खारे होते मुहाने: नदियों में बढ़ रहा खारापन, जलवायु परिवर्तन से गहराया संकट

चिंता की बात है कि ऐसा किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर की नदियों में जलवायु परिवर्तन की वजह से खारे पानी का प्रवेश बढ़ रहा है
नदी के मुहाने पर होता खारे और मीठे पानी संगम; फोटो: यूरोपियन स्पेस एजेंसी
नदी के मुहाने पर होता खारे और मीठे पानी संगम; फोटो: यूरोपियन स्पेस एजेंसी
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नदियों के मुहाने यानी जहां नदियां और समुद्र मिलते हैं, वहां मीठे और खारे पानी के बीच हमेशा द्वंद चलता रहता है। यह दोनों एक दूसरे को पीछे धकेलने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के चलते खारे पानी का दबदबा बढ़ रहा है। नतीजन खारापन धीरे-धीरे नदियों के अंदर तक बढ़ता जा रहा है।

नीदरलैंड के उट्रेक्ट विश्वविद्यालय और डेल्टेरेस संस्थान से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा किए एक नए अध्ययन में पता चला है कि समुद्र का खारा पानी तेजी से नदियों के अंदर तक फैल रहा है। चिंता की बात है कि ऐसा किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर की नदियों में जलवायु परिवर्तन की वजह से खारे पानी का प्रवेश बढ़ रहा है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस शोध में वैज्ञानिकों ने दुनिया भर की 18 नदियों के मुहानों (एश्चुरीज) का अध्ययन किया है। नतीजे दर्शाते हैं कि 89 फीसदी मामलों में खारा पानी पहले से ज्यादा अंदर तक पहुंच रहा है। अध्ययन के मुताबिक इसका मुख्य कारण समुद्र का बढ़ता जलस्तर और गर्मियों के महीनों में नदियों के बहाव में आती गिरावट है।

वैज्ञानिकों ने यह भी आशंका जताई है कि सूखे और पानी की कमी झेल रहे इलाकों में आने वाले दशकों में यह समस्या और गंभीर हो सकती है। नदियों के मुहानों को उनकी भौतिक और पारिस्थितिकी लाभ के कारण बेहद महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र माना जाता है। दुनिया के करीब 69 फीसदी बड़े शहर (32 सबसे बड़े शहरों में से 22) नदियों के मुहाने पर स्थित हैं।

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नदी के मुहाने पर होता खारे और मीठे पानी संगम; फोटो: यूरोपियन स्पेस एजेंसी

गौरतलब है कि 10वीं सदी से ही नीदरलैंड के किसानों ने जमीन को कृषि योग्य बनाने के लिए वहां से पानी को निकालना शुरू कर दिया था, ताकि जलस्तर नीचे जा सके और दलदली इलाकों में भी खेती हो सके। बाद में जब जमीन धंसने लगी, तो उन्होंने समुद्र के पानी को रोकने के साथ कृषि और मीठे पानी को खारा होने से बचाने के लिए बांध बनाए थे।

लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि सूखे के समय जब नदियों का पानी घट जाता है, तो समुद्र का पानी ज्यादा दूर तक अंदर की ओर आ सकता है। उनके मुताबिक यह समस्या सिर्फ स्थानीय नहीं है, दुनिया के कई तटीय इलाकों में मीठे पानी की उपलब्धता पर खतरा मंडरा रहा है।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जलवायु मॉडल का उपयोग किया है। इसकी मदद से उन्होंने भविष्य में नदियों के पानी की मात्रा और समुद्र के जलस्तर के बढ़ने का अनुमान लगाया है। इसकी मदद से वे सदी के अंत तक खारे पानी के प्रवेश से जुड़े रुझानों का अनुमान लगा सके हैं।

बचाने के साथ संजोनी होगी पानी की हर बूंद

अध्ययन के मुताबिक आने वाले दशकों में नदियों में पानी की कमी ताजे पानी की आपूर्ति के लिए सबसे बड़ा जलवायु संबंधी खतरा बन सकती है। लेकिन साथ ही वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि सदी के अंत तक, समुद्र का स्तर बढ़ने से खारा पानी नदियों में और ज्यादा अंदर तक प्रवेश कर सकता है, जो नदी के पानी की कमी से करीब दोगुना नुकसान कर सकता है।

वहीं खारे पानी के प्रवेश की जो घटनाएं "सदी में एक बार" होती थी वो 25 फीसदी तक बढ़ सकती हैं।

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शोधकर्ताओं ने नीदरलैंड में बढ़ती समस्या को उजागर करते हुए प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है वहां स्थिति गंभीर हो सकती है। नदियों में खारा पानी ज्यादा दूर तक पहुंच सकता है, जिससे खेतों की मिट्टी भी खारी हो सकती है। नतीजन खेतों और जंगलों पर इसका बुरा असर पड़ेगा। इसके वजह से कुछ फसलें और वनस्पतियां ज्यादा नमक को सहन नहीं कर पाएंगी।

नीदरलैंड्स में इस समस्या पर प्रकाश डालते हुए अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता हुइब ई डे स्वार्ट ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, "सतर्क रहना जरूरी है। जो इलाके अभी खारे पानी की समस्या का सामना नहीं कर रहे, उन्हें भविष्य में इससे जूझना पड़ सकता है।

आशंका है कि मौजूदा समय में चरम घटनाओं के दौरान खारा पाना 35 किलोमीटर तक अंदर पहुंच सकता है, और हर दस साल में यह 40 किलोमीटर तक जा सकता है।" उनके मुताबिक मॉडल के अनुसार यह समस्या साल दर साल हो सकती है। उनका आगे कहना है कि "सौ वर्षों में खारे पानी का प्रभाव आज से 10 से 15 किलोमीटर और बढ़ सकता है।"

शोधकर्ताओं का सुझाव है इन परिस्थितियों में बदलाव को अपनाना महत्वपूर्ण होगा। साफ पानी के संरक्षण पर ज्यादा ध्यान देना होगा। इसी तरह बारिश की बूंदों को संजोने के साथ टॉयलेट या बागवानी जैसे कामों में उसके उपयोग को बढ़ाना होगा।

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कृषि में खारे पानी को सह सकने वाली फसलों को उगाने की जरूरत पड़ सकती है। पानी की बढ़ती खपत को सीमित करना होगा। इसी तरह पानी का बेतहाशा उपयोग करने वाले उद्योगों को अपनी आदतों पर फिर से विचार करना होगा। हमे स्वीकार करना होगा कि भविष्य में ताजे पानी की असीमित उपलब्धता सामान्य नहीं रह जाएगी।

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