महाकुंभ : एनजीटी ने अपनी सख्त टिप्पणी में कहा 50 करोड़ लोगों को सीवेज से दूषित जल में नहाना पड़ा

प्रमुख स्नान स्थल संगम तक में सीवेज की अधिकता पाई गई
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से शुरु हुए महाकुंभ में  अब तक 50 करोड़ से अधिक लोग पहुंचे
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से शुरु हुए महाकुंभ में अब तक 50 करोड़ से अधिक लोग पहुंचे
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उत्तर प्रदेश के महाकुंभ में एक तरफ जहां लोगों का गंगा-यमुना और त्रिवेणी में डुबकी लगाने की होड़ सी मची है। वहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद 17 फरवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की प्रधान पीठ ने अपनी सख्त टिप्पणी में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को फटकारते हुए कहा “आपने 50 करोड़ लोगों को सीवेज के दूषित पानी से नहला दिया। वह पानी जो नहाने लायक भी फिट नहीं था, उससे लोगों को आचमन तक करना पड़ा।”

जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीसीपीबी) की तरफ से ठोस रिपोर्ट न दाखिल किए जाने को लेकर कहा कि लगता है “आप किसी दबाव में हैं।”

पीठ ने फटकारते हुए कहा कि मेला शुरु होने से पहले ही नदी में इस तरह के प्रदूषण के खिलाफ आपने कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया। आंखों से दिखाई पड़ रहा है कि सीवर सीधा नदियों में जा रहा है।

3 फरवरी,2025 को सीपीसीबी की ओर से दाखिल रिपोर्ट को लेकर एनजीटी ने कहा "दो हफ्ते बीत गए और यूपीपीसीबी की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यह बहुत ही गंभीर है।"

डाउन टू अर्थ ने पाया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 3 फरवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि 12-13 जनवरी, 2025 को निगरानी के दौरान अधिकांश स्थलों पर नदी जल की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं थी।   

सीपीसीबी रिपोर्ट के मुताबिक सात स्थानों पर विभिन्न तारीखों पर लिए गए जल नमूनों की गुणवत्ता खराब पाई गई। इनमें 12 जनवरी से 4 फरवरी, 2025 तक उपलब्ध गंगा के शृंगवेरपुर घाट, लॉर्ड कर्जन पुल, शास्त्री पुल से पहले, नागवासुकी मंदिर पंटून पुल नंबर 15 के पास, संगम, डीहा घाट और यमुना के पुराना नैनी पुल व संगम में गंगा नदी से मिलने से पहले के नदी जल की गुणवत्ता को के आंकड़े शामिल हैं।

इन आंकड़ों के मुताबिक गंगा घाट समेत प्रमुख संगम घाट तक में प्रमुख स्नान दिवस के दिन घाट प्रदूषित रहे।

सीपीसीबी रिपोर्ट के मुताबिक प्रयागराज के अधिकांश स्थानों पर 12-13 जनवरी, 2025 को व 19 जनवरी को लॉर्ड कर्जन ब्रिज पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) अपने सामान्य मानक 3 मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर से अधिक था। 

बीओडी का पानी में अधिक होना यह बताता है कि पानी में प्रदूषण बहुत ज्यादा है और सूक्ष्मजीवों को मौजूदा जैविक गंदगी को डिकंपोज करने के लिए ज्यादा ऑक्सीजन का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। 

रिपोर्ट के मुताबिक 13 जनवरी, 2025 के बाद जब गंगा नदी में मीठे पानी का डिस्चार्ज बढ़ाया गया तो उच्च बीओडी में कमी आई। हालांकि, रिपोर्ट एक बहुत ही गंभीर विषय की तरफ ध्यान ले जाती है। वह है पानी में अत्यधिक फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा का होना। यह कुल कोलीफॉर्म का एक उपसमूह है, जो विशेष रूप से मल से संबंधित बैक्टीरिया को दर्शाता है। ये मुख्य रूप से मानव और पशुओं के मल से आते हैं। इनकी उपस्थिति दर्शाती है कि पानी मल से दूषित है, जिससे जलजनित रोग (टाइफाइड, डायरिया, हैजा आदि) फैल सकते हैं और ये मुख्य रूप से गर्म रक्त वाले जीवों की आंतों में पाए जाते हैं।

सीपीसीबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि कई मौकों पर सभी निगरानी स्थलों पर नदी जल की गुणवत्ता स्नान हेतु प्राथमिक जल गुणवत्ता के मानकों के अनुरूप नहीं थी।

रिपोर्ट में कहा गया  “प्रयागराज में महाकुंभ मेला के दौरान बड़ी संख्या में लोग नदी में स्नान करते हैं ।खासतौर से शुभ स्नान दिनों में, जिससे नदी जल में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा बढ़ जाती है।”

डाउन टू अर्थ ने हाल ही में अपने आकलन में पाया था कि एसटीपी की मौजूदा क्षमताओं और व्यवस्थाओं के बावजूद करीब 53 एमएलडी सीवेज बिना उपचार के सीधा गंगा में गिरेगा। वहीं, 17 फरवरी, 2025 को एनजीटी में सीपीसीबी के वकील ने अदालत को बताया कि सभी एसटीपी अपनी क्षमताओं से कई गुना अधिक सीवेज हासिल कर रहे हैं और यह स्वाभाविक है कि वह प्रभावी उपचार नहीं कर रहे। यानी सीवेज सीधा गंगा में जा रहा है।

डाउन टू अर्थ ने महाकुंभ में अपनी यात्रा के दौरान पाया कि गंगा के कई स्थानों पर नालों का पानी सीधा गंगा में जा रहा है, जिन नालों को टैप किया गया है और उनका उपचार किया जा रहा है वह आंशिक तौर पर या प्रभावी तौर पर नहीं हो रहा।

गंगा में पानी की उपलब्धता को लेकर भी जब गांव में दौरा किया गया तो एसटीपी के आउटलेट से निकलने वाला उपचारित पानी ही गंगा की धारा में मिलता है और आम लोगों की सिंचाई और आस्था का कार्य वहां पूरा होता है। डाउन टू अर्थ ने नीवां गांव के पास कोडरा एसटीपी के आउटलेट में इसकी जांच की।

इसके अलावा प्रयागराज में सभी 10 एसटीपी में 1 पोंगघाट एसटीपी ऐसा है जो राहत वाली उपचार सीमा के मानक को भी पूरा नहीं कर पा रहा है। यह संगम से पहले गंगा नदी से जुड़ा है। वहीं, प्रयागराज में एसटीपी जिन उपचार मानकों को सामान्य मान रह हैं, एनजीटी ने उनपर भी सवाल उठाया।

एनजीटी की पीठ ने कहा कि एसटीपी के संबंध में उपचार के लिए 2019 में तय किए कड़े मानकों को क्यों नहीं लागू किया गया? हालांकि, इसका जवाब यूपीपीसीबी की ओर से नहीं दिया गया।

सुनवाई के दौरान सीपीसीबी के अधिवक्ता ने कहा कि सभी 10 एसटीपी क्षमताओं से अधिक सीवेज हासिल कर रहे हैं और स्वभाविक तौर पर इन एसटीपी के जरिए प्रभावी उपचार नहीं किया जा रहा है। बगैर उपचारित सीवेज सीधा गंगा में जा रहा है।

बहरहाल एनजीटी ने मामले की सुनवाई को टालते हुए यूपीपीसीबी से इस मामले में रिपोर्ट तलब की है।

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