
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को आश्वासन दिया है कि यदि प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान कथित खुले में शौच करने के सबूत मिलते हैं तो उसके विषय में कार्रवाई की जाएगी। इस मामले में 24 फरवरी, 2025 को सुनवाई हुई थी।
ऐसे में एनजीटी ने आवेदक निपुण भूषण से उन सभी सबूतों को यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव के समक्ष पेश करने को कहा है, जो उनके आरोपों का समर्थन करते हों। इन सबूतों के मिलने पर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी आरोपों की पुष्टि के लिए मौके का निरीक्षण करेंगे और सच क्या है इसका पता लगाएंगे।
अगर यह आरोप सही पाए गए तो तुरंत कार्रवाई की जाएगी और चार सप्ताह के भीतर ट्रिब्यूनल के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
आवेदक का आरोप है कि महाकुम्भ के दौरान साफ-सुथरे जैव-शौचालयों की कमी के कारण खुले में शौच की समस्या उत्पन्न हुई। कई शौचालय चालू हालात में नहीं थे।
हालांकि सबूत के तौर पर आवेदक ने पेनड्राइव में दो वीडियो फुटेज पेश किए हैं, इनके अलावा कोई अन्य सबूत पेश नहीं किया गया है। अदालत ने पाया कि वीडियो फुटेज में कोई भौगोलिक निर्देशांक नहीं थे। वहीं उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा कि उन्हें वीडियो रिकॉर्डिंग वाली पेन ड्राइव नहीं मिली है।
सुनवाई के दौरान आवेदक ने टाइम्स ऑफ इंडिया और डाउन टू अर्थ में छपी दो रिपोर्टों का भी हवाला दिया है। हालांकि उन्हें साक्ष्य के तौर पर रिकॉर्ड में नहीं रखा गया है।
पीठ ने मुद्दे को बताया संवेदनशील
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि आवेदन में ऐसा मुद्दा उठाया गया है जो समय के लिहाज से संवेदनशील है। ऐसे में किसी सक्षम अधिकारी को इन दावों की पुष्टि के लिए जमीनी स्तर पर पड़ताल करनी चाहिए, ताकि सही स्थिति सामने आ सके।
बता दें कि इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने 21 फरवरी, 2025 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी और एक वैज्ञानिक के हवाले से कहा कि गंगा की शुद्धता आज भी बरकरार है।
इस प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक पद्मश्री डॉक्टर अजय कुमार सोनकर ने पांच प्रमुख स्नान घाटों, जिनमें संगम नोज और अरैल (महा कुंभ नगर) शामिल हैं, से गंगा जल के नमूने एकत्र किए थे।
"इन नमूनों को उनकी प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोपिक जांच के लिए भेजा गया। आश्चर्यजनक रूप से, करोड़ों श्रद्धालुओं के गंगा स्नान करने के बावजूद, जल में किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं देखी गई, न ही इसके पीएच स्तर में कोई गिरावट आई।"
सीपीसीबी ने भी माना कि मानकों के अनुरूप नहीं जल गुणवत्ता
हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार के इस दावे के विपरीत तीन फवररी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि महाकुंभ में विशेष स्नान वाली तारीखों के दिन भी संगम समेत अन्य छह स्थानों पर पानी में न सिर्फ उच्च जैव रासायनिक मांग (बीओडी) पाई गया बल्कि फीकल कोलिफॉर्म भी अपने सामान्य मानकों से कई गुना अधिक पाया गया।
बता दें कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद 16 फरवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की प्रधान पीठ ने अपनी सख्त टिप्पणी में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को फटकारते हुए कहा था कि “आपने 50 करोड़ लोगों को सीवेज के दूषित पानी से नहला दिया। वह पानी जो नहाने लायक भी नहीं था, उससे लोगों को आचमन तक करना पड़ा।”
डाउन टू अर्थ ने पाया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने तीन फरवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि 12-13 जनवरी, 2025 को निगरानी के दौरान अधिकांश स्थलों पर नदी जल की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं थी।
इन आंकड़ों के मुताबिक गंगा घाट समेत प्रमुख संगम घाट तक में प्रमुख स्नान दिवस के दिन घाट प्रदूषित रहे।
सीपीसीबी रिपोर्ट के मुताबिक प्रयागराज के अधिकांश स्थानों पर 12-13 जनवरी, 2025 को व 19 जनवरी को लॉर्ड कर्जन ब्रिज पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) अपने सामान्य मानक 3 मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर से अधिक था।
डाउन टू अर्थ ने हाल ही में अपने आकलन में पाया था कि एसटीपी की मौजूदा क्षमताओं और व्यवस्थाओं के बावजूद करीब 53 एमएलडी सीवेज बिना उपचार के सीधा गंगा में गिरेगा। वहीं, 16 फरवरी, 2025 को एनजीटी में सीपीसीबी के वकील ने अदालत को बताया कि सभी एसटीपी अपनी क्षमताओं से कई गुना अधिक सीवेज हासिल कर रहे हैं और यह स्वाभाविक है कि वह प्रभावी उपचार नहीं कर रहे, यानी सीवेज सीधा गंगा में जा रहा है।