कमजोर देशों में नदियों पर पर्याप्त शोधों की है दरकार, उत्तर-दक्षिण के बीच है गहरी खाई

अध्ययन से पता चला है कि नदियों पर किए जा रहे शोधों में दुनिया के कमजोर हिस्से में बसे लोगों की जरूरतों को अनदेखा किया जा रहा है
Credit: Vikas Choudhary
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नदियां मानव जीवन का आधार हैं, यही वजह है कि दुनिया की कई सभ्यताएं नदी घाटियों और उनके आसपास ही पली, बढ़ी और विकसित हुई हैं। इन सभ्यताओं के अवशेष आज भी नदियों के महत्व को उजागर करते हैं। इसके बावजूद दक्षिण के देशों में नदियों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया।

मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में सीमापार नदियों पर हुए वैश्विक शोध में महत्वपूर्ण अंतराल को उजागर किया है। इससे पता चलता है कि दक्षिण में रहने वाले लोगों की जल सम्बन्धी आवश्यकतों को अनुपातहीन रूप से नजरअंदाज किया जा रहा है। मतलब कि पानी को लेकर की जा रही रिसर्च में दुनिया के कमजोर हिस्सों में बसे लोगों की जरूरतों की अनदेखी की जा रही है।

अध्ययन के मुताबिक देशों की सीमाओं के दायरे से परे बहने वाली नदियां करोड़ों लोगों के लिए बेहद मायने रखती हैं। यह न केवल उनकी पानी की जरूरतों को पूरा करती है, साथ ही कृषि को भी बढ़ावा देती है।

इसी तरह ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ यह नदियां जीविका भी देती है। हालांकि इन नदियों को प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और देशों के बीच राजनीतिक तनावों से बढ़ती चुनौतियों से भी जूझना पड़ रहा है।

अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 286 नदियों से जुड़े 4,713 मामलों का अध्ययन किया है। इस विश्लेषण से पता चला है कि जहां उत्तर के अमीर देशों की सबसे बड़ी नदियों पर शोधों में बहुत अधिक ध्यान दिया गया है। वहीं दूसरी ओर दक्षिण के कमजोर देशों की कई महत्वपूर्ण नदियों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

जर्नल कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित अध्ययन के नतीजे इस तथ्य को भी उजागर करते हैं कि उत्तर के देशों में किए शोध नदियों के प्रबंधन और देखभाल पर केंद्रित है। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण के कमजोर देशों में किए अध्ययन ज्यादातर पानी और संसाधनों के बंटवारे को लेकर होने वाले संघर्ष के बारे में बात करते हैं।

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छोटी नदियों को किया जा रहा है नजरअंदाज

अध्ययन के मुताबिक एशिया में, किए अधिकांश शोध मेकांग और सिंधु जैसी बड़ी नदियों पर केंद्रित रहे हैं, जो राजनैतिक तौर पर महत्वपूर्ण हैं। वहीं छोटी नदियां, जहां जल संकट से जुड़ी समस्याएं ज्यादा गंभीर हैं, उन्हें अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। वहीं अफ्रीका में किए ज्यादातर शोध जलवायु परिवर्तन और पानी के बंटवारे को लेकर पैदा हुई समस्याओं पर केंद्रित रहे हैं। हालांकि इन पर अधिक व्यापक अध्ययन करने के लिए पर्याप्त साधन और समर्थन नहीं हैं।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि छोटे और मध्यम आकार के नदी बेसिन, जो कमजोर देशों में स्थानीय समुदायों के लिए बेहद मायने रखते हैं, वे अक्सर जल सुरक्षा से जुड़ी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद शोधों में इन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है।

अध्ययन के मुताबिक दक्षिण के कमजोर देशों में नदियों पर पर्याप्त शोध न होने से उन लोगों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है जो इन पर निर्भर हैं। इसका मतलब है कि इनके सामने आने वाली चुनौतियों जैसे पानी की कमी, दूषित जल और संसाधनों को लेकर हो रहे संघर्ष जैसी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है।

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इससे नदियों पर निर्भर समुदायों की जिंदगी और जीविका खतरे में पड़ रही हैं। साथ ही इसकी वजह से उनके लिए जलवायु परिवर्तन और पानी से जुड़ी अन्य समस्याओं से निपटना मुश्किल हो रहा है। इसका असर उनकी क्षमता पर भी पड़ रहा है।

अध्ययन में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इन समस्याओं को हल करने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है। इसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण है। छोटी नदी घाटियों पर शोध को बढ़ावा देना जरूरी है।

दक्षिण के कमजोर देशों में शोध के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करना अहम है, इसके लिए निवेश में वृद्धि की आवश्यकता है। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने उत्तर और दक्षिण के शोधकर्ताओं के बीच बेहतर तालमेल और भागीदारी पर भी जोर दिया है।

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि इन बदलावों से देशों द्वारा साझा की जाने वाली नदियों की बेहतर देखभाल और प्रबंधन में मदद मिलेगी, साथ ही यह सुनिश्चित होगा कि सभी को इन महत्वपूर्ण संसाधनों तक समान पहुंच हासिल हो। 

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