874 लाख का प्रस्ताव तैयार किया गया है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ स्थाई निर्माणों को छोड़कर खोखरी नदी कॉरिडोर का अधिकांश हिस्सा अतिक्रमण मुक्त है और खुदाई कार्य के साथ ही मौजूद किसी भी अतिक्रमण को हटा दिया जाएगा।
रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी दी गई है कि चौसाना और सकोती गांव के 34 लोगों को नदी किनारे अतिक्रमण करने के लिए तत्काल नोटिस जारी किए गए हैं।
पर्यावरण के सुधार के लिए वन विभाग ने खोखरी नदी के किनारे वृक्षारोपण की सिफारिश की है, ताकि पर्यावरण के संतुलन बहाल किया जा सके। इसके लिए ₹112.498 लाख का बजट प्रस्तावित किया गया है। यह प्रस्ताव 'स्टेट मिशन फॉर क्लीन गंगा', लखनऊ को भेजा गया है। पौधारोपण अभियान जुलाई में शुरू होगा और इसके तहत करीब 15,000 पेड़ लगाए जाएंगे।
यह रिपोर्ट दो जुलाई 2025 को एनजीटी की वेबसाइट पर सार्वजनिक की गई है।
बार-बार हुई चूक
गौरतलब है कि इससे पहले अप्रैल 2025 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश में खोखरी नदी पर अदालती आदेशों की बार-बार अनदेखी करने के लिए शामली के जिला मजिस्ट्रेट की आलोचना की थी। अपने आदेश में अदालत ने कहा था कि, "हमें लगता है कि शामली के जिला मजिस्ट्रेट, अदालत के आदेश की बार-बार अनदेखी कर रहे हैं, और उचित रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विफल रहे हैं।
इसकी वजह से मामले में देरी हो रही है और ट्रिब्यूनल का समय बेवजह बर्बाद हो रहा है।"
ऐसे में एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की बेंच ने जिला मजिस्ट्रेट पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया था। बता दें कि अदालत खोखरी के संरक्षण और पुनरुद्धार के मुद्दे की समीक्षा कर रही थी। इस मामले में अतिक्रमण और प्रदूषण के आरोप भी शामिल हैं।
एक मार्च, 2024 को इस बारे में प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए गए थे। वहीं 10 मई 2024 को एनजीटी ने शामली और सहारनपुर के जिलाधिकारियों को खोखरी नदी को बहाल करने के लिए समयबद्ध कार्ययोजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। हालांकि, जब 27 अगस्त 2024 को मामले की फिर से सुनवाई हुई तो उन्होंने अपना जवाब दाखिल नहीं किया था।
6 दिसंबर, 2024 को एनजीटी ने पाया कि शामली के जिला मजिस्ट्रेट न तो वर्चुअली पेश हुए और न ही उचित रिपोर्ट प्रस्तुत की। शामली के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दायर बिना हस्ताक्षर वाली रिपोर्ट में जरूरी विवरण भी नहीं थे। इसके बाद ट्रिब्यूनल ने शामली और सहारनपुर के जिला मजिस्ट्रेटों को अपने हलफनामों के जरिए सभी जरूरी जानकारी के साथ अतिरिक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।