नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने खोखरी नदी प्रदूषण मामले में शामली और सहारनपुर के जिलाधिकारियों द्वारा रिपोर्ट सबमिट करने में की जा रही देरी पर निराशा व्यक्त की है। ऐसे में 27 अगस्त, 2024 को दिए अपने आदेश में अदालत ने दोनों अधिकारियों को अगली सुनवाई पर प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई छह दिसंबर 2024 को होनी है।
वहीं राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने निर्देश प्राप्त करने और हलफनामे के माध्यम से अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगा है।
गौरतलब है कि अपने आवेदन में अमित कुमार ने खोखरी नदी प्रदूषण को लेकर चिंता जताई थी। उनके मुताबिक उत्तर प्रदेश के शामली और सहारनपुर जिलों में स्थिति ज्यादा खराब है। बता दें कि खोखरी, यमुना की ही एक सहायक नदी है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने भी 29 अप्रैल, 2024 को सबमिट अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि नदी "दयनीय स्थिति" में है और इसे बहाल करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।
दस मई, 2024 को एनजीटी ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सबमिट रिपोर्ट की समीक्षा की और पाया कि संलग्न तस्वीरों में लखनोहती के पास नदी में जलभराव, आसपास के ग्रामीण इलाके से दूषित पानी छोड़े जाने के साथ ठोस कचरे की डंपिंग दिखाई दे रही है।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सहारनपुर के साकेरपुर में नदी के पास कृषि भूमि पर अतिक्रमण हुआ है। इसी तरह चौसाना और शामली में नदी के किनारे आवासीय मकानों द्वारा अतिक्रमण किया गया।
शामली में केमलपुर के पास सूखी नदी के खंडों पर भी अतिक्रमण की बात सामने आई है। शामली में केरटू के पास वनस्पतियों के साथ सूखी नदी का तल साफ तौर पर दिखाई दे रहा है।
अदालत का कहना है कि, "रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि डेढ़ दशक पहले नदी बारहमास बहती थी। इसका पानी ग्रामीणों और कृषि से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करता था। लेकिन अब प्रवाह थम चुका है।
इस बारे में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 21 अगस्त 2024 को शामली, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर के लिए सिंचाई विभाग द्वारा तैयार की गई बहाली की योजना भी प्रस्तुत की है। हालांकि रिकॉर्ड में इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इस योजना को मंजूरी दी गई है या इसके क्रियान्वयन के लिए आवश्यक धनराशि आवंटित की गई है।
अदालत ने कहा है कि हालांकि रिपोर्ट से पता चलता है कि योजना शामली और सहारनपुर के जिलाधिकारियों को भेजी गई थी, लेकिन योजना पर उनकी कार्रवाई का कोई रिकॉर्ड नहीं है।