
बिहार में गंगा की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा। बिहार सरकार की ओर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल रिपोर्ट स्वतः बता रही है कि गंगा के पानी में मल जीवाणु (फीकल कोलीफॉर्म) की मात्रा इतनी अधिक है कि पानी नहाने लायक नहीं है। स्थिति यह है कि 68 फीसदी से ज्यादा मलजल सीधा गंगा में गिर रहा है।
गंगा की सफाई और प्रबंधन मामले पर लगातार सुनवाई कर रही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बिहार में गंगा की बदहाल स्थिति पर सख्त नाराजगी जाहिर की है। मामले की सुनवाई एनजीटी के चेयरमैन और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ कर रही है।
पीठ ने गंगा की सफाई और पुनरुद्धार के लिए जिम्मेदार नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) को उसके अधिकारों और शक्तियों का प्रभावी उपयोग करने का निर्देश दिया है।
एसटीपी की कमी, सीवेज सीधा गंगा में
बिहार में हर रोज 1100 मिलियन लीटर सीवेज प्रतिदिन उत्पन्न होता है, लेकिन अभी सिर्फ 343 मिलियन लीटर सीवेज के उपचार की ही क्षमता है। लगभग 750 मिलियन लीटर अनुपचारित सीवेज सीधे गंगा में जा रहा है। वहीं, राज्य में मौजूद 8 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में 6 एसटीपी मानकों पर काम नहीं कर रहे हैं।
एनजीटी ने पाया कि एनएमसीजी अपनी शक्तियों का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर रही है और सिर्फ पत्राचार और बैठकों तक सीमित है। पीठ ने अपनी टिप्पणी में एनएमसीजी को उनकी शक्तियों की याद दिलाई।
पीठ ने कहा "गंगा (पुनरुद्धार, संरक्षण और प्रबंधन) आदेश 2016 की धारा 41 के तहत एनएमसीजी को व्यापक शक्तियां हासिल हैं। इन शक्तियों में विशेष रूप से परियोजनाओं के रद्दीकरण का अधिकार, निधियों को रोकने और दोबारा आवंटित करने का अधिकार, अधिकारियों या संस्थाओं को निर्देश देने का अधिकार, अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई का अधिकार शामिल है।"
एनजीटी ने एनएमसीजी को निर्देश दिया है कि वे अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए प्रदूषण नियंत्रण के लिए ठोस कार्य योजना बनाएं और 18 मार्च 2025 तक इसे प्रस्तुत करें। वहीं, एनजीटी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए बिहार के पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव को भी पक्षकार बनाया है और उनसे अगले सुनवाई से पहले जवाब दाखिल करने को कहा है।