स्वच्छ गंगा मिशन: बिहार में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स पर तेजी लाने के आदेश

मामला बिहार में गंगा की जल गुणवत्ता से जुड़ा है
गंगा में मिलता प्रदूषण, प्रतीकात्मक तस्वीर; फोटो: विकास चौधरी
गंगा में मिलता प्रदूषण, प्रतीकात्मक तस्वीर; फोटो: विकास चौधरी
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राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने बिहार को निर्देश दिया है कि वह गंगा के उन जिलों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) परियोजनाओं को प्राथमिकता दे, जहां ट्रीटमेंट में गैप मौजूद है।

बिहार से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), रेलवे और वन विभागों के साथ मिलकर लंबित स्वीकृतियों में तेजी लाने और 10 निर्माणाधीन एसटीपी के बुनियादी ढांचें का निर्माण सुनिश्चित करने के लिए भी कहा गया है।

इन बातों का जिक्र राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा सबमिट रिपोर्ट में किया गया है। यह रिपोर्ट 17 मार्च, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सबमिट की गई है।

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बिहार को छह नए स्वीकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर तेजी से काम शुरू करने के भी निर्देश दिए हैं। राज्य को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का संचालन और रखरखाव उचित तरीके से किया जा रहा है। साथ ही नियमों के पालन संबंधी किसी भी समस्या को दूर करने के लिए राज्य से कहा गया है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 28 दिसंबर, 2024 को एनएमसीजी द्वारा निरीक्षण किया गया था। इस निरीक्षण में पाया गया है कि पटना के सैदपुर में 60 एमएलडी क्षमता वाला ट्रीटमेंट प्लांट डिस्चार्ज सम्बन्धी मानदंडों पर खरा नहीं था। उसका क्लोरीनेशन सिस्टम भी काम नहीं कर रहा था।

गंगा प्रदूषण से जुड़ा है मामला

11 सितंबर, 2024 को एनएमसीजी में एक बैठक आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता एनएमसीजी के महानिदेशक ने की और इसमें आगे की प्रगति की समीक्षा के लिए बिहार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

बैठक में बिहार सरकार को नदी जल की गुणवत्ता में आती गिरावट के संबंध में मुद्दे की गंभीरता से अवगत कराया गया। साथ ही सरकार से बैठक में उठाए गए मुद्दों पर आगे की कार्रवाई करने का आग्रह किया गया।

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इस बैठक में लिए गए निर्णयों के संबंध में बिहार सरकार ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। इसके मुताबिक सरकार चालू और नई एसटीपी परियोजनाओं को प्राथमिकता देकर तेजी से पूरा करने का प्रयास कर रही है।

यह भी जानकारी दी गई है कि जो आठ एसटीपी मानकों पर खरे नहीं हैं, बिहार शहरी आधारभूत संरचना विकास निगम (बीयूआईडीसीओ) को उनके लिए जिम्मेवार एजेंसियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने को कहा गया है। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया गया है कि यह प्लांट निर्धारित मानकों के अनुसार कार्य करें।

यह भी कहा गया है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, बिहार में चल रहे सभी संयंत्रों और उनके द्वारा साफ अपशिष्ट पर नजर रख रहा है। इसके अलावा जो संयंत्र नियमों का पालन नहीं कर रहे, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उनके खिलाफ भी कार्रवाई कर रहा है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के 29 जनवरी, 2025 के पत्र के आधार पर करीब 1.10 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय मुआवजा (ईसी) लगाया गया है।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने रिपोर्ट में जानकारी दी है कि एक जनवरी 2025 को गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) से भागलपुर (बिहार) तक गंगा में फेकल कोलीफॉर्म का अध्ययन और मानचित्रण करने का काम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) को सौंपा गया है।

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गौरतलब है कि बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 17 मार्च, 2025 को एक रिपोर्ट अदालत के सामने रखी थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गंगा में टोटल और फेकल कोलीफॉर्म का स्तर निर्धारित मानकों से अधिक है, क्योंकि संबंधित शहरी क्षेत्रों में पैदा हो रहे घरेलू सीवेज को बिना साफ किए नदी में छोड़ा जा रहा है।

डाउन टू अर्थ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक स्थिति यह है कि 68 फीसदी से ज्यादा मलजल सीधा गंगा में गिर रहा है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में हर दिन 1,100 मिलियन लीटर सीवेज पैदा हो रहा है, लेकिन अभी महज 343 मिलियन लीटर सीवेज के उपचार की ही क्षमता मौजूद है। ऐसे में करीब 750 मिलियन लीटर सीवेज बिना साफ किए सीधे गंगा में जा रहा है। वहीं, राज्य में मौजूद आठ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में से छह मानकों पर काम नहीं कर रहे हैं।

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