
उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा नदी में बिना ट्रीटमेंट किए सीवेज और औद्योगिक कचरे को गिरने से रोकने के लिए एक कार्ययोजना (एक्शन प्लान) तैयार की है। लेकिन इसे लागू करने से पहले मुख्य सचिव या अपर मुख्य सचिव (पर्यावरण) की मंजूरी जरूरी है।
यह जानकारी 23 मई 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वकील ने दी है।
इस आधार पर सरकारी वकील ने अदालत से कुछ समय मांगा है ताकि इस योजना को मंजूरी के बाद आधिकारिक रूप से दाखिल किया जा सके। उन्होंने इस संबंध में एक पत्र भी एनजीटी में पेश किया। अदालत ने उनके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया है। इस मामले में अगली सुनवाई अब 29 अगस्त 2025 को होगी।
गौरतलब है कि इस मामले में आवेदक राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने एक पत्र याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने वाराणसी में गंगा नदी में घरेलू सीवेज और औद्योगिक कचरे के सीधे प्रवाह की शिकायत की थी। याचिका के साथ उन्होंने कई तस्वीरें भी संलग्न की हैं जिनमें गंगा के विभिन्न तटबंधों पर गंदे पानी का गिरना और तटों पर अतिक्रमण साफ नजर आता है।
ताजमहल के पास पेड़ों की अवैध कटाई पर एनजीटी सख्त, अधिकारियों से मांगा जवाब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 23 मई 2025 को बड़े पैमाने पर हरे-भरे पेड़ों की अवैध कटाई के मामले में संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। पेड़ों को काटे जाने का यह मामला उत्तर प्रदेश के आगरा जिले का है।
इस मामले में अगली सुनवाई 29 अगस्त 2025 को होगी ऐसे में एनजीटी ने सभी पक्षों से कम से कम एक सप्ताह पहले अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।
इस मामले में जिन अधिकारियों को नोटिस भेजा गया है उनमें आगरा जिला पंचायत, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी), आगरा के जिधिकारी, जिला वन अधिकारी और ताज ट्रैपेजियम जोन प्राधिकरण आदि शामिल हैं।
आवेदन में फतेहाबाद, सदर, किरावली और आगरा तहसील में पेड़ों के अवैध रूप से काटे जाने का खुलासा किया गया है। साक्ष्य के तौर पर कई अखबारों में छपी खबरें लगाई गई हैं, जिनमें किरावली तहसील में कॉलोनी बनाने के लिए पेड़ों की अवैध कटाई की बात कही गई है।
याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के मई 2025 के आदेश का भी हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि ताजमहल से पांच किलोमीटर की दूरी के भीतर किसी भी पेड़ की कटाई के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुमति लेना जरूरी है। लेकिन वर्तमान मामले में ऐसी कोई अनुमति नहीं ली गई है।
एनजीटी ने मांगा जवाब: क्या महोबा में खत्म हो चुकी लीज पर हो रहा है अवैध खनन?
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उद्योग द्वारा अवैध खनन और अमोनियम नाइट्रेट के गलत इस्तेमाल पर सख्त रुख अपनाया है। 23 मई को इस मामले में हुई सुनवाई में एनजीटी ने संबंधित अधिकारियों और खनन कंपनी जय मां चंद्रिका एंटरप्राइजेज को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है। यह मामला उत्तर प्रदेश के महोबा जिले से जुड़ा है।
अदालत ने कहा कि इस मामले में पर्यावरण नियमों के उल्लंघन से जुड़े गंभीर मुद्दे को उठाया गया है। एनजीटी ने विस्फोटक नियंत्रक, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, महोबा के जिलाधिकारी और खनन कंपनी जय मां चंद्रिका एंटरप्राइजेज को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। मामले में अगली सुनवाई एक सितंबर 2025 को होगी।
याचिका दाखिल करने वाले अखिलेश कुमार ने आरोप लगाया है कि महोबा जिले की कुलपहाड़ तहसील के लेटा गांव के गट्टा नंबर 576 की 4.5 एकड़ जमीन 24 मई 2001 से 10 वर्षों के लिए खनन के लिए दी गई थी, जिसकी अवधि 2011 में ही समाप्त हो चुकी है। इसके बावजूद जय मां चंद्रिका इंटरप्राइजेज ने अब अमोनियम नाइट्रेट फ्यूल ऑयल (एएनएफओ) शेड के लाइसेंस के लिए आवेदन किया है, जो अवैध है।
अवैध खनन की शिकायत के अलावा, याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने यह भी आरोप लगाया कि खनन करने वाले को अमोनियम नाइट्रेट की अवैध तरीके से बिक्री की गई और उसका गलत तरीके से उपयोग भी किया गया।
याचिकाकर्ता ने अपने दावों के समर्थन में 30 मार्च 2024 की एक आरटीआई का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि उक्त भूखंड की अनुमति सिर्फ 10 वर्षों के लिए दी गई थी। उन्होंने 25 अप्रैल 2024 की एक अन्य आरटीआई का भी जिक्र किया, जिसमें खनन सुरक्षा महानिदेशालय ने बताया कि गट्टा नंबर 576 में खदान खोलने की कोई सूचना निदेशालय को नहीं दी गई है।
एनजीटी ने पूरे मामले को गंभीर मानते हुए सभी पक्षों से विस्तृत जवाब मांगा है। अदालत अब यह जांचेगी कि क्या पर्यावरण और सुरक्षा नियमों का उल्लंघन हुआ है और इसके लिए कौन जिम्मेवार है।